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मालपा की ओर

मालपा की ओर

किस्से-कहानियां
कहानीएम. जोशी हिमानीमालपा मेरा गरीब मालपा रातों-रात पूरे देश में, शायद विदेशों में भी प्रसिद्व हो गया है. मैं बूढ़ा, बीमार बेबस हूँ. बाईपास सर्जरी कराकर लौटा हूँ. बिस्तर पर पड़े-पड़े सिवाय आहत होने और क्रंदन करने के मैं मालपा के लिए कर भी क्या सकता हूँ? अन्दर कमरे से पत्नी गंगा और दोनों बेटों को आपसी बातचीत के स्वर कानों में पड़ रहे हैं. मैं भलीभांति जानता हूँ कि इलकी मालपा जाने की तैयारी अपनी सगे-सम्बन्धियों को कोई राहत पहुंचाने के लिए नहीं है वरन् यह तैयारी है वहां जाकर अपने को मृतक आश्रित दिखाकर सरकार द्वारा दी जाने वाली सहायता राशि पर दावा करना. गंगा उदास और दुखी होने का अभिनय बखूबी कर लेती है. इस बार भी ऐसा ही हो रहा है. सुबह अल्ल-सबेरे मेरे बिस्तर के पास आकर नेक सलाह दे गई है- ‘‘सुनों जी, जीवन को घर भेज देते हैं. अभी हम लोग सूतक भी तो नहीं मना सकते है, जब तक जेठ और जेठानी जी ...