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मन बावरा

मन बावरा

किस्से-कहानियां
लघुकथाडॉ. कुसुम जोशीमन्दी बुआ' छोटी कद काठी ,गोल मटोल, चपटी सी नाक, पक्का गेंहुआ रंग. और आदतें-"गांव में किसी से लड़ के आयेगीं, तो गाड़ी पकड़ सीधे हमारे घर और  सीढ़ीयों से ही अपने दुश्मनों में गालियों के गोले दागते हुये आयेगीं.मन्दी बुआ  बाबूजी के काका “बंशी काका  की इकलौती पुत्री थी, चौदह साल की थी जब एक खाते पीते परिवार के फौजी बेटे से शादी हो गई, सत्रह साल की थी नागालैंड में पति शहीद हो गये... फिर बंशी कका हमेशा के लिये अपने पास ले आये...ईजा बाबूजी से उनकी शिकायत करेगीं, अगर वो मन्दीबुआ को समझाने की कोशिश करें तो अपना तकिया कलाम दोहरा देगीं... “खाप ससुर का क्या जाता है, जिसके हाथ ना पांव”, तुम रह के देखों 'ददा बोज्यू' इन गांव वालों के साथ. मुहं बिचका के अपने दुश्मन के सात पुश्तो का श्राद्ध एक ही गाली में कर देगी. मन्दी बुआ  बाबूजी के काका “बंशी काका  की इकलौती पुत्री थी...