
हिन्दी बने व्यवहार और ज्ञान की भाषा
प्रो. गिरीश्वर मिश्र
अक्सर भाषा को संचार और अभिव्यक्ति के एक प्रतीकात्मक माध्यम के रूप ग्रहण किया जाता है. यह स्वाभाविक भी है. हम अपने विचार, सुख-दुख के भाव और दृष्टिकोण दूसरों तक मुख्यत: भाषा द्वारा ही पहुंचाते हैं और संवाद संभव होता है. निश्चय ही यह भाषा की बड़ी भूमिका है परंतु इससे भाषा की शक्ति का because केवल आंशिक परिचय ही मिलता है क्योंकि शायद ही कुछ ऐसा अस्तित्व में हो जो भाषा से अनुप्राणित न हो. भाषा से जुड़ कर ही वस्तुओं की अर्थवत्ता का ग्रहण हो पाता है. यही सोच कर भाषा को जगत की सत्ता और उसके अनुभव की सीमा भी कहा जाता है. सचमुच जो कुछ अस्तित्व में है वह समग्रता में भाषा से अनुविद्ध है.
ज्योतिष
सत्य तो यही है कि भाषा मनुष्य जाति की ऐसी रचना है जो स्वयं मनुष्य को रचती चलती है और अपनी सृजनात्मक शक्ति से नित्य नई नई संभावनाओं के द्वार खोलती चलती है. हम ज्ञान, विज्ञान, प्रौद्योगि...