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गगनचुंबी इमारतों से सोसायटी तो बन गई पर पुस्तकालय क्यों नहीं बन रहे?

गगनचुंबी इमारतों से सोसायटी तो बन गई पर पुस्तकालय क्यों नहीं बन रहे?

समसामयिक
हिमांतर ब्‍यूरो नोएडा एक्सटेंशन के एस एस्पायर सोसायटी में रविवार को लघु पुस्तकालय का उद्घाटन हुआ. सोसायटी के वरिष्ठ जनों, युवाओं और महिलाओं की उपस्थिति में विधिवत सरस्वती पूजन के जरिए पुस्तकालय को सोसायटी के निवासियों के लिए खोला गया. हिंदी और अंग्रेजी की ढ़ाई सौ से ज्यादा किताबों के जरिए सोसायटी में पुस्तकालय की नींव पड़ी और अन्य सोसायटी के निवासियों को भी अपने-अपने यहां पुस्तकालय खोलने का संदेश दिया गया. सोसायटी के निवासियों के साथ ही अन्य मुख्य अतिथियों की मौजूदगी में सामूहिक विमर्श के जरिए पुस्तकों के महत्व पर प्रकाश डाला गया. मंच का संचालन करते हुए अमर उजाला के चीफ सब एडिटर ललित फुलारा ने कहा कि पुस्तकों के जरिए ही हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकते हैं. पुस्तकें, उसी तरह से हैं, जैसे हमारे घर के बुजुर्ग. जिस तरह से घर के बुजुर्गों की छांव में हमें सबल मिलता है और हमारा चारित...
आखन देखी

आखन देखी

समसामयिक
ललित फुलारा जब मैं यह लिख रहा हूं.. जुलाई बीत चुका है. फुटपाथ, सड़कें, गली-मोहल्ले कोरोना से निर्भय हैं! जीवन की गतिशीलता निर्बाध चल रही है. लोगों के चेहरों पर मास्क ज़रूर हैं, पर भीतर का डर धीरे-धीरे कम होने लगा है. रोज़मर्रा के कामकाज़ पर लौटे व्यक्तियों ने आशावादी रवैये से विषाणु के भय को भीतर से परास्त कर दिया है. घर के अंदर बैठे व्यक्तियों की चिंता ज्यादा है, बाहर निकलने वाले जनों ने सारी चीजें नियति पर छोड़ दी हैं. वैसे ही जैसे असहाय, अगले पल की चिंता, दु:ख, भय और परेशानी ईश्वर पर छोड़ देता है. दरअसल, पेट की भूख दुनिया की हर महामारी से बड़ी होती है. पेट की भूख के चलते ही तीन महीने पहले तक जो सड़कें भयग्रसित हो गईं थी, अब वहां हलचल है एवं स्थितियां सामान्य होने लगी हैं. मास्क व सैनिटाइज़र को जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाते हुए लोग अपने कर्म पर लौट चले हैं. गली-मोहल्लों में कु...