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पुरखे निहार रहे मौन, गौं जाने के लिए तैयार है कौन?

पुरखे निहार रहे मौन, गौं जाने के लिए तैयार है कौन?

संस्मरण
ललित फुलारा सुबह-सुबह एक तस्वीर ने मुझे स्मृतियों में धकेल दिया. मन भर आया, तो सोशल मीडिया पर त्वरित भावनाओं को उढ़ेल दिया. ‘हिमॉंतर’ की नज़र पढ़ी, तो विस्तार में लिखने का आग्रह हुआ. पूरा संस्मरण ही एक तस्वीर से शुरू हुआ और विमर्श के केंद्र में भी तस्वीर ही रही. तस्वीर के बहाने ही गौं (गांव), होम स्टे और सड़क समेत कई मुद्दों पर टिप्पणियां हुई. कुसम जोशी जी और रतन सिंह असवाल जी ने सक्रियता दिखाते हुए, कई नई चीजों की तरफ ध्यान खींचा. ज्ञान पंत जी की कुमाऊंनी क्षणिका दर्ज शब्दों पर एकदम सटीक बैठी. बाकी, अन्य साथियों ने सराहा और गौं, पहाड़ और कुड़ी की बातचीत में अपने चंद सेकेंड खपाए. सभी का आभार. तस्वीर भेजने के लिए मोहन फुलारा जी का दिल से शुक्रिया.....!!!! प्रकाशित करने के लिए ‘हिमॉंतर’ को ढेरों प्यार. जिस तस्वीर को देखकर मन भर आया वो मेरी कुड़ी (मकान) है. तस्वीर आपको दिख ही रही होगी...