शिक्षक की गरिमा : पुनर्प्रतिष्ठा की अनिवार्यता

शिक्षक की गरिमा : पुनर्प्रतिष्ठा की अनिवार्यता

शिक्षक दिवस पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र  भारतीय संस्कृति में गुरु या शिक्षक को ऐसे प्रकाश के स्रोत के रूप में ग्रहण किया गया है जो ज्ञान की दीप्ति से अज्ञान के आवरण को दूर कर जीवन को सही मार्ग पर ले चलता है. इसीलिए उसका स्थान सर्वोपरि होता है. उसे ‘साक्षात परब्रह्म’ तक कहा […]

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 गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर उनकी मानव-दृष्टि

गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर उनकी मानव-दृष्टि

प्रो. गिरीश्वर मिश्र कवि, चिन्तक और सांस्कृतिक नायक गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर साहित्य और कला के क्षेत्र में नव जागरण के सूत्रधार थे. आध्यात्म, साहित्य, संगीत और नाटक के परिवेश में पले बढे और यह सब उनकी स्वाभाविक प्रकृति और रुचि के अनुरूप भी था. बचपन से ही उनकी रुचि सामान्य और साधारण का अतिक्रमण करने […]

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 होली रे होली, चित्रों से बोली!

होली रे होली, चित्रों से बोली!

आब-ए-पाशी   मंजू दिल से… भाग-13 मंजू काला बसंत ऋतु के प्रसिद्ध एवम भारतीय संस्कृति के प्रतीक होली पर्व का अभिप्राय है-आनंद, उल्सास, अथवा हास-परिहास! इस पर्व का आगमन ही ऐसे मौसम में होता है, so जब प्रकृति की आभा पूर्ण यौवन पर रहती है! because मंद-मंद पवन से वातावरण आमोदित-प्रमोदित होता रहता है! सम्पूर्ण […]

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 ‘उत्तरायणी’ वैदिक आर्यों का रंग-रंगीला ऐतिहासिक लोकपर्व

‘उत्तरायणी’ वैदिक आर्यों का रंग-रंगीला ऐतिहासिक लोकपर्व

डॉ. मोहन चंद तिवारी हमें अपने देश के उन आंचलिक पर्वों और त्योहारों का विशेष रूप से आभारी होना चाहिए जिनके कारण भारतीय सभ्यता और संस्कृति की ऐतिहासिक पहचान आज भी सुरक्षित है. उत्तराखण्ड का ‘उत्तरायणी’ पर्व हो या बिहार का ‘छठ पर्व’ केरल का ‘ओणम पर्व’ because हो या फिर कर्नाटक की ‘रथसप्तमी’ सभी […]

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