तीजन बाई या बेगम अख्तर नहीं कबूतरी देवी थी वो
पुण्यतिथि (7 जुलाई) पर विशेष
मीना पाण्डेय
कबूतरी देवी तीजन बाई नहीं है, न ही बेगम अख्तर. हो ही नहीं सकती. ना विधा में, न शैली में. उनकी विशेष खनकदार आवाज उत्तराखंड की विरासत है. अपनी विभूतियों को इस तरह की उपमाओं से नवाजा जाना हमारे समाज की उस हीनता ग्रंथि को प्रर्दशित करता है जो अपनी अनूठी विरासत को किसी अन्य नाम से तुलना कर फूले नहीं समाते. तीजनबाई और बेगम अख्तर अपनी-अपनी विधाओं में विशिष्ट रहीं हैं. उसी तरह कबूतरी देवी का अपना एक सशक्त परिचय है. हमें समझना होगा कि यह पहचान दिलाने का उपक्रम है या बनी बनाई पहचान को धूमिल करने का? मीडिया ऐसे कार्यों में सिद्धहस्त है. कम से कम संस्कृति कर्मियों और कला प्रेमियों को इन सब से बचना चाहिए.
सन 2002 में नवोदय पर्वतीय कला मंच ने पिथौरागढ़ में आयोजित होने वाले छलिया महोत्सव में उन्हें मंच प्रदान कर उनकी दूसरी पारी की शुरुआत की. इसके ...