Tag: पुण्यतिथि

प्रेमचंद के स्त्री पात्र एवं आधुनिक संदर्भ

प्रेमचंद के स्त्री पात्र एवं आधुनिक संदर्भ

साहित्यिक-हलचल
प्रेमचंद जी की पुण्यतिथि (8 अक्टूबर) पर विशेष डॉ. अमिता प्रकाश 08 अक्टूबर आज प्रेमचंद को because याद करने का विशेष दिन है. आज उपन्यास विधा के युगपुरुष एवं महान कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की पुण्यतिथि है. 31 जुलाई के दिन प्रेमचंद ने लमही में एक फटेहाल परिवार में जन्म लेकर तत्कालीन फटेहाल भारत को न सिर्फ जिया बल्कि उस समाज का जीता-जागता दस्तावेज हमेशा के लिए पन्नों पर दर्ज कर दिया. उस समय जब भारत उपनिवेशवाद और उसकी जनता उपनिवेशवाद की अनिवार्य बुराई सामंतवाद के चंगुल में फंसी छटपटाहट रही थी, उसको अपनी मुक्ति का मार्ग दिख नहीं रहा था वह सिर्फ हाथ-पैर मारकर अपनी छटपटाहट को व्यक्त कर रहा था. उस समय प्रेमचंद आचार्य शुक्ल, जयशंकर प्रसाद और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जैसे साहित्यकार महात्मा गांधी के जनांदोलनों को विचारों की ऊर्जा ही प्रदान नहीं कर रहे थे बल्कि जनता को उसकी सामर्थ्य-शक्ति का...
उत्तराखंड राज्य आंदोलन के जननायक

उत्तराखंड राज्य आंदोलन के जननायक

स्मृति-शेष
विपिन त्रिपाठी की पुण्यतिथि (30 अगस्त) पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी “गांव से नेतृत्व पैदा होने तक मैं गांव में रहना पसंद करूंगा. सत्ता पगला देती है. समाजवादी बौराई सत्ता से दूर रहें.”                                 -विपिन त्रिपाठी 30 अगस्त को उत्तराखंड राज्य आंदोलन के जननायक और द्वाराहाट क्षेत्र के विकास पुरुष श्री विपिन त्रिपाठी जी की पुण्यतिथि है. उत्तराखण्ड की आजादी और वहां की जनता के मौलिक अधिकारों के लिए जीवन पर्यंत संघर्ष करने वाले जननायकों में कुछ ही ऐसे नेता हैं जिन्हें देवभूमि उत्तराखण्ड का गौरव माना जा सकता है, उनमें द्वाराहाट क्षेत्र के संघर्षशील नेता, जुझारू पत्रकार, ‘द्रोणांचल प्रहरी’ के संपादक, कर्मठ समाज सेवी, क्षेत्र के विधायक और उक्रांद के अध्यक्ष रहे स्व. विपिन त्रिपाठी जी का नाम सबसे ऊपर आता है. उत्तराखंड आंदोलन समेत समाज के विभिन्न क्षेत्रों में जन आंदोलनो...
टैगोर का शिक्षादर्शन- ‘असत्य से संघर्ष और सत्य से सहयोग’

टैगोर का शिक्षादर्शन- ‘असत्य से संघर्ष और सत्य से सहयोग’

शिक्षा
रवीन्द्र नाथ टैगोर की पुण्यतिथि (7 अगस्त,1941) पर विशेष डॉ. अरुण कुकसाल ‘किसी समय कहीं एक चिड़िया रहती थी. वह अज्ञानी थी. वह गाती बहुत अच्छा थी, लेकिन शास्त्रों का पाठ नहीं कर पाती थी. वह फुदकती बहुत सुन्दर थी, लेकिन उसे तमीज नहीं थी. राजा ने सोचा ‘इसके भविष्य के लिए अज्ञानी रहना अच्छा नहीं है’....उसने हुक्म दिया चिड़िया को गंभीर शिक्षा दी जाए. पंडित बुलाए गए और वे इस निर्णय पर पंहुचे कि चिड़िया की शिक्षा के लिए सबसे जरूरी हैः एक पिंजरा. और फिर पिंजरे में रखकर चिड़िया ज्ञान पाने लगी. लोगों ने कहा ‘चिड़िया के तो भाग्य जगे!’.... ‘महाराज, चिड़िया की शिक्षा पूरी हो गई’. राजा ने पूछा, ‘वह फुदकती है? भतीजे-भानजों ने कहा, ‘नहीं !’ ‘उड़ती है?’ ‘एकदम नहीं!’ ‘चिड़िया लाओ,’ राजा ने आदेश दिया. चिड़िया लाई गई. उसकी सुरक्षा में कोतवाल, सिपाही और घुड़सवार साथ चल रहे थे. राजा ने चिड़िया को उंगली से ...