Tag: पीली सरसों

बसंत उस तोर के पेड़ पर आयेगा या नहीं अनभिज्ञ थी मैं

बसंत उस तोर के पेड़ पर आयेगा या नहीं अनभिज्ञ थी मैं

साहित्‍य-संस्कृति
सुनीता भट्ट पैन्यूली जनवरी का महीना था, ज़मीन से उठता कुहासा मेरे घर के आसपास विस्तीर्ण फैले हुए गन्ने के खेतों पर एक वितान-सा बुनकर मेरे भीतर न जाने कहीं because सहमे हुए बच्चे की तरह बुझा-बुझा सा बैठ जाया करता था. जनवरी लाख चेष्टा की because मैंने मेरे भीतर बैठ गये डरे सहमे से उस कुहासे रूपी बच्चे को माघ की बहुरूपिया धूप में धुपियाने की, किंतु वह ठगनी धूप मेरे भीतर बैठे उदास बच्चे की अन्यमनस्कता को कभी पढ़ ही नहीं पायी, न ही सहला पायी हौले से, उसकी बेजान पड़ी दिल की झंकारों को किसी संगीत के सुर में ढालकर. नवरी पढ़ें— हिमालयी सरोकारों को समर्पित त्रैमासिक पत्रिका ‘हिमांतर’ का लोकार्पण मेरे घर के हाते में एक विचित्र-सा because पेड़ लगा है, बारीक सी बुझी-बुझी सी पत्तियों वाला.., माघ के भीषण कोहरे में न चाहते हुए भी उसकी मलिनता, काहिली पत्तियों से छनकर मेरे संपूर्ण अस्ति...