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कहाँ गए ‘दुभाणक संदूक’

कहाँ गए ‘दुभाणक संदूक’

संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—11 प्रकाश उप्रेती आज बात 'दुभाणक संदूक'. यह वो संदूक होता था जिसमें सिर्फ दूध, दही और घी रखा जाता है. लकड़ी के बने इस संदूक में कभी ताला नहीं लगता है. अम्मा इसके ऊपर एक ढुङ्ग (पत्थर) रख देती थीं ताकि हम और बिल्ली न खोल सकें. हमेशा दुभाणक संदूक मल्खन ही रखा जाता था. एक तरह से छुपाकर... हमारे घर में गाय-भैंस और कुत्ता हमेशा रहे. भैंस को बेचने जैसा प्रावधान हमारे घर में नहीं था. वह एक बार आने के बाद हमारे 'गुठयार' (गाय- भैंस को बांधने की जगह) में ही दम तोड़ती थी. परन्तु कुत्ते जितने भी रहे कोई भी अपनी मौत नहीं मरे बल्कि सबको बाघ ने ही खाया. खैर, बात दुभाणक की... दूध, दही और घी रखने के बर्तनों को ही दुभाणा भन कहा जाता था. दूध की कमण्डली को ईजा छुपाकर 'छन' (गाय- भैंस का घर) ले जाती थीं. दूध भी छुपाकर लातीं और फिर गोठ में उसको एक नियत स्थान पर रख देती थ...