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पीपलकोटी गाँव की चंदुली पुफु और दीवाली के अमरूद

पीपलकोटी गाँव की चंदुली पुफु और दीवाली के अमरूद

संस्मरण
जे पी मैठाणी पीपलकोटी उत्तराखंड के चमोली जिले का सिर्फ कोई गाँव या कस्बा नहीं है. उत्तराखण्ड में ऐसे बहुत कम कस्बे या गाँव हैं जहां पर उत्तराखण्ड की दो प्रमुख विरासतें जो गढ़वाली और कुमांऊनी परंपराओं को संजोए रखती है. यहां पीपल के पेड़ भावनाओं के केन्द्र हैं. इस कसबे में भाषा , जाति और धरम को आप सार्वजनिक स्थान पर न तो देख सकते हैं और ना ही मह्सूस कर सकते हैं . पुराने बद्रीनाथ यात्रा मार्ग पर बसा और वर्तमान में श्री बद्रीनाथ यात्रा मार्ग का प्रमुख पडाव पीपलकोटी एक ऐतिहासिक क़स्बा है. पुरातन समय में जब सड़क मार्ग नहीं था तब पैदल यात्रा मार्ग  जो चमोली. मठ, छिनका, बांवला, सियासैण,  हाट से अलकनन्दा को पार कर मंगरी गाड़ के बाद मुल्ला बाजार/शिवालय दुर्गा मंदिर से पीपलकोटी बस स्टेशन पर पहुंचता है, यही शिवालय से वर्तमान के प्रमुख बस अड्डे के बीच बसा ये ही पुराना पीपलकोटी क़स्बा है इसके बीच से ही पुरा...
आओ! ऐसे दीये जलायें 

आओ! ऐसे दीये जलायें 

कविताएं
भुवन चन्द्र पन्त आओ ! ऐसे दीये जलायें गहन तिमिर की घुप्प निशा में तन-मन की माटी से निर्मित गढ़ कर दीया मात्र परहित में परदुख कातरता से चिन्तित स्नेह दया का तेल मिलायें आओ! ऐसा दीया जलायें दीवाली के दीये से केवल होता है बाहर ही जगमग गर अन्तर के दीप जला लो ज्योर्तिमय होगा अन्तरजग खुशी सौ गुनी करनी हो तो खुद जलकर बाती बन जायें आओ ! ऐसा दीये जलायें बन असक्त की शक्ति कभी हम उसके अन्तर्मन को झांकें सीने पर भी हाथ लगाकर निजमन की खुशियों को आंकें अगर जरूरत पड़े अपर को अन्धे की लाठी बन जायें आओ ! ऐसा दीये जलायें दीपालोकित अपना घर हो बाजू घर ना चूल्हा जलता श्रम तुमसे दुगना करता वह क्या तुमको ये सब नहीं खलता? क्यों न पड़ोसी के घर को भी मानवता का हाथ बढा़यें आओ ! ऐसे दीये जलायें एक ही माटी के सब पुतले वो धुंधले हैं और तुम क्यों उजले? तकदीरों का खेल तमाशा निराधार ...