भवाली के जगदीश नेगी के प्रयासों ने दिलवाया शिप्रा नदी को पुनः जीवनदान
भुवन चन्द्र पन्त
इन्सान भी कितना अहसान फरामोश है कि जिन नदियों के किनारे कभी मानव सभ्यता का विकास हुआ, उन्हीं नदियों को इन्सान ने अपने क्षुद्र स्वार्थों के लिए कूड़े कचरे के ढेरों में तब्दील करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. कुछ लोग यदि जागरूक हुए भी तो समाज की इस तरह की घिनौनी करतूतों के तमाशबीन बनकर रह जाते हैं. कुछ इसके लिए समयाभाव का रोना रोते हैं तो दूसरे कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो संबंध खराब होने की गरज से लफड़े में पड़ने से कन्नी काट जाते हैं. ऐसे बिरले लोग होते हैं जो “लोग क्या कहेंगे’’ की परवाह किये बिना निकल पड़ते हैं, समाजहित के लिए और आने वाली पीढ़ी के सुखद भविष्य का सपना संजोये अपनी राह पर. फिर व्यक्तिगत संबंध समाजहित के सामने गौण हो जाते हैं. ऐसे जुनूनी शख्स समाज की परवाह किये बिना जब निकल पड़ते हैं लक्ष्य की ओर, तो मुड़कर नहीं देखते. यह समाज की मानसिकता है कि जब भी समाजहित में कोई काम...