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‘उत्तरायण’ के पर्याय थे बंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’

‘उत्तरायण’ के पर्याय थे बंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’

स्मृति-शेष
हमारी लोक विधाओं को नया आयाम देने वाले बंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’ जी की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए चारु तिवारी उन दिनों हम लोग बग्वालीपोखर में रहते थे. यह बात 1976-77 की है. आकाशवाणी लखनऊ से शाम 5.45 बजे कार्यक्रम आता था- ‘उत्तरायण.’ शाम को  ईजा स्कूल के दो-मंजिले की बड़ी सी खिड़की में बैठकर रेडियो लगाती. हम सबका यह पसंदीदा कार्यक्रम था. हम किसी भी हालत में इसे मिस नहीं होने देते. हमें नहीं पता था कि इस कार्यक्रम को संचालित करने वाले हमारे ही बगल के गांव नहरा (कफड़ा) के वंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’ जी हैं. बहुत बाद में उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को जानने का मौका मिला. उन्होंने कुमाउनी भाषा और साहित्य के लिये अपना जो अमूल्य योगदान दिया उसे कभी भुलाया नहीं जा सकेगा. जिज्ञासु जी ने आकाशवाणी लखनऊ में रहते ‘उत्तरायण’ के माध्यम से जिस तरह कुमाउनी-गढ़वाली भाषा के संवर्धन और नाटकों की शुरुआत की उस...