“वराहमिहिर के अनुसार वृक्ष-वनस्पतियों की निशानदेही से भूमिगत जल की खोज”
भारत की जल संस्कृति-16
डॉ. मोहन चंद तिवारी
प्राचीन काल के कुएं, बावड़ियां, नौले, तालाब, because सरोवर आदि जो आज भी सार्वजनिक महत्त्व के जलसंसाधन उपलब्ध हैं, उनमें बारह महीने निरंतर रूप से शुद्ध और स्वादिष्ट जल पाए जाने का मुख्य कारण यह है कि इन जलप्राप्ति के संसाधनों का निर्माण हमारे पूर्वजों ने वराहमिहिर द्वारा अन्वेषित जलान्वेषण की पद्धतियों के अनुसार किया था. वराहमिहिर का पर्यावरणमूलक जलान्वेषण विज्ञान भूगर्भस्थ जल की प्राप्ति हेतु न केवल भारत अपितु विश्वभर में कहीं भी उपयोगी हो सकता है. जैसा कि मैने अपनी पिछली पोस्टों में स्पष्ट किया है कि भारतीय जलविज्ञान, but अन्तरिक्षगत मेघविज्ञान वृष्टिविज्ञान के स्वरूप को समझे बिना अधूरा ही है. भारतीय जलवैज्ञानिक वराहमिहिर ने भूमिगत जलस्रोतों को खोजने और वहां कुएं, जलाशय आदि निर्माण करने के लिए वनस्पतियों और भूमिगत जीव-जंतुओं की निशानदेही स...