![वह सिंधुघाटी के ‘आद्य शिव’ नहीं, कत्यूरीकालीन ‘वृषानना’ योगिनी है](https://www.himantar.com/wp-content/uploads/2022/03/Lord-Shiva_main.jpg)
वह सिंधुघाटी के ‘आद्य शिव’ नहीं, कत्यूरीकालीन ‘वृषानना’ योगिनी है
प्रेस विज्ञप्ति लेख
डा. मोहन चंद तिवारी
5 मार्च ,2022 को दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र (Doon Library And Research Centre) से जुड़ी एक प्रेसवार्ता के अनुसार उत्तरकाशी (Uttarkashi) के देवल गांव (deval village) से पत्थर की महिष (भैंसा) मुखी एक because चतुर्भुज मानव प्रतिमा खोजने का समाचार सामने आया है. शोध केंद्र के निदेशक प्रोफेसर बीके जोशी ने इस मूर्ति को 'आद्य शिव' की सिंधुकालीन मूर्ति होने का दावा किया है. कहा गया है कि इस दुर्लभ प्रतिमा का प्रकाशन रोम से प्रकाशित शोध पत्रिका “ईस्ट एंड वैस्ट” के नवीनतम अंक में हुआ है.
हरताली
इस मूर्ति को सिंधुकालीन होने का औचित्य सिद्ध because करते हुए शोध केंद्र से जुड़े पुरातत्त्वविद प्रो.महेश्वर प्रसाद जोशी का भी कहना है कि उत्तराखंड की यमुना घाटी में पहले भी सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़े अवशेष मिल चुके हैं,इसलिए यह मूर्ति भी सिंधुकालीन मूर्ति ...