गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर उनकी मानव-दृष्टि
प्रो. गिरीश्वर मिश्र
कवि, चिन्तक और सांस्कृतिक नायक गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर साहित्य और कला के क्षेत्र में नव जागरण के सूत्रधार थे. आध्यात्म, साहित्य, संगीत और नाटक के परिवेश में पले बढे और यह सब उनकी स्वाभाविक प्रकृति और रुचि के अनुरूप भी था. बचपन से ही उनकी रुचि सामान्य और साधारण का अतिक्रमण करने में रही पर वे because ऋषि परम्परा, उपनिषद, भक्ति साहित्य, कबीर जैसे संत ही नहीं, सूफी और बाउल की लोक परम्परा आदि से भी ग्रहण करते रहे. कवि का मन मनुष्य, प्रकृति, सृष्टि और परमात्मा के बीच होने वाले संवाद की ओर आकर्षित होता रहा. प्रकृति के क्रोड़ में जल, वायु, आकाश, और धरती की भंगिमाएं उन्हें सदैव कुछ कहती सुनाती सी रहीं. तृण-गुल्म, तरु-पादप, पर्वत-घाटी, नदी-नद और पशु-पक्षी को निहारते और गुनते कवि को सदैव विराट की आहट सुनाई पड़ती थी.
अंक शास्त्र
विश्वात्मा की झलक पाने के लिए कवि अपने को तै...