लोक के चितेरे जनकवि हीरा सिंह राणा
डॉ. अरुण कुकसाल
लस्का कमर बांधा, हिम्मत का साथा,
फिर भोला उज्याला होली, कां रोली राता
12 नवम्बर, 2019 की रात वैकुंठ चतुर्दशी मेला, श्रीनगर (गढ़वाल) में गढ़-कुमाऊंनी कवि सम्मेलन के मंच पर नरेन्द्र सिंह नेगीजी एवं अन्य कवियों के मध्य जनकवि हीरा सिंह राणाजी भी शोभायमान थे. प्रिय मित्र चारू तिवारीजी एवं विभोर बहुगुणाजी के साथ कवियों की कविताओं का आंनद लेते हुए नज़र हीरा सिंह राणाजी पर जाती रही. और अस्सी के दशक में सड़कों पर तमाम जलूसों और जन-यात्राओं में गाया उनका गीत ‘लस्का कमर बांधा, हिम्मत का साथा, फिर भोला उज्याला होली, कां रोली राता.’ याद आता रहा. असली के दशक में नैनीताल और अल्मोड़ा की सड़कों पर जलूस में हीरा सिंह राणा जी के साथ ये गीत गाते हुए लगता था कि कमर बांधने का यही सही वक्त है. जीवन के प्रति सकारात्मक जज्बां ये गीत आज भी भर देता है.
हीरा सिंह राणाजी का अस्वस्थ शरीर, चलने में दि...