![‘गिदारी आमा’ के विवाह गीत](https://www.himantar.com/wp-content/uploads/2020/08/Dr-Mohan-Chand-Tiwari-shadi.jpg)
‘गिदारी आमा’ के विवाह गीत
डॉ. मोहन चंद तिवारी
"पिछले लेखों में शम्भूदत्त सती जी के 'ओ इजा' उपन्यास के सम्बन्ध में जो चर्चा चल रही है,उसी सन्दर्भ में यह महत्त्वपूर्ण है कि इस रचना का एक खास प्रयोजन पाठकों को पहाड़ की भाषा सम्पदा और वहां प्रचलित लोक संस्कृति के विविध पक्षों तीज-त्योहार, मेले-उत्सव खान-पान आदि से अवगत कराना भी रहा है.जैसा कि लेखक ने अपनी पुस्तक की प्रस्तावना में लिखा है-
“पाठकों के समक्ष यह उपन्यास प्रस्तुत करते हुए मैं इस बात का निवेदन करना चाहता हूँ कि दिनोंदिन गांवों का शहरीकरण होने के कारण उसकी बोली, खान-पान, रहन-सहन, लोक-परम्पराएं और लोक भाषाएं विलुप्त होती जा रही हैं.इसलिए यहां मैंने कुमाऊंनी बोली (जो लगभग विलुप्त होने के कगार पर है) को अपनी बात कहने का माध्यम बनाकर प्रस्तुत उपन्यास में कुमाऊंनी हिंदी का प्रयोग किया है.”
इस उपन्यास में 'झंडीधार' गांव की 'आमा' का एक किरदार कुछ ऐसा ही है,ज...