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“वराहमिहिर की ‘बृहत्संहिता’ में भूमिगत जलशिराओं का सिद्धान्त”

“वराहमिहिर की ‘बृहत्संहिता’ में भूमिगत जलशिराओं का सिद्धान्त”

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-15 डॉ. मोहन चंद तिवारी (12मार्च, 2014 को ‘उत्तराखंड संस्कृत अकादमी’, हरिद्वार द्वारा ‘आईआईटी’ रुड़की में आयोजित विज्ञान से जुड़े छात्रों और जलविज्ञान के अनुसंधानकर्ता विद्वानों के समक्ष मेरे द्वारा दिए becauseगए वक्तव्य ‘प्राचीन भारत में जलविज्ञान‚ जलसंरक्षण और जलप्रबंधन’ से सम्बद्ध चर्चित और संशोधित लेख) अखबारों प्राचीन काल के कुएं बावड़ियां,नौले आदि जो आज भी लोगों को पेयजल की आपूर्त्ति के महत्त्वपूर्ण जल संसाधन हैं,उनमें बारह महीने निरंतर रूप से शुद्ध और स्वादिष्ट जल पाए जाने का so एक मुख्य कारण यह भी है कि ये कुएं,बावड़ियां या नौले हमारे पूर्वजों द्वारा वराहमिहिर द्वारा अन्वेषित 'बृहत्संहिता’ में भूगर्भीय जलान्वेषण की पद्धतियों का अनुसरण करके बनाए गए थे. अखबारों भारतीय जलविज्ञान का सैद्धांतिक स्वरूप अन्तरिक्षगत मेघविज्ञान और वृष्टिविज्ञान के स्वरूप को जा...