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जबही महाराजा देस में आए …

जबही महाराजा देस में आए …

संस्मरण
‘बाटुइ’ लगाता है पहाड़, भाग—12 रेखा उप्रेती “बारात आ गयी !!” यह वाक्य हमारे भीतर वैसा ही उत्साह जगाता जैसे ओलंपिक्स में स्वर्ण-पदक जीतने की सूचना … उत्साह का बीज तो किसी बुआ या दीदी का ‘ब्याह ठहरते’ ही अँखुआ जाता. घर की लिपाई-पुताई, ऐपण, रंग्वाली पिछौड़, सुआल-पथाई, धुलिअर्घ की चौकी जैसे कई काज घर और गाँव की महिलाओं की हका-हाक लगाए रखते और हम बच्चों के लिए ‘कौतिक’ जैसा माहौल बनाते… हमारे हिस्से कुछ काम आते, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण था- ओलंपिक की मशाल लेकर भागने जैसा गौरव-पूर्ण दायित्व-गाँव-भर में सबको न्यूतना… किस घर को कैसे न्यौतना है यह अच्छी तरह समझना होता. लड़की वाले की हैसियत के हिसाब से न्यौते का स्वरूप अलग-अलग होता. बड़ा गाँव था हमारा… ऐसा कम ही होता कि लड़की की शादी में पूरे गाँव को “च्युल-न्यूत” मिले. यूँ तो लड़की चाहे किसी घर की हो, उसके विदा होने तक सारा गाँव एक परिवार...
अजनबी आंगन

अजनबी आंगन

किस्से-कहानियां
अथ-अनर्थ कथा- 1 डॉ. कुसुम जोशी नवल ददा अपनी नवेली ब्योली को लेकर अभी अभी घर पहुंचे थे. बाबा, बाबू ,ताऊजी चाचा, जीजाजी, फूफाजी सब बारात से लौट कर रात भर की थकान के बाद भी खुश नजर आ रहे थे. लगता था लड़की वालों ने अच्छी खातिर की थी. नवल दा की खुशी छुपे नहीं छुप रही थी. शायद दुल्हन की हिरनी जैसी आँखों और मासूम से चेहरे की झलक दा को मिल गई हो. सिर्फ फोटो दिखा कर शादी कर लेने की नाराजगी के कोई लक्षण अब चेहरे पर नही थे. सारा गांव दुल्हन देखने को जुट आया और जिसने भी दुल्हन का मुखड़ा देखा वो तारिफ किये बिना नहीं रहा. नये नये जुमले थे "कतु स्वानी छ...आहा साक्षात लछमी छ… बड़ भाग नवलक... कतु सुन्दर घरवाली मिली छ...सीता- राम जैसी जोड़ि छ...बड़ भाग ददा बोज्यूनका..इतु सुन्दर ब्यारी" बधाई हो ..बधाई हो...के शोर के साथ सबका ध्यान आंगन में आ चुकी अधेड़ उम्र की रानी और उसके चेले चेलियों की और चला गया....