- भूपेंद्र शुक्लेश योगी
“किसी के साथ आप जबरदस्ती करके, ताने या उलाहने मार कर अथवा उसे किसी अन्य प्रकार से कष्ट देकर उसका शरीर तो पा सकते हैं, उसके शरीर को गुलाम बना सकते हैं लेकिन आप उसको कभी नहीं पा सकते हैं, उसके मन को कभी नहीं जीत सकते हैं.”
यदि आप चाहते हैं कि कोई आपको सुने, आपसे मित्रता करे अथवा आप पर ध्यान दे तो आप उसे पकड़ने की कोशिश कभी मत करें बल्कि स्वयं को अच्छा, सक्षम एवं प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त करें. अपने गुणों को इतना बढ़ा लें, स्वयं की ऊर्जा को वाइव्स को इतना सकारात्मक कर लें कि कोई भी आपके ओरा में आते ही शांति का, प्रेम का, मैत्री और करुणा का अनुभव करे.
ऐसा करके आप पाएंगे कि जो व्यक्ति आप पर ध्यान नहीं देता था अथवा आप से मैत्री नहीं रखना चाहता था वह आपकी ओर आने लगा है, वह स्वयं प्रयास करके आपसे मैत्री करने कि कोशिश करने लेगा है. परन्तु लोग ऐसा नहीं करते हैं, लोग धैर्य नहीं रखते हैं और सही ढ़ंग व्यवहार करना उन्हें आता नहीं है.
अधिकांश लोग गलती करते हैं…
यदि कोई आपके साथ रह भी रहा है जैसे कोई पति-पत्नी हैं, प्रेमी- प्रेमिका हैं, या मित्रता से लेकर संसार के किसी भी सम्बन्ध की बात की जाए जिसमें आप साथ रहने के लिए विवश है परन्तु कोई आपको महत्व नहीं देता, आपकी अपेक्षा करता है तो इसे ठीक करने के लिए आप वही गलती करने लगते हैं
यदि कोई आपकी अपेक्षा करता है, आप पर ध्यान नहीं देता अथवा आपसे मित्रता नहीं करता तो आप उसे अपनी ओर लाने के लिए ताने मारते हैं, उस पर झुंझलाते हैं, क्रोध करते है, धमकी देते हैं अथवा उसे गालियां देते हैं तो सोचें ऐसा करके वह आपके निकट आयेगा ? बिल्कुल नहीं बल्कि जो निकट आने की संभावना होगी वह भी समाप्त हो जायेगी.
यदि कोई आपके साथ रह भी रहा है जैसे कोई पति-पत्नी हैं, प्रेमी- प्रेमिका हैं, या मित्रता से लेकर संसार के किसी भी सम्बन्ध की बात की जाए जिसमें आप साथ रहने के लिए विवश है परन्तु कोई आपको महत्व नहीं देता, आपकी अपेक्षा करता है तो इसे ठीक करने के लिए आप वही गलती करने लगते हैं जो सभी करते हैं कि उस पर क्रोध करेंगे, उसे समय – समय ताने मारेंगे, मौन धारण कर लेंगे या फिर कोई और नकारात्मक व्यवहार जिससे उसे पीड़ा हो …
मन को जितना है तो उसके वह सब करो जो उसके मन में सुंगध भर दे, जिससे उसके भीतर की वेदना मिटे, जो उसे अधिक प्रिय हो.
सोचिए ऐसा करके क्या उसका ध्यान आप खींच लेंगे ? नहीं.
यदि आपकी बातों से उसे पीड़ा होगी, आपके व्यवहार से उसे घुटन होगी वह आपके प्रहार से लहूलुहान होगा तो वह कभी आपकी राह आयेगा? जिन राहों में काटें हों जो दिन – रात चुभें तो कोई भी उस राह जायेगा? नहीं.
यदि आप करेंगे तो इससे वह आपकी ओर आयेगा या हमेशा के लिए दूर भागने की सोचेगा? यह जान लीजिए ऐसा करके आप उसे हमेशा के लिए खो देंगे.
यदि किसी को पाना है तो उसके तन को बांधने की कोशिश ही मत करो, तन को बांध भी लिया लेकिन उसके मन को कभी नहीं जीत पाएंगे. आप किसी का गला उतार लें लेकिन उसके मन को पाने का कोई उपाय नहीं होगा.
मन को जितना है तो उसके वह सब करो जो उसके मन में सुंगध भर दे, जिससे उसके भीतर की वेदना मिटे, जो उसे अधिक प्रिय हो.
यह सब उसे दिखाते और जताते हुए नहीं बल्कि बस अपने व्यवहार में परिवर्तन लाकर ऐसा करना है. अचानक अपने भीतर परिवर्तन ले आना है और बस अपने आप में उसके लिए अच्छा करते रहना है बिना कुछ बोले. आप पाएंगे कि थोड़े दिन में ही सब ठीक होने लगा है!
जिन – जिन बातों पर कलह होता था अब वह बातें ही समाप्त हो गई हैं और यदि ऐसी बात सामने ती भी है उसकी ऐसे अपेक्षा जैसे कोई है ही नहीं. बात बनने लगेगी.
सबसे बढ़िया सूत्र यही है कि ” स्वयं पर कार्य करें, स्वयं को इतना सकारात्मक ऊर्जा से भर लें कि आसपास का वातावरण ही बदल जाए.”
अहम त्याग दें, किसी को हराने या किसी को जीतने की मंशा छोड़ दें बस अपने प्रति सरल हो जाएं और सामने वाले के लिए अच्छे भाव, विचार व अपने चेहरे पर उनके लिए निश्छल प्रेम, मैत्री व करुणा भाव रखें. ऐसा करके आप उन्हें दूर करना भी चाहेंगे तो वह आपसे दूर नहीं जायेंगे.
आप जो स्वयं के लिए चाहते हैं वह सामने वाले के लिए अभी करना आरम्भ कर दें, सामने वाला आपकी गोद में बैठेगा.
ध्यान रहे प्रत्येक रिश्ता पानी और मुट्ठी की भांति होता है जैसे ” यदि पानी को मुट्ठी में कसकर बंद करें तो पूरा पानी बह जाता है, वहीं पानी को यदि खुली हथेली पर रखें तो पानी आपकी हथेली पर बना रहता है.” इस संसार में प्रत्येक जीव को वही प्रिय है जिससे उसे खुशी मिलती है, उसे अच्छा लगता है, आनंद मिलता है. साथ सामने वाला उसे बांधने कि कोशिश नहीं करता है.
कोई भी वहां रहना चाहता है जिससे उसकी स्वतंत्रता को खतरा नहीं है या कहें प्रत्येक जीव अपनी स्वतंत्रता से प्रेम करता है, वह बंधन नहीं चाहता.
आप जो स्वयं के लिए चाहते हैं वह सामने वाले के लिए अभी करना आरम्भ कर दें, सामने वाला आपकी गोद में बैठेगा. आशा है आप तक मेरे कहने का तात्पर्य पहुंचा होगा.
(भूपेन्द्र शुक्लेश मानते हैं कि उनका शरीर मध्य प्रदेश के सतना का है लेकिन उनकी आध्यात्मिक यात्रा उन्हें योग और साधना की तपोभूमि उत्तराखण्ड ले आयी. यहाँ वे ऋषिकेश के निकट योग साधना के प्रयोग और आध्यात्मिक यात्रा में लीन हैं. आयुर्वेद के अनेकों प्रयोग उनकी लोक कल्याण की भावना को प्रदर्शित करते हैं. वे पिछले दस वर्षों से शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक रूप से अस्वस्थ या अवसादग्रसत लोगों के जीवन में योग व प्रकृति के माध्यम से मूलभूत परिवर्तन ला रहे हैं.)