‘धर्म की स्थापना और दुष्टों के विनाश के लिए मनुष्य का रूप धरते हैं’

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष

  • ज्योतिर्मयी पंत

कृष्ण जन्माष्टमी, कृष्ण जयंती, गोकुलाष्टमी आदि कई नामों से सुप्रसिद्ध यह दिन हिन्दुओं  का एक अति विशिष्ट पर्व है. इस दिन विष्णु भगवान ने धरती पर श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया. यह विष्णु का आठवाँ  अवतार माना जाता है. इसी दिन को कृष्ण  के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है जिसे जन्माष्टमी भी कहा जाता है. भगवान कृष्ण ने गीता में स्वयं कहा है कि जब-जब धरती पर धर्म का ह्रास होता है. पाप और अत्याचार बढ़ जाते हैं तब-तब धर्मकी रक्षा और सज्जनों के परित्राण के लिए वह स्वयं मानव रूप धारण कर पृथ्वी पर अवतरित होते हैं …

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति  भारत..
अभ्युथानमधर्मस्य  तदात्मानम सृजाम्यहम्  
परित्राणाय साधूनाम् , विनाशाय च दुष्कृताम् .
धर्म संस्थापनाय संभवामि युगे युगे.

इसी कारण द्वापर युग में जब धरती पर अनेक असुर देवों और  लोगों को उत्पीडित कर रहे थे तब वे  भगवान ब्रह्मा के पास विनती करनें पहुँचे. उन्होंने उन्हें  विष्णु के पास भेज दिया. तब सभी देवता ऋषि मुनियों के साथ क्षीर-सागर के पास गए जहाँ विष्णु निवास कर रहे थे. भक्तों की प्रार्थना से प्रसन्न  होकर उन्होंने आश्वासन दिया कि वे शीघ्र ही पृथ्वी पर आयेंगे और दुष्टों का संहार करेंगे.. विष्णु की इच्छा से ही कई देवी-देवता पहले ही धरती पर मानव रूप में आ गए  ताकि प्रभु की. सेवा कर सकें.विष्णु ने  चन्द्र वंश के  यदु और वृष्णि के वंशज वसुदेवऔर उनकी पत्नी देवकी के पुत्र रूप में जन्म लिया .

कृष्ण जन्म

द्वापर युग में मथुरा में कंस राज्य करता था .वह बहुत घमंडी और आततायी था. प्रजा को पीड़ित करता था. देवकी उसकी बहन थी. वह विवाहोपरांत जब जाने लगी तभी आकाशवाणी हुई कि देवकी का  आठवाँ पुत्र कंस का विनाश करेगा. कंस तो क्रोध में  अपनी बहन को मार ही देना चाहता था किन्तु वसुदेव ने विनती कर बचा लिया लेकिन कंस नें उन दोनों को कारागार में डाल दिया. यह भी निश्चित हो गया कि उनकी संतान जन्म  लेते ही कंस को सौप दी जाय. कालांतर में उनकी छः संतानों को कंस नें मार डाला. सातवीं संतान को विष्णु ने ही देवकी के गर्भ से गोकुल निवासी नन्द की पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थान्तरित  कर दिया जो बलराम के रूप में उनके अग्रज हुए.

कृष्ण ने  भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी की तिथि को रोहिणी नक्षत्र में, मध्य रात्रि में जन्म लिया. देवकी और वसुदेव चिंतित थे. विष्णु ने पहले उन्हें दिव्य दर्शन  दे कर आश्वस्त किया और योजना भी जतला दी. अतः जन्म के समय विष्णु की योगमाया से  कारागार के सारे प्रहरी घोर निद्रा के वशीभूत हो गए. उनकी हथकड़ियाँ खुल गयीं. द्वारों की साँकलें स्वतः ही खुल गयी. वसुदेव नवजात शिशु को एक टोकरी में लेकर नन्द के घर की ओर चल पड़े. भयंकर बरसात से यमुना उफान पर थी  पर कृष्ण के पग स्पर्श से नीची  हो गयी ताकि वसुदेव यमुना को पार कर सकें. शेषनाग ने आकर उन्हें भीगने से बचा लिया. नन्द के घर में भी आसानी से प्रवेश हो गया. वसुदेव ने यशोदा के निकट बालक को रख दिया और उनकी सद्यः जन्मा पुत्री को उठा लिया. यह योगमाया ही पुत्री के रूप में जन्मी थी. इसी के वशीभूत होकर यशोदा को याद नहीं रहा कि उनका पुत्र जन्मा था या पुत्री? आँख खुलने पर उन्होंने पुत्र को देखा.

दूसरी ओर  वसुदेव जब वापस पहुँचे तो कारागार के किवाड़ और साँकले फिर से बंध गयीं. पुत्री जन्म की आवाज़े सुन प्रहरी भी जाग उठे तुरंत राजा को सूचना दी गयी. कंस आया उसने पहले की ही भांति बच्चे को दीवार से पटक कर मारना चाहा  लेकिन वह हाथ से फिसल कर आकाश की ओर उड़ गयी और कह गयी “जिस आठवें पुत्र को मार  कर तुम निश्चिन्त होना चाहते हो वह पृथ्वी पर जन्म ले चुका है,तुम्हारा विनाश निश्चित है”. कंस बहुत क्रोधित हुआ. कालांतर में उसने अपनी बहन को स्वतंत्र कर दिया. उसके मन में अब भय था अतः उसने आस-पास के सभी नवजात शिशुओं की हत्या करवा दी जिससे वह चिंता मुक्त हो सके.

गोकुल में नन्द बाबा और यशोदा मैया के लाडले कृष्ण बहुत ही नटखट थे अपनी बाल लीलाओं  और शरारतों से उन्होंने सभी का मन मोह लिया था. घर-घर जाकर माखन चुराना, गोपियों के घट तोडना ग्वाल बालों  के साथ खेलने -कूदने के साथ ही उन्होंने पूतना, तृणावर्त, शकटासुर, कालिया नाग अरिष्टासुर केशी आदि अनेक असुरों का नाश भी किया… गोकुल और वृन्दावन में   गोपियों के साथ रास लीला,  राधा के साथ, प्रेम, वंशी की धुन से सब को आकर्षित करते थे. गाय चराने वन में जाते थे. छोटी आयु में ही उन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली में उठाकर गोकुलवासियों को बचाया और इंद्र पूजा का विरोध किया. इस बीच कंस उनकी वीरता की बातें सुनकर आशंकित हो चुका था कि कही यही तो उनका काल नहीं ? वह उन्हें मरवाने कि चेष्टा भी करने लगा था. उसने मथुरा में उन्हें मल्ल युद्ध देखने के बहाने बुलाया और स्वागत करने के लिए मद मस्त  कुवलय नामक हाथी द्वारा   कुचल कर मरवाने की  योजना बनाई थी. कृष्ण ने हाथी को ही नहीं मारा बल्कि कंस को भी मल्लयुद्ध के लिए ललकार कर उसका भी वध कर दिया. मथुरा  के नागरिकों को कष्ट से मुक्ति मिली .उन्होंने अपने नाना , कंस के पिता  अग्रसेन को राजा बनाया जिनको  कंस ने बंदी बना रखा था. बाद में वे. गोपियों और राधा को छोड़ कर, मथुरा वासियों को रोता हुआ छोड़ कर द्वारका चले गए. अपने मित्र पांडवों को कौरवों के साथ कुरुक्षेत्र  के युद्ध में स्वयं बिना शस्त्र उठाए, रणनीति का ज्ञान देकर  जिताया. अर्जुन को युद्ध भूमि में ही उपदेश दिया जिसमें कर्तव्य और अधिकार, शक्ति और प्रेम, धर्म-अधर्म का पथ पढाया. जो गीता के रूप में युग-युगान्तरों से मानव जाति  को कर्म योग की सीख देता आरहा है. द्वारकाधीश कृष्ण ने रुक्मिणी, सत्यभामा और कालिंदी से विवाह कियाऔर नरकासुर द्वारा बंदी बनाई गयी सोलह हज़ार स्त्रियों, राजकुमारियों से भी विवाह कर उन्हें अपनाया. बाद में किसी व्याध के बाण से आहत होकर वन में ही उन्होंने शरीर त्याग दिया.

जन्म का उत्सव  

इन्हीं श्री कृष्ण का  जन्मदिन  इस दिन मनाया जाता है  अंग्रेजी कैलेण्डर के हिसाब से यह अगस्त या सितम्बर में आता है. यह भारत में ही नहीं अपितु जहाँ-जहाँ भी हिन्दू हों उन देशों में, देश और विदेशों में ISCKON ….के  श्री प्रभुपाद गुरु के अनुयायी , हरे राम हरे कृष्ण की. धुन गाते हुए, ढोल मृदंग, मजीरे बजाते हुए पाश्चात्य भक्तो की टोलियाँ  श्वेत और गेरुए वस्त्रो से सुसज्जित हो कर राधा कृष्ण के मंदिरों में बहुत उल्लास के साथ मनाते हैं  मथुरा वृन्दावन की धूम धाम तो दृष्टव्य होती है .सभी मंदिर सजाये जाते हैं. रंग बिरंगी फूलों और बिजलियों के प्रकाश से सजाये गए मंदिरों की अद्भुत  छटा देखने योग्य होती है  सभी जगह मंदिरों के अलावा घर-घर में..मैदानों में कृष्णजन्म की. बाल लीलाओं की. रास लीलाओं की झाँकियाँ बनाई जाती हैं और जुलूस आदि से  सब स्थानों में प्रदर्शित होती हैं. मेलों का आयोजन, पूजा-पाठ, जप-भजन  कीर्तन, हवन, गीत-संगीत, नाटक, रास नृत्य आदि विविध कार्यक्रम होते हैं.. घरों में छोटे-छोटे बच्चों को कृष्ण के  विविध रूपों में सजाया जाता है. घरो और मंदिरों में जन्म के समय की. बंदीगृह की. कृष्ण को यमुना पार ले जाने की , गायें और ग्वालों की झाँकियाँ बनती हैं. साथ ही घरों और मंदिरों  झूले में बाल गोपाल को स्थापित किया जाता है जिसे सभी लोग अवश्य झुलाते हैं. भक्त जन और सभी बड़े  लोग, स्त्री- पुरुष इस दिन उपवास रखते हैं. मध्य रात्रि में कृष्ण जन्म की पूजा  पूरे धार्मिक अनुष्ठान के साथ होती है और आरती के बाद ही भोजन ग्रहण करते हैं. भोजन में मुख्य रूप से फलाहारी व्यंजन बनते हैं प्रसूता स्त्री के लिए बनाये जाने वाले पंजीरी   के मिष्ठान्न अवश्य ही बनते हैं और मुख्य प्रसाद में वितरित किये जाते हैं.

हमारे देश के सभी प्रदेशो में यह पर्व  मनाया जाता है. मथुरा वृन्दावन, द्वारका, मणिपुर में तो उत्साह देखने योग्य होता है. पूर्व से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण तक सभी जगह अपनी-अपनी परम्पराओं के साथ मनाया जाता है … महाराष्ट्र में इसे गोकुलाष्टमी कहा जाता है. यहाँ दही हांडी का आयोजन हर जगह होता है. जिसमें दही की हांडी को ऊँचे स्थान पर लटकाया जाता है जिसे बच्चो और बड़ों की टोलियाँ मानव स्तूप बनाकर तोड़ने का प्रयास करती हैं , जीतने वालों को पुरस्कार भी दिए जाते हैं. आजकल तो लाखो की बोली भी लगती है ऐसे कार्य क्रमों में.

गृहस्थी ही नहीं अपितु साधु-सन्यासी भी कृष्ण भक्ति में लीन रहते हैं. कृष्‍ण केवल परमात्मा के स्वरुप में नहीं पूजे जाते. लोग उनको सखा, पति, नेता, पथ -प्रदर्शक, दार्शनिक गुरु और संरक्षक भी मानते  हैं. भक्ति काल के कवियों-सूर, मीरा, जायसी, कबीर, रसखान आदि ने कृष्ण के अनेक रूपों का अद्वितीय वर्णन किया है सूरदास ने बल लीलाओं का अद्भुत वर्णन किया है. कृष्ण जन मानस में इतने रचे-बसे हैं कि साहित्य में भी सर्वत्र वर्णन मिलता है. प्रेम. कर्तव्य, कर्म योग, वैराग्य, निष्काम कर्म की पराकाष्ठा हैं कृष्ण.. . पुराणों के आख्यान हों या. भजन कीर्तन, गीत संगीत, लोकगीत, संस्कार गीत, नृत्य नाटिकाओं की भंगिमाएं हों या. फ़िल्मी संगीत  उनके  बिना अधूरे हैं.

कृष्णकी लीला या चरित्र

सांसारिक दृष्टि से अभिभूत होकर कई लोग यह संदेह करते हैं कि श्री कृष्ण  शरारती थे ,माखन चोर थे,गोपियों को सताते थे, यहाँ तक की विवाहित गोपियाँ भी उनकी मुरली की धुन सुन अपना घर-बार छोड़ उनसे मिलनें, रास रचाने चली जाती थीं राधा से उनका प्रेम था… उन्होंने सोलह हज़ार स्त्रियों  को अपनी रानी बनाया जो समाज के व्यवहार. के अनुकूल नहीं.

परन्तु कृष्ण का अवतार ही लोगों  को आनंदित करने के लिए हुआ था वे परब्रह्म-परमात्मा, सत-चित-आनंद स्वरुप थे. गोपियाँ उसी परमात्मा का अंश थीं. जीवन का ध्येय  ही आत्मा का परमात्मा से मिलकर चरम स्थिति  को प्राप्त करना है. अतः गोपी रूपी आत्माएं कृष्ण रूपी  परमात्मा से  मिलने को सदा आतुर रहती थीं. गृहस्थी रूपी माया जाल  को छोड़ कर ही प्रभु से मिलन हो सकता है  इसी हेतु प्रत्येक गोपी के साथ एक ही समय में कृष्ण कई रूप धारण कर मिल सकते थे यानी एक परमात्मा सभी आत्माओं में एक साथ उपस्थित हो सकता है, सभी में एक ही परब्रह्म-परमात्मा का अंश है कोई भेद नहीं .राधा तो विष्णु की  अर्धांगिनी लक्ष्मी ही थीं अतः जहाँ कृष्ण वहां राधा. कृष्ण का गोपियों को सताना भी असम्मत न हीं था क्योंकि  कृष्ण की  आयु छोटी थी.जहाँ तक सोलह हज़ार रानियों का सवाल है … नरकासुर ने उन स्त्रियों बंदी बनाकर रखा था. वह जिन राज्यों को जीतता वहाँ की स्त्रियों को कैद कर लेता था. कृष्ण ने जब उसका वध किया तो वे सब बेसहारा हो गयीं. तब उन्होंने उन्हें अपनी रानी का दर्ज़ा देकर सम्मान से जीने का अवसर प्रदान किया था. द्रौपदी की रक्षा के लिए वे तुरंत आ पहुंचे थे  जब कि उसके पांच पतियों ने ही उसे द्यूत क्रीडा मेंदांव पर लगा दिया और दुशासन उनका भरी सभा में चीर हरण करने लगा. इसी तरह अर्जुन को कौरवों के  साथ युद्ध करने को प्रोत्साहन देना भी युद्ध या हिंसा को बढ़ावा देना नहीं था वरन अपने अधिकार को प्राप्त करने के लिए उठाया गया कदम था जो कि तब लिया गया जब कृष्ण स्वयं पांडवों की. ओर से शांति दूत बन कर गए थे और दुर्योधन ने सुई   कि नोंक बराबर भूमि भी देने से मना कर दिया था .क्षमा  करते रहने से भी विपक्ष और ढीठ हो जाता है अतः प्रतिकार करना भी आवश्यक है. इसीलिए युद्ध करने कि सलाह अर्जुन को दी गयी थी. अतः यह ध्यान में रखना आवश्यक है.

 

दूसरी ओर आध्यात्मिकता की दृष्टि से देखा जाय तो कृष्ण  जन्म का आख्यान ही  मनुष्यों को जन्म के बंधन से मुक्त करने का अनुपम उदाहरण  प्रस्तुत करता है  यथा.. उनके माता-पिता  कारागार में जंजीरों से जकड़े हुए बंदी थे. मध्यरात्रि के अंधकार में जैसे ही कृष्ण जन्म हुआ सैनिक सो गए, जंजीरें खुल गयीं .द्वार स्वतः खुल गए. अर्थात जब ज्ञान उत्पन्न होता है तो अज्ञान का अंधकार दूर हो जाता है. मोह माया लोभ आदि की जंजीरें खुल जाती हैं शरीर में बंदी बनी आत्मा को बंधन से छुटकारा मिलता है. जहाँ ह्रदय में भगवान विराजते हैं वहाँ संशय के ताले अपने आप टूट जाते हैं  और आत्मा को आनंद की प्राप्ति होती है.

कृष्ण शब्द कि व्युत्पत्ति भी  कर्षति इति कृष्णः  अर्थात जो आकर्षित  करता है वह कृष्ण है .कृष्यति इति कृष्णः अर्थात जो आनंददाई  है और क्रिशिति इति अर्थात  जो कृषि करता है.. हृदय रूपी खेत में प्रेम के बीज बोता है अज्ञान रूपी घास आदि को नष्ट कर देता है वह कृष्ण है.

कृष्ण कान्हां, कन्हैया, मुरली धर, गिरिधर, माधव, केशव, वासु देव, यशोदानंदन, देवकीनंदन, गोपाल. आदि अनेक नामों से प्रसिद्ध हैं. इस कलियुग में भी उन  के भक्तों ने अनेक चमत्कारों का अनुभव किया है. मीरा, नरसीभगत जैसे कई भक्तो की रक्षा कृष्ण ने की है. वैष्णव  सम्प्रदाय के पुष्टि मार्ग के अनुयायी, अष्टछाप के कवि, सूफीवाद और हिन्दुओं के विशिष्टाद्वैतवाद शाखा में कृष्ण ही विद्यमान हैं.

भगवान अवतार क्यों लेते हैं?    

परम शक्तिमान होते हुए भी वे धरती पर मनुज रूप में क्यों आते हैं? वे तो दृष्टिमात्र से. सारे संकट दूर करने में समर्थ हैं. इसके उत्तर में पहले ही कृष्ण ने कहा है कि वे धर्म की स्थापना और दुष्टों के विनाश के लिए मनुष्य का रूप धरते हैं. दूसरा कारण यह है कि इससे लोग उनसे तादात्म्य स्थापित कर सकते हैं .अपने ही समान समझ कर प्रेरणा ले सकते हैं. विष्णु द्वापर से पहले त्रेता युग में राम का अवतार ले चुके थे इन दोनों अवतारों में उनके कार्यकलाप कही सम थे तो कही विषम. राम सूर्य वंशी थे तो कृष्ण चंद्रवंशी. राम ने मधुमास में दिन के समय जब न अधिक गर्मी थी न सर्दी ,राजकुल में, महल में अपरम्पार खुशियों के बीच जन्म लिया. कृष्ण ने घनघोर रात्रि के अंधकार में जेल में बंदी माँ की  कोख से जन्म लिया. राम माताओं के साथ आनंद से रहे कृष्ण को जन्म लेते ही माँ को छोना पड़ा. बचपन में ही कई असुरों का वध किया. राम ने पत्नी वियोग सहा,उसके लिए रावन को मारा. कृष्ण को राधा के साथ असंख्य गोपियों का प्यार मिला. और वे उनके वियोग में रोयीं. राम ने  रावण को जीत कर राज्य विभीषण को दिया. कृष्ण ने अपने ही मातुल कंस को  मार  कर उसका राज्य अग्रसेन को दिया.पांडवों को जिताया और राज्य युधिष्ठिर को सौंपा. राम ने सभी कार्य आदर्शों की स्थापना के लिए किए, कृष्ण ने औरों की ख़ुशी के लिए निष्काम कर्म किए और इसी का प्रचार भी किया.

काल्पनिक या ऐतिहासिक पात्र      

श्री कृष्ण केवल काल्पनिक पात्र थे या वास्तविक? लोगो की आस्था में काल्पनिकता रहती ही नहीं उनके लिए कृष्ण साक्षात् भगवान ही अवतरित हुए थे. उनके आख्यानों में वर्णित सभी स्थान. मथुरा, वृन्दावन, गोकुल बरसाना, गोवर्धन पर्वत, इन्द्रप्रस्थ, कुरुक्षेत्र, द्वारका इन्हीं नामों से विद्यमान हैं. भूगर्भशास्त्रियों व वैज्ञानिकों ने 3200-3100 ई०पू० का समय निश्चित किया है. द्वारकानगरी के डूबने का दृश्य अर्जुन ने देखा था, द्वारका के  समुद्र में डूबे अवशेष बेट द्वारका में पाए गए हैं.. वैदिक आख्यानो के अनुसार महाभारत युद्ध के बाद कलियुग का आरम्भ माना जाता है, ज्योतिष शास्त्रों की गणना के आधार पर यह समय 3200-3100 ई०पू० के आस पास ही है. लेकिन सभी को मान्य कोई तथ्य उपलब्ध नहीं.. जो भी हो कृष्ण के उपदेशों की महत्ता सार्वभौमिक और सार्वकालिक है… आधुनिक समय में अगर हर व्यक्ति उनके निष्काम कर्मयोग और कर्म फलों में अनासक्ति की सीख अपना लें तो संसार से दुखों और आतंकों का आमूल नाश हो सकता है  श्री कृष्ण साक्षात् पर ब्रह्म है, ऐतिहासिक या काल्पनिक यह अपनी-अपनी आस्था पर निर्भर है पर उनके द्वारा किए गए कार्य और गीता के उपदेश तो परम सत्य हैं उन्हें अपनाकर जीवन के सत्य को अनुभूत किया जा सकता है. जीवन मुक्ति का आनंद जीवित रहते हुए पाया जा सकता है. हम उन्हें अपने हृदय में आसीन करें तो हर क्षेत्र  में विजय प्राप्त होगी क्योंकि…

यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः.
तत्र श्रीर्विजयो  भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम् .

आइये इस बार उल्लासपूर्वक त्यौहार मनाएँ.

(ज्योतिर्मयी पंत, गुरुग्राम, संपर्क-09911274074)

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