विश्व-साहित्य के युगनायक- प्रेमचन्द, गोर्की और लू शुन 

मुंशी प्रेमचंद के जन्मदिन पर विशेष

  • डॉ. अरुण कुकसाल

प्रेमचंद, गोर्की और लू शुन तीन महान साहित्यकार, कलाकार और चिंतक. जीवनभर अभावों में रहते हुए अध्ययन, मनन, चिन्तन और लेखन के जरिए बीसवीं सदी के विश्व-साहित्य के युगनायक बने. एक जैसे जीवन संघर्षों के कारण तीनों वैचारिक साम्यता, स्वभाव और व्यवहार के भी करीब थे. पढ़ने-लिखने का चस्का तीनों पर बचपन से था. प्रेमचन्द के पहले अध्यापक एक मौलवी थे जो उन्हें उर्दू-फारसी सिखाते थे. गोर्की ने अपनी नानी से सुनी कहानियों की हकीकत जानने की जिज्ञासा से पढ़ना शुरू किया. लू शुन मेघावी छा़त्र थे इस कारण पढ़ने का जनून उनमें बचपन से ही था. तीनों के पिता का निधन बचपन में ही हो गया था. निर्धनता के कारण पढ़ने के लिए कई कटु अनुभवों से गुजरना पड़ा था. पर अपनी स्वाध्याय के प्रति जबरदस्त जिद्द के कारण उन्होनें हर मुसीबत का डटकर मुकाबला किया था.

जनवादी लेखक हंसराज रहबर का यह कथन सच है कि ‘दुनिया के चार बड़े लेखक हैं- डिकेंस, गोर्की, लू शुन और प्रेमचन्द. इन चारों ने जनता को ऐसे प्यार किया जैसे मां अपने बच्चे से करती है, जो उनका दोष नहीं देखती.’ आम जन के प्रति अथाह प्रेम ही इन साहित्यकारों को विशिष्ट बना देता है. इन्होने साबित किया कि लगन और परिश्रम से उच्च कोटि की प्रतिभा को हासिल किया जा सकता है.

जनवादी लेखक हंसराज रहबर का यह कथन सच है कि ‘दुनिया के चार बड़े लेखक हैं- डिकेंस, गोर्की, लू शुन और प्रेमचन्द. इन चारों ने जनता को ऐसे प्यार किया जैसे मां अपने बच्चे से करती है, जो उनका दोष नहीं देखती.’ आम जन के प्रति अथाह प्रेम ही इन साहित्यकारों को विशिष्ट बना देता है. इन्होने साबित किया कि लगन और परिश्रम से उच्च कोटि की प्रतिभा को हासिल किया जा सकता है. इनके साहित्यिक पात्र अमानवीयता, निर्धनता, पतन की परिस्थितियों में रहते जरूर हैं पर वे इन परिस्थितियों से टक्कर लेते हैं और अपने को बदलकर बेहतर इंसान बनना चाहते हैं. इसके लिए उन्होने इस विचार को अपने साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान दिया कि ‘आवश्यकता पूरे समाज को बदलने की है’. अपने समय के राजनैतिक विचारकों से प्रभावित गोर्की पर लेलिन का, प्रेमचन्द पर महात्मा गांधी का और लु शुन पर माओत्से-तुंग का प्रभाव दिखाई देता है. एक ही समय अन्तराल में गोर्की ने रूसी क्रान्त्रि, प्रेमचन्द ने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन और लू शुन ने चीन की बोल्शेविक क्रान्त्रि को साहित्यिक योगदान देकर निर्णायक बिन्दु तक पहुंचाने में कारगर भूमिका निभाई थी.

मैक्सिम गोर्की का जन्म 28 मार्च, 1868 को रूस के नोवगोरोद शहर में एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था. उनका असली नाम अलेक्सेई मक्सीमोविच पेशकोव था. अपनी पहली कहानी ‘मकरचुद्रा’ में सम्पादक ने उनका नाम मैक्सिम गोर्की लिख दिया था (‘गोर्की’ का रूसी अर्थ जीवट व्यक्ति होता है). फिर तो उसी नाम को उन्होने अपना लिया था. गोर्की के सृजित साहित्य में ‘मां, ‘मेरा बचपन’, ‘जीवन की राहों पर’ और ‘मेरे विश्वविद्यालय’ को विश्व की श्रेष्ठ कृत्तियों में शामिल किया जाता है. गोर्की की विश्वविख्यात लेखक होने की लोकप्रियता के बारे में सामान्यतया कहा जाता है कि विश्व के महानतम तीन लेखकों में से दो नाम और क्रम कोई भी हो पर एक नाम उसमें मैक्सिम गोर्की का होना स्वाभाविक है. 18 जून, 1936 को मैक्सिम का देहान्त हुआ था.

प्रेमचन्द का जन्म 31 जुलाई, 1880 में बनारस के नजदीक लमही गांव में हुआ था. उनका असल नाम धनपत राय था. ‘प्रेमाश्रम’, ‘संग्राम’ ‘कर्बला’ ‘रंगभूमि’, ‘गोदान’, ‘गबन’, ‘कर्मभूमि’, ‘मंगल-सूत्र’ प्रेमचन्द की अमर रचनायें हैं. मार्च, 1930 से कथासाहित्य की प्रतिष्ठित ‘हंस’, पत्रिका का संपादन उन्होने आरम्भ किया था. प्रेमचन्द ने 3 फिल्मों (मिल मजदूर, नवजीवन और रूठी रानी) के लिए भी कहानी लिखी थी. ‘मिल मजदूर’ फिल्म में मजदूरों के बीच भाषण देने का एक फिल्मी रोल भी उन्होने निभाया था. आज भी विश्वसाहित्य में प्रेमचन्द भारतीय समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं. 8 अक्टूबर, 1936 को प्रेमचन्द का देहान्त हुआ.

लू शुन का जन्म 25 सितम्बर, 1881 चीन के चेक्वांग प्रांत के शाओशिंग गांव में हुआ था. उनका असली नाम चाऊ-सू-रन था. ‘एक पागल आदमी की डायरी’, ‘हथियार उठाओ’ (ना-हान), ‘आने वाला कल’, ‘चाय की प्याली में तूफान’, ‘मेरा पुराना घर’, ‘जंगली घास’, आह क्यू की सच्ची कहानी’, ‘नये साल की बलि’ उनकी प्रसिद्ध रचनायें हैं. जापान से डाक्टरी की पढ़ाई बीच में छोड़कर वे साहित्य लेखन के लिए वापस चीन आ गए थे. उस समय की तात्कालिक परस्थितियों में उनका विचार था कि चीनी लोगों को शारीरिक से ज्यादा मानसिक इलाज की जरूरत है. जो कि क्रान्तिकारी साहित्य के प्रचार-प्रसार से ही संभव है. क्रान्तिकारी साहित्य सजृनकर वे चीन की बोल्सेविक क्रान्ति के अग्रणी बने. 19 अक्टूबर, 1936 को लू शुन का देहान्त हो गया था.

प्रेमचन्द, गोर्की और लू शुन ने एक ही समय अन्तराल पर अपने-अपने देशों में आम आदमी की आवाज को अपने साहित्य में बुलंद किया था. इन तीनों की साहित्यिक मैत्री ने तीनों देशों की साझी विरासत को नया आयाम भी प्रदान किया था. गोर्की ने माना कि ‘मानव जाति के इतिहास का उल्लेख यूनान और रोम से नहीं वरन भारत और चीन से आरम्भ किया जाना चाहिए. इसी तरह लू शुन ‘रामायण’, ‘महाभारत’ और ‘पंचतंत्र’ को विश्व-साहित्य में भारत का अमूल्य योगदान मानते थे.

गोर्की, प्रेमचन्द और लू शुन का व्यक्तित्व विश्व इतिहास में एक विशिष्ट समय और परस्थितियों से प्रभावित होकर आम आदमी के उन संघर्षों के प्रतीक बने जो आज भी जरूरी हैं. तीनों ने ‘कला कला के लिए’ के विचार को अस्वीकार करते हुए उसे साहित्य को समाज के प्रति उत्तरदायी माना था. गोर्की और प्रेमचन्द ने सामाजिक चेतना के लिए उपन्यास को एक कारगर हथियार बनाया. लू शुन ने मार्च, 1918 में चीनी साहित्य में आम आदमी की भाषा में ‘एक पागल आदमी की डायरी’ पहली कहानी लिखकर तत्कालीन चीन के मांचू साम्राज्य को अकेले ही चुनौती दे दी थी. गोर्की साहित्य में रोमांटिक और बेपरवाह, प्रेमचन्द थोड़ा आर्दशवादी तो लू शुंग तीखे तर्कों के साथ तल्खी लिए हुए थे. परन्तु तीनों का मानना था कि देश-काल और परस्थिति अलग-अलग हो सकती हैं, लेकिन मनुष्य की मूलभूत समस्याएं, दुःख-सुख, शोषण-उत्पीड़न, समता और स्वाधीनता का उनका सपना एक जैसा है. साहित्य का उदे्श्य है, खुद अपने को जानने में मानव की मदद करना है. इसलिए अगर उदेश्य एक है तो कला और साहित्य में समानता तो दिखेगी ही.

बार-बार यह विचार मन-मस्तिष्क में आ रहा कि प्रेमचन्द, गोर्की और लू शुन की साहित्यिक साम्यता और दोस्ती की तरह आज के वैश्विक राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक धरातल पर रूस, भारत और चीन यदि एकजुट हो जाएं तो दुनिया के चेहरे की रंगत ही बदल जायेगी.

प्रेमचन्द, गोर्की और लू शुन ने एक ही समय अन्तराल पर अपने-अपने देशों में आम आदमी की आवाज को अपने साहित्य में बुलंद किया था. इन तीनों की साहित्यिक मैत्री ने तीनों देशों की साझी विरासत को नया आयाम भी प्रदान किया था. गोर्की ने माना कि ‘मानव जाति के इतिहास का उल्लेख यूनान और रोम से नहीं वरन भारत और चीन से आरम्भ किया जाना चाहिए. इसी तरह लू शुन ‘रामायण’, ‘महाभारत’ और ‘पंचतंत्र’ को विश्व-साहित्य में भारत का अमूल्य योगदान मानते थे.

बार-बार यह विचार मन-मस्तिष्क में आ रहा कि प्रेमचन्द, गोर्की और लू शुन की साहित्यिक साम्यता और दोस्ती की तरह आज के वैश्विक राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक धरातल पर रूस, भारत और चीन यदि एकजुट हो जाएं तो दुनिया के चेहरे की रंगत ही बदल जायेगी.

(लेखक एवं प्रशिक्षक)

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