कैंची धाम मेले के लिए श्रद्धालुओं को करनी होगी एक साल की प्रतीक्षा

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कैंची धाम मेला 15 जून पर विशेष

भुवन चंद्र पंत

प्रतिवर्ष 15 जून को कैंची धाम का मालपुआ भण्डारा इस बार भी कोविड-19 के चलते नहीं होगा और न इस मौके पर कैंची धाम मन्दिर के दर्शन करने का सौभाग्य श्रद्धालुओं को मिल पायेगा. जिसकी साल भर से श्रद्धालुओं को प्रतीक्षा रहती है. वर्ष 1964 में सन्त बाबा नींब करौरी महाराज द्वारा स्थापित कैंची धाम मन्दिर के प्राणप्रतिष्ठा because समारोह को आने वाले वर्षों में एक वार्षिक समारोह का रूप दिया गया और तब से उत्तरोत्तर यहां आने वाले दर्शनार्थियों की संख्या बढ़ते गयी. विगत् वर्षों में दर्शनार्थियों की संख्या में जो उछाल आया, उसके पीछे एक कारण यह भी रहा कि वर्ष 2017 में जब देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अमेरिका के दौरे पर गये तो वहां फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग ने भारत के चमत्कारी सन्त बाबा नींब करौरी का जिक्र प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से किया. स्वाभाविक था कि यह समाचारों की सुर्खियां बना.

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कैंची धाम में 15 जून को होने वाले मेले के लिए मालपुए बनने की तैयारी 4-5 दिन पूर्व से हो जाती है. मालपुए बनाने वाले कारीगर मथुरा के पास के गांव से बुलाये जाते हैं. because मालपुए बनाने वाले कारीगरों व सहयोगी भक्तों को उपवास लेकर तथा धोती व कुर्ता पहनकर ही मालपुआ बनाना होता है. साथ ही मालपुआ बनाते समय निरन्तर हनुमान चालीसा का पाठ हर कार्यकर्ता को करना होता है.

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उत्तर भारत के अधिकांश लोग तो बाबा नींब करौरी के प्रति अटूट श्रद्धा रखते ही थे, मीडिया द्वारा प्रसारित इस समाचार के माध्यम से  देश के दूसरे हिस्सों तथा विदेशों तक चमत्कारी सन्त बाबा because नींब करौरी की लोगों को जानकारी मिली और जो पूर्व से बाबा के बारे में जानते थे, उनकी भी बाबा के प्रति श्रद्धा और अधिक बढ़ गयी. परिणाम स्वरूप विगत् वर्षों में इस एक दिवसीय समारोह में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लाखों में पहुंच गयी.

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नीम करौली बाबा

15 जून का वार्षिक समारोह श्रद्धालुओं के लिए because बाबा के धाम में मत्था टेकने का एक अवसर होता है, जिसे कोई भक्त खोना नहीं चाहता. इसके साथ ही इस समारोह का एक आकर्षण मन्दिर में आने वाले श्रद्धालुओं को प्रसाद रूप में दिया जाने वाला मालपुआ भी रहता है. यों तो महाराज जी के जीवनकाल में जितनी अवधि के लिए बाबा नींब करौरी कैंची धाम के प्रवास में रहते, प्रतिदिन शुद्ध देशी घी से निर्मित आलू व पूड़ी का प्रसाद भरपेट मन्दिर परिसर में ही करवाया जाता था और भण्डारे का सिलसिला सुबह से सन्ध्या because तक निरन्तर चलता रहता. लेकिन मालपुए का प्रसाद सिर्फ 15 जून को ही वितरित किया जाता है.

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कैंची धाम में 15 जून को होने वाले मेले के लिए मालपुए बनने की तैयारी 4-5 दिन पूर्व से हो जाती है. मालपुए बनाने वाले कारीगर मथुरा के पास के गांव से बुलाये जाते हैं. मालपुए बनाने because वाले कारीगरों व सहयोगी भक्तों को उपवास लेकर तथा धोती व कुर्ता पहनकर ही मालपुआ बनाना होता है. साथ ही मालपुआ बनाते समय निरन्तर हनुमान चालीसा का पाठ हर कार्यकर्ता को करना होता है मालपुए के मुख्य घटक – गेहूं का आटा, सौंफ, कालीमिर्च, चीनी का घोल बनाकर फिर उसे शुद्ध देशी घी में तैयार किया जाता है.

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लाखों की संख्या में आने वाले भक्तों को वितरित करने के लिए बने हुए मालपुओं के ढेर से भण्डारगृह के कमरे पटे रहते हैं तथा वितरण के लिए बांस पेपर की थैलियों में दो-दो मालपुओं because की पैंकिंग तैयार कर तथा साथ में सब्जी का एक पैक्ड डिब्बा प्रत्येक दर्शनार्थी को वितरित किया जाता है. पहले मन्दिर परिसर में ही बिठाकर प्रसाद ग्रहण करवाया जाता था, लेकिन निरन्तर बढ़ती संख्या के कारण यह संभव नहीं हो पाया और अब पैक्ड प्रसाद वितरित किया जाता है.

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भक्त, बाबा नींब करौरी को हनुमान का साक्षात् अवतार मानते हैं. बाबा जब सशरीर थे, तो लोगों से बात करते करते भी वे मन ही मन राम नाम बुदबुदाते रहते, जिसका आभास उनके होंठों because की कम्पन से देखा जा सकता था. आश्रम में आने वाले आस-पास के छोटे बच्चे जो प्रसाद के लोभ से वहां आते उन्हें भी वे कागज में राम नाम लिखने को कहते तथा राम नाम लिखी इन छोटी-छोटी पर्चियों को आटे के अन्दर डालकर पास में बहने वाली शिप्रा नदी में मछलियों को खिलाने को कहते. फिर क्या था, बच्चे कागज पर छोटे-छोटे शब्दों में राम नाम लिखकर उनकी पर्चियां बनाते और भण्डारे से गुंथा हुआ आटा लेकर उनके अन्दर राम नाम की पर्चियां डालकर मछलियों को खिलाते.

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हार्वड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. रिचर्ड एलबर्ट जब 1967 में महाराज के पास कैंची धाम आये तो बाबा के चमत्कारी व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उन्हीं के हो गये. महाराज जी ने इनको because भी रिचर्ड एलबर्ट से रामदास नाम दिया, जो इसी नाम से प्रसिद्ध हो गये. इस प्रकार भगवान राम तथा हनुमान का नाम लोगों को देकर उनकी भगवान राम के प्रति अनन्य श्रद्धा को दर्शाता है.

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कैंची धाम का वातावरण सन् 1964 में बाबा because नीब करौरी के यहां आने के बाद ऐसा राममय हो गया, जो आज भी यहां अहर्निश राम-नाम संकीर्तन से प्रतिध्वनित होता रहता है. बृन्दावन धाम से आने वाली कीर्तन मण्डली द्वारा बारहों मास ’’श्री राम, जय राम, जय जय राम’’ के नाम संकीर्तन से गुंजायमान रहता है. यही राम-नाम धुन बाबा नींब करौरी को सबसे प्रिय थी.

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उतीस का वह पेड़ जिसके because
नीचे शिला पर महाराज बैठा करते थे तथा पीछे यज्ञशाला

राम नाम के प्रति उनकी अनन्य भक्ति इतनी थी कि वे सर्वत्र राममय रहते. यहां तक कि महाराज जी के कार के चालकों के नाम भी रामानन्द व रामावतार थे.  महाराज जी जब कुछ because महीनों के कैंची प्रवास में आते तो अपनी जीप में इन्हीं चालकों को साथ लेकर आते. जब तक महाराज यहां रहते तो रामानन्द अथवा रामावतार में से एक यहीं रहते. इस नाम के चालक मिलना महज संयोग था या इसी नाम के चालक उन्होेंने तलाश किये अथवा महाराज जी ने ही उन्हें ये नाम दिये, यह ज्ञात नहीं. कैंची धाम के ठीक सामने ग्रामीण  भैरव दत्त का घर था. वे अक्सर महाराज के सान्निध्य में रहते. जब उनका पहले पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई तो महाराज जी ने पुत्र का नाम मारूति रखने का आदेश दिया और नवजात को यही नाम दिया गया. दुर्भाग्यवश युवावस्था में ही मारूति संसार से विदा कर गया.

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मन्दिर के मुख्य द्वार के समीप मारूति रैस्टोरेन्ट, जो उसके भाई द्वारा संचालित किया जाता है, आज भी इस धटना की बरबस याद दिलाता है. इसी तरह नैनीताल की भी एक माताजी because रेखा साह महाराज की अनन्य शिष्य थी, उनके पुत्र का नाम भी मारूतिनन्दन शायद महाराज जी द्वारा सुझाया ही नाम रहा होगा. हार्वड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. रिचर्ड एलबर्ट जब 1967 में महाराज के पास कैंची धाम आये तो बाबा के चमत्कारी व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उन्हीं के हो गये. महाराज जी ने इनको भी रिचर्ड एलबर्ट से रामदास नाम दिया, जो इसी नाम से प्रसिद्ध हो गये. इस प्रकार भगवान राम तथा हनुमान का नाम लोगों को देकर उनकी भगवान राम के प्रति अनन्य श्रद्धा को दर्शाता है.

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अन्य सन्त महात्माओं की because तरह नींब करौरी महाराज प्रवचन नहीं दिया करते थे. अपने भक्तों को चाहिये की भाषा में प्रेरणात्मक सन्देश देने के बजाय उनका हुक्म भक्तों के लिए आदेशात्मक होता था, जो भक्त अपने हित के लिए शिरोधार्य करते थे. आदेश चाहे कितना ही अटपटा लगे, उसमें किन्तु, परन्तु की कोई गुंजाईश वे नहीं छोड़ते.

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सनातन संस्कृति में अन्न को ही ब्र्रह्म कहा गया है. तैत्तरीय उपनिषद् के अनुसार ’’अन्नं ब्रह्मेति व्यजानात्’’. अन्न से समस्त प्राणियों की उत्पत्ति होती है, उसी के बल पर वे जीवित रहते हैं but और देहावसान के बाद उसी में समाविष्ट हो जाते हैं. इसलिए अन्नदान विशेष रूप से पके हुए भोजन का दान सर्वश्रेष्ठ माना गया है. इसीलिए भण्डारों का आयोजन किया जाता है. मख यानि यज्ञादि को जो महत्व दिया जाता है, वही महत्व शरीर रूपी यज्ञशाला में शरीर की जठराग्नि को तृप्त करने के लिए भोजन रूप में दी जाने वाली हवि, हवन का ही एक प्रकार है.

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कैंची धाम में महाराज जी के जीवनकाल में तो हर रोज भण्डारे का आयोजन पूरे दिन चलता ही रहता, लेकिन अब भी विशेष पर्वों गुरूपूर्णिमा, नवरात्रि आदि अवसरों पर तथा 15 जून को प्रतिवर्ष वार्षिक समारोह पर जो भण्डारा आयोजित होता है, उसमें तो लाखों की संख्या में दर्शनार्थी मालपुए का प्रसाद छकते हैं. कैंची धाम के दर्शन की जो लालसा है, मालपुए के प्रसाद को पाने की भी उससे कम नहीं रहती.

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अन्य सन्त महात्माओं की तरह नींब करौरी महाराज प्रवचन नहीं दिया करते थे. अपने भक्तों को चाहिये की भाषा में प्रेरणात्मक सन्देश देने के बजाय उनका हुक्म भक्तों के लिए आदेशात्मक so होता था, जो भक्त अपने हित के लिए शिरोधार्य करते थे. आदेश चाहे कितना ही अटपटा लगे, उसमें किन्तु, परन्तु की कोई गुंजाईश वे नहीं छोड़ते. दरअसल उनके चमत्कार समझना व देखना इतना आसान नहीं था, जब कोई घटना घटित होती, तब उनके चमत्कार का आभास बाद में होता.

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इस वर्ष दूसरी बार वैश्विक आपदा कोरोना because के चलते 15 जून का चर्चित कैंची धाम मेला नहीं हो पायेगा तथा मन्दिर के कपाट दर्शनार्थियों के लिए बन्द रहेंगे. महाराज जी के भक्त अपने घर से ही कैंची धाम तथा महाराज जी का स्मरण कर इस वैश्विक महामारी से मुक्ति के लिए प्रार्थना करें और आगामी वर्ष के इस आयोजन की प्रतीक्षा करें.

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(लेखक भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय नैनीताल से सेवानिवृत्त हैं तथा प्रेरणास्पद व्यक्तित्वोंलोकसंस्कृतिलोकपरम्परालोकभाषा तथा अन्य सामयिक विषयों पर स्वतंत्र लेखन के अलावा कविता लेखन में भी रूचि. 24 वर्ष की उम्र में 1978 से आकाशवाणी नजीबाबादलखनऊरामपुर तथा अल्मोड़ा केन्द्रों से वार्ताओं तथा कविताओं का प्रसारण.)

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