दुदबोलि पत्रिका का लोकार्पण एवं ऋषिबल्लभ सुंदरियाल व मथुरादत्त मठपाल की याद में संगोष्ठी आयोजित

सी एम पपनैं

संगोष्ठी के प्रथम सत्र में मंचासीन रमेश घिन्डियाल, महेश चंद्रा, दिनेश मोहन घिन्डियाल, कुसुम कन्डवाल भट्ट व रोहित सुंदरियाल प्रबुद्ध वक्ताओं द्वारा गढ़वाली बोली-भाषा में ऋषिबल्लभ सुंदरियाल के कृतित्व व व्यक्तित्व पर सारगर्भित प्रकाश डाल कर व्यक्त किया गया, ऋषिबल्लभ सुंदरियाल छोटी उम्र में ही एक प्रखर वक्ता, कुशल रणनीतिकार व सशक्त विचारधारा के बल राष्ट्रीय पहचान बनाने में सफल रहे। उनके विचारों व जन के प्रति अपार निष्ठा व भावना को देख प्रभावित हुए बिना नहीं रहा जा सकता था।

उन्होंने अपने आदर्शो को आगे रख, अपनी पूरी जिंदगी हिमालय बचाओ, हिमालय बसाओ जैसे संवेदनशील मुद्दे पर दाव पर लगा कर रखी। हिमालय बचाओ आंदोलन में उनकी सक्रियता व उनके सामाजिक योगदान ने जनमानस के मध्य अमिट छाप छोडी थी। 1974 मे उनकी मृत्यु पर जन द्वारा शंखा व्यक्त की गई थी। जनभावना रही उनको मारा गया था। आयोजन के इस अवसर पर वक्ताओं द्वारा प्रेम सुंदरियाल को भी याद कर श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए।

संगोष्ठी के दूसरे सत्र में कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं सांस्कृतिक समिति दिल्ली महासचिव सुरेन्द्र रावत द्वारा मंचासीन पुरुषोत्तम शर्मा, नवेन्द्र मठपाल, डॉ हरेन्द्र असवाल, पी आर आर्या (कुमाउनी) तथा सुशीला रावत के साथ-साथ सभागार में उपस्थित सभी प्रबुद्धजनों का स्वागत अभिनंदन किया गया। आयोजित संगोष्ठी को आयोजित करने में मददगार रहे लोगों व संस्थाओं के प्रति आभार व्यक्त किया गया। सभी मंचासीनों के साथ-साथ अन्य वक्ताओं में चंद्र मोहन पपनैं, डॉ स्वर्ण रावत तथा गिरीश बिष्ट ’हंसमुख’ द्वारा उत्तराखंड की दुदबोलि के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले मथुरादत्त मठपाल के कृतित्व व व्यक्तित्व पर कुमाउनी बोली-भाषा मे बोलते हुए व्यक्त किया गया, मथुरादत्त मठपाल को उत्तराखंड का जनमानस उत्तराखंड की लोक थातियों का पितर पुरुष मानते हैं। उत्तराखंड में बोली जाने वाली लोकभाषाओं के लिए उनका काम हमेशा याद किया जायेगा।

वक्ताओं द्वारा व्यक्त किया गया, कुमाउनी में कविता-कहानी के अलावा उन्होंने साहित्य की सभी विधाओं पर काम किया। कुमाउनी कवियों की कविताओं का हिन्दी और हिन्दी के कवियों की कविताओं का कुमाउनी में अनुवाद कर उन्होंने लोकभाषाओं को समृद्ध करने का प्रभावी कार्य किया। उन्होंने ‘दुदबोलि’ नाम से पत्रिका निकालकर कुमाउनी, गढ़वाली, जौनसारी, नेपाली और हिमालयी भाषाओं के लिए प्रभावशाली पहल की जिसे भुलाया नहीं जा सकेगा।

वक्ताओं द्वारा व्यक्त किया गया, मथुरादत्त मठपाल जी की मृत्यु के बाद सवाल खड़ा हो गया था, ’दुदबोलि’ पत्रिका का प्रकाशन किया जाए या नही। भाषा से जुड़ा काम समझदारी भरा था, जो सवाल खड़ा कर रहा था। सोचा गया जनसमाज की मदद से पत्रिका प्रकाशित की जाए। यह सम्भव हुआ सबके सहयोग से पत्रिका का अंक दिल्ली से प्रकाशित हुआ, जो आज सबके सामने है। व्यक्त किया गया, एकाद अंक किसी तरह प्रकाशित हो जायेगा, सवाल है पत्रिका का निरंतर प्रकाशन कैसे होगा? यह कठिन होगा। व्यक्त किया गया जब उत्तराखंड की संस्कृति व सभ्यता संरक्षित रहेगी तभी बोली-भाषा भी संरक्षित रहेगी व ’दुदबोलि’ पत्रिका का प्रकाशन सम्भव हो पायेगा।

बोली इतनी महत्वपूर्ण है जब तक बोली नहीं जाती एक दूसरे के बावत अवगत नहीं हुआ जा सकता। बोली-भाषा एक दूसरे को जोडती है। अपनी बोली के गीतों मे प्यार झलकता है। अपनी बोली-भाषा के गीतों के माध्यम से बातों को समझाया जा सकता है। अंचल की बोली-भाषा को लिपिबद्ध करना कठिन है, निरंतर प्रयास से यह सम्भव हो सकता है। अपने बच्चों के साथ अपनी बोली में बोले। अपनी बोली दूसरों के मध्य भी पहुंचानी चाहिए।

आयोजित संगोष्ठी के प्रथम सत्र में हरिदत्त मठपाल, गोबिंद चातक, खुशी राम आर्य व कुंती देवी वर्मा के पोस्टरों का लोकार्पण तथा द्वितीय सत्र में मथुरादत्त मठपाल की जयन्ती के अवसर पर ‘कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं सांस्कृतिक समिति दिल्ली’ द्वारा प्रकाशित ‘दुदबोलि’ का नए अंक का लोकार्पण मंचासीनो व समिति पदाधिकारियों के कर कमलां किया गया। आयोजकों द्वारा आयोजन के इस अवसर पर अवगत कराया गया पोस्टर लोकार्पण का यह क्रम वर्ष 2006 से चलायमान है। विगत वर्षों से अभी तक उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में चेतना का नया रास्ता दिखाने वाले 63 प्रेरणाश्रोत लोगों के पोस्टरों का लोकार्पण किया जा चुका है।

“मथुरादत्त मठपाल स्मृति न्यास“ द्वारा प्रत्येक वर्ष दिया जाने वाला मथुरादत्त मठपाल स्मृति पुरस्कार इस वर्ष कुमाउनी के नवोदित कवि उत्तराखंड चम्पावत जिले के गांव ‘चाँदनी’ के बहादुर सिंह बिष्ट को दिया गया। सम्मान स्वरूप नवोदित कवि को स्मृति चिन्ह, शाल व पांच हजार रुपए की नगद धनराशि प्रदान की गई।

आयोजित संगोष्ठी के प्रथम व द्वितीय सत्र का ज्ञानवर्धक मंच संचालन क्रमशः प्रदीप वेदवाल व चारु तिवारी द्वारा बखूबी किया गया। आयोजित संगोष्ठी का समापन कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं सांस्कृतिक समिति दिल्ली अध्यक्ष डॉ. मनोज उप्रेती द्वारा सभी वक्ताआें, उपस्थित प्रबुद्धजनों व आयोजन में मददगार रहे क्रिएटिव उत्तराखंड, म्यर पहाड़, ऋषिसुंदरियाल विचार मंच तथा मथुरादत्त मठपाल स्मृति न्यास रामनगर का आभार व्यक्त कर किया गया।

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