
हिमालयन अरोमा भाग-4
- मंजू काला
भारत के पूर्वोत्तरी राज्यों- असम, मेघालय, नगालैंड, मिज़ोरम, मणिपुर, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश को आमतौर पर ‘सात बहनों’ के रूप में पहचाना जाता है. इन बहनों की जनजातीय आबादी, संस्कार में बहुत सारी समानताएं देखने को मिलती हैं और अपनी पृथक विशेषताएं भी. इसी इंद्रधनुषी परिवार में एक ‘भाई’ भी है जिसका नाम सिक्किम है. खानपान के मामले में यह औरों से बिल्कुल अलग ज़ायक़े पेश करता है.
अंग्रेज़ी राज के दौर में पड़ोसी भूटान की तरह सिक्किम एक ‘संरक्षित’ राज्य था. सामरिक दृष्टि से संवेदनशील परंतु दुर्गम और पड़ोसियों से अलग-थलग. भारत में इसका विलय आज़ादी के बहुत बाद हुआ और इसकी पहचान कमोबेश ‘विदेश’ जैसी रही. यहां के शासक को चोग्याल कहा जाता था जो बौद्ध धर्म का संरक्षक था. सिक्किम में बौद्ध धर्म तिब्बती तांत्रिक वज्रयान की ही शाखा के रूप में फला-फूला. यहां के पेमेयांगत्से, इंचे, बाकिम, रुमटेक जैसे मठ प्रसिद्ध हैं.
हिंदू आख्यानों में भी यहां के भूगोल का उल्लेख मिलता है. किचोपेरी झील ही वह जगह है जहां यक्ष ने युधिष्ठिर के सामने यक्ष प्रश्न की चुनौती रखी थी. सिक्किम जन्मभूमि है डैनी डेनजौंगपा जैसे अभिनेताओं तथा बाइचुंग भूटिया जैसे खिलाड़ियों की. यह राज्य प्रसिद्ध है रंगबिरंगे ऑर्किड फूलों के लिए. पर यह सब यहां विषयांतर है.
राज्य के खाने पर पड़ोसी तिब्बत, भूटान, तथा नेपाल का प्रभाव सबसे अधिक देखने-चखने को मिलता है. कंचनजंघा पर्वत की छाया में बसे छोटे आकार वाले इस राज्य में ग़ज़ब की भौगोलिक विविधता है. दक्षिण में तेज़ बहने वाली तीस्ता नदी से लेकर धुर उत्तर के चांगथांग जैसे ऊंचे चरागाहों में उगाई जाने वाली फ़सलें फ़र्क़ हैं और विभिन्न जनजातियों के प्रिय व्यंजन भी जुदा हैं. चावल की खेती निचली घाटियों के सीढीदार खेतों में की जाती है, जहाँ सिंचाई संभव है और जलवायु गर्म तथा आद्र है. चावल सिक्किम के महत्वपूर्ण खाद्य फसलों में से एक है जो राज्य के तिब्बती नाम डेंनजोंग- जिसका अर्थ है “चावल की भूमि”, में परिलक्षित होता है.
चावल से बना लोकप्रिय व्यंजन सेल रोटी है. यह गोल रोटी एक नेपाली व्यंजन है, जिसे पारंपरिक रूप से दशैन और तिहर जैसे त्यौहारों के दौरान बनाया जाता है. यह चावल के आटे में पानी, दूध, घी, इलायची, लोंग, दालचीनी, सोंफ और चीनी जैसी अन्य सामग्रियों को मिलाकर एक अर्ध- ठोस पेस्ट तैयार किया जाता है और फिर पेस्ट को गर्म तेल या घी में गोल घेरों में (रिंग) के आकार में गिराया जाता है और भूरा होने तक तला जाता है. गर्म तेल में सेल रोटियों को पलटने के लिए बांस की छड़ियों का उपयोग किया जाता है. रिंग हाथ से बनाई जाती है और निर्माता की दक्षता के आधार पर एक सेल रोटी में एक से अधिक रिंग हो सकती है. त्यौहारों के दौरान परिवार, दोस्तों और पड़ोसियों को उपहार देने के लिए सेल रोटियों के ढेर के ढेर तैयार किये जाते हैं. यह उत्सवी व्यंजन अब हल्के नाश्ते के रूप में सिक्किम के अधिकतर रेस्तरां और भोजनालयों की व्यंजन सूची में स्थान ग्रहण कर रहा है. ये रोटिया आलु की तरकारी में परोसी जा रही हैं.
उत्तरी सिक्किम के ऊपरी इलाकों में लाचेन और लाचुंग घाटियाँ क्रमशः 27 मीटर और 2900 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. इतनी ऊंचाई और खराब मौसम के कारण यहाँ के चरवाहे याक नामक जानवर पर निर्भर करते हैं. याक इन इलाकों में रहने वाले लोगों की आजिविका का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. याक का पनीर या “चूरपी” व याक का मांस वहाँ के लोगों का मुख्य सहारा है. इन स्थानों की कडा़के की ठंड और कम तापमान विशिष्ट व्यंजनों की मांग करते हैं जैसे शोरबा, सूप, पकौड़ी (मांस और पनीर की), और अन्य पौष्टिक खाद्य व्यंजनों जो गर्मी प्रदान करते हैं और सुपाच्य होते हैं. इनमें से अधिकार व्यंजन अपने तिब्बती मूल को दर्शाते हैं. सिक्किम के व्यंजनों पर तिब्बती व्यंजन गहराई से चिह्नित है. गर्मा-गर्म नूडल सूप जैसे थूकपा, थेनथूक और ग्या खो जैसे सूप ने वैश्विक स्तर पर अपनी छाप छोड़ी है. इनके अलावा, एक ऐसा व्यंजन, जिसने भारत की संस्कृति, भाषा और स्वाद की बाधाओं को वास्तव में तोड़ दिया है वह है मोमो. सिक्किम के व्यंजनों की समृद्धि और विविधता लोगों, उनकी संस्कृतियों और जीवन के तरीकों के समय के साथ यहाँ आने और बस जाने के इतिहास से गहनता से जुड़ी हुई है. ये सांस्कृतिक यात्राएँ अपने साथ अलग- खाद्य संस्कृतियाँ लाई है जिससे सिक्किम का रसोई परिदृश्य समर्द्ध हुआ है. मोमो ऐसी ही एक महत्वपूर्ण पाक शैली यात्रा का प्रमुख उदाहरण है.
यह एक पारंपरिक व्यंजन है जिसे तिब्बती घरानों में औपचारिक अवसरों के दौरान बनाया जाता है. मोमो बनाने की कार्य- विधी वास्तव में बहुत ऋम साध्य है और इसके लिए एक दलीय दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है. किसी व्यक्ति के लिए इसे अकेले बनाना एक कठिन कार्य है. इस तरह से मोमो काफी सामाजिक व्यंजन है और, इसे बनाने के लिए एक परिवार तथा उपभोग करने के लिए एक गाँव चाहिए. असली तिब्बती मोमो, जो एक लंबे सफर के बाद इस पहाड़ी नगरकोट से दक्षिण एशिया के अन्य भू- भागों तक पहूंचा, आटे में याक के मांस और प्याज के मसाले को लपेटकर बनाया जाता है. चौदहवीं सदी के आसपास सिक्किम में आ बसने पर लोग मोमो को अपने साथ यहाँ लाये थे. उन्होंने यहाँ के मूल निवासियों से संबंध बनाए व लेपचा और लिंबुओं के साथ रक्त संबंध बनाये. इस तरह मोमो शीघ्र ही भूटियाओं की रसोई से अन्य समुदायों की रसोई तक पहुँच गया.
चौदहवीं सदी के आसपास सिक्किम की पाक शैली में स्थानीय स्तर पर सहजता से उपलब्ध सामग्री और खाना पकाने की सरल तकनीक का प्रयोग होता था, हालांकि कुछ विशिष्ट पारंपरिक तकनीकें है जो आज भी कायम है. सिक्किम के मूल निवासी, लेपचा, को स्वदेशी वनस्पतियों और जीवजंतुओं का समृद्ध ज्ञान है और तदनुसार उसकी रसोई संस्कृति, पर्यावरण और परिदृश्य से जुड़ी हुई है. लेपचा के दो पारंपरिक व्यंजन “पोंगजुम” और सुजोम है. इन व्यंजनों को सरल तकनीकों का उपयोग करके तैयार किया जाता है. पोंगजुम को बांस के तने में पकाया जाता है. चावल, सब्जी, या मछली जैसे कच्चे भोजन को सबसे पहले नमक के साथ हरे बांस के तने के अंदर रखा जाता है और फिर धागे से बांधा जाता है. बांस के तने को खुली आग पर भूना जाता है और इसे भूरा होने तक लगातार घूमाया जाता है. फिर बांस को तने को आग से निकाल लिया जाता है. अंदर के पके हुए भोजन को निकालने के लिए खुला काट दिया जाता है. लेपचा लोगों का पारंपरिक मांस- आधारित व्यंजन “सुजोम” है और मांस धरती के अंदर एक गड्ढे में तैयार किया जाता है. गढ्ढा लगभग 2 फीट गहरा होता है और सपाट पत्थरों को सबसे नीचे रखा जाता है. पत्थरों को केले के पत्तों से ढका जाता है और कटा हुआ मांस पत्तों के ऊपर रखा जाता है. फिर मांस को आग से गर्म पत्थरों से ढका जाता है, फिर इसे पत्तों से ढका जाता है और गड्ढे को मिट्टी से भर दिया जाता है. मांस पकने के लिए एक दिन तक छोड़ दिया जाता है.
अल्कोहल युक्त पेय सिक्किम की थाली का अहम हिस्सा है. तोड्मा या बाजरा बियर सिक्किम, पूर्वी नेपाल और दार्जिलिंग का एक ताजा पेय है. मदिरा नेपाल के लिंबू समूदाय का पारंपरिक पेय है. पेय त्यौहारों और महत्वपूर्ण उत्सवों के दौरान तैयार किया जाता है और पारंपरिक रूप में परोसा जाता है. तोड्गबा बांस के बर्तन में साबूत बाजरे से बनाया जाता है, यहाँ बाजरे को पकाया और खमीर या खेसुवा के साथ किण्वित किया जाता है. छंग एक अन्य लोकप्रिय अल्कोहल युक्त पेय है. यह चावल से तैयार किया जाता है और पारंपरिक रूप से सिक्किम में तिब्बती और भूटिया उत्सव के दौरान तैयार किया जाता है. रक्सी बाजरे या चावल से बना एक गाढा आसुत अल्कोहल युक्त पेय है और सिक्किम में व्यापक रूप से बनाया और पिया जाता है. जांर एक हल्का अल्कोहल युक्त पेय है जो चावल, बाजरे, मक्का, गेहूं और जौ जैसे अनाजों से तैयार किया जाता है.
कह सकते हैं कि सिक्किम के व्यंजन विविध, व्यापक, आविष्कारशील, सरल और सादे है. नयी सामग्री की खरीद और व्यंजन बनाने के कार्य ध्यान पूर्वक किये जाते हैं- जो व्यंजनों के विशिष्ट स्वाद को बढाते है. सिक्किम देश का एकमात्र ऐसा राज्य है जो अपने लोगों को उच्च गुणवत्ता के उत्पादन उपलब्ध कराता है. जब बात भोजन की हो तो यही सही मायने में नय-मा-इल या स्वर्ग है.
सिक्किम के व्यंजनों के बहुत सारे दिलचस्प और अदित्य पहलु है- और ऐसी ही एक विशेषता स्थानीय पेड़- पोधों और वनस्पतियों का नवीन उपयोग है.
बिच्छू बूटी इस हिमालयी राज्य में सब जगह पायी जाती है. ये 1200 मीटर से 3000 मीटर की ऊंचाई पर बहुतायत में उगती है और इसके पत्तों पर चूभने वाले नोकदार कांटों के कारण. लोग इससे अधिकतर दूर रहते हैं. राज्य में पाये जाने वाली बिच्छू बूटी या सिष्णु, जैसा कि इसे स्थानीय रूप से कहा जाता है, को झयांग या बिच्छू बूटी के गुच्छों से सावधानी पूर्वक तोडा़ जाता है. सिष्णु को धोया जाता है और फिर खाना पकाने के तेल, लहसुन, अदरक, नमक और काली मिर्च के साथ पानी में उबाला जाता है, फिर इसे अच्छी तरह से मिश्रित होने के लिए फेंटा जाता है. सिष्णु या नेटल सूप को गरमागरम परोसा जाता है और अतिरिक्त स्वाद के लिए इसमें कभी- कभी चूरपी या संरक्षित नरम पनीर डाला जाता है. स्वदेशी वनस्पतियों से बने अन्य स्वादिष्ट व्यंजनों में “टिटेनिंगो (चूरपी के साथ फिडेल हेड फर्न करी), कोदो की रोटी, पफर को रोटी, तामा को सब्जी (किण्वित बांस शाखाओं का व्यंजन) सम्मिलित है.
सिक्किमी भोजन की अन्य अनूठी विशेषता किण्वित खाद्य पदार्थों का प्रचलन है. लंबी सर्दियाँ और असुगम इलाका होने के कारण कुछ खाद्य प्रोद्योगिकी जैसे किण्वन का उद्धव हुआ है. सिक्किम के 48 से अधिक प्रलेखित किण्वित खाद्य पदार्थ- जिनमें गुंडुक, सींकी, किनेमा (किण्वित सोयाबीन) सम्मिलित है, दार्जिलिंग और नेपाल में भी व्यापक रूप से खाये जाते हैं. अक्टूबर और नवंबर में फसल कटाई के बाद सरसों, मूली, और फूल-गोभी के पत्तों को किण्वित कर के गुंडुक तैयार किया जाता है. किण्वन प्रक्रिया के बाद गुंडुक को धूप में सुखाया जाता है. इस सूखे गुंडुक का उपयोग “गुंडक को झोल” या गुंडुक का सूप बनाने के लिए किया जाता है. गुंडुक की ही तरह सींकी तैयार किया जाता है, और इसमें पत्तेदार सब्जियों कीजगह मूली की जडों का उपयोग किया जाता है. गुंडुक और सिंकी दोनों को लहसुन, प्याज और टमाटर की आवश्यकता होती है.
(मंजू काला मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल से ताल्लुक रखती हैं. इनका बचपन प्रकृति के आंगन में गुजरा. पिता और पति दोनों महकमा-ए-जंगलात से जुड़े होने के कारण, पेड़—पौधों, पशु—पक्षियों में आपकी गहन रूची है. आप हिंदी एवं अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लेखन करती हैं. आप ओडिसी की नृतयांगना होने के साथ रेडियो-टेलीविजन की वार्ताकार भी हैं. लोकगंगा पत्रिका की संयुक्त संपादक होने के साथ—साथ आप फूड ब्लागर, बर्ड लोरर, टी-टेलर, बच्चों की स्टोरी टेलर, ट्रेकर भी हैं. नेचर फोटोग्राफी में आपकी खासी दिलचस्पी और उस दायित्व को बखूबी निभा रही हैं. आपका लेखन मुख्यत: भारत की संस्कृति, कला, खान-पान, लोकगाथाओं, रिति-रिवाजों पर केंद्रित है.)