अंजीर ला सकता है रोजगार की बयार

बेडू और तिमला से ही विकसित हुआ है अंजीर. उत्तराखंड में उपेक्षित क्यों?

  • जे. पी. मैठाणी

पहाड़ों में सामान्य रूप से जंगली समझा जाने वाला बेडू और तिमला वस्तुत: एक बहुउपयोगी फल है. ​तिमला और बेडू के वृक्ष से जहां पशुओं के लिए जाड़ों में विशेषकर अक्टूबर से मार्च तक हरा चारा मिलता है, वहीं इसका फल अभी तक उपेक्षित माना गया है.

दुनिया के कई देशों में लगातार शोध और अनुसंधान तथा कायिक प्रवर्धन से अंजीर को विकसित किया गया. शोध पत्र बताते हैं कि अंजीर जिसका वैज्ञानिक नाम फाइक्स कैरिका है यह मलबेरी ​परिवार यानी मोरेशी परिवार का सदस्य है. मूलत: अंजीर एशिया में तुर्की से उत्तर भारत तक का निवासी माना जाता है. पहले इसको गरीबों का भोजन भी कहा जाता था. जैसे कि आज भी उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में जिस परिवार को सब्जी नसीब ना हो, ऐसा माना जाता है कि वह परिवार तिमले की सब्जी बनाते हैं या चटनी बनाते हैं. लेकिन अंजीर की मूल उत्पत्ति जिस पौधे की प्रजाति से हुई है वह अनेक पौष्टिक तत्वों कैल्शियम, पोटेशियम, फास्फोरस और आयरन से भरपूर है. दुनिया में जब फलों की खेती शुरू हुई तो अंजीर उनमें से एक फल माना जाता है.

अफगानिस्तान, पेशावर, टर्की और पश्चिम एशियाई देशों में अंजीर की खेती की वैज्ञानिक खेती को प्रचारित—प्रसारित किया गया. किसानों ने इसे जीविका के स्रोत के रूप में बड़े पैमाने पर उगाना शुरू किया और दुनिया के अन्य देशों में ड्राई फ्रूट के रूप में बाजार में इसकी मांग स्थापित कर दी.

गढ़वाल के लोक गीतों में बेडू का जिक्र ‘बेडू पाको बारह मासा, नारायण काफल पाको चैता’. जहां सिर्फ लोगों तक ही ​सीमित रहा, वहीं दूसरी ओर अफगानिस्तान, पेशावर, टर्की और पश्चिम एशियाई देशों में अंजीर की खेती की वैज्ञानिक खेती को प्रचारित—प्रसारित किया गया. किसानों ने इसे जीविका के स्रोत के रूप में बड़े पैमाने पर उगाना शुरू किया और दुनिया के अन्य देशों में ड्राई फ्रूट के रूप में बाजार में इसकी मांग स्थापित हो गई.

अंजीर का फल
सामान्यत: अंजीर का फल देखने में हल्का पीला, लालिमा लिए और पकने पर गहरा बैंगनी हो जाता है. इसके फल को पूर्णत: पकने पर धोकर छिलके सहित खाया जा सकता है. फल की अपनी कोई खुशबू या गंध नहीं होती है. यह रसीला और गूदेदार होता है. इन्हीं फलों को ड्रायर या धूप में सुखाकर पिचका कर धागे में पिरो दें तो इसे ड्राई फ्रूट के रूप में बाजार में बेचने के लिए भेज दिया जाता है.

अंजीर के सेवन के फायदे

  • कम पोटेशियम और सोडियम लेवल के कारण मुनष्य में हाइपरटेंशन की समस्या पैदा हो जाती और कोरोना के इस दौर में यह समस्या अधिक देखी जा रही है. अंजीर के फल में पोटेशियम अधिक होता है इसलिए यह हाईपरटेंशन से बचाता है.
  • जुकाम लगने पर 5 अंजीर के फल को  पानी में डालकर उबाल दें और इस पानी को छानकर अगर सुबह—शाम सेवन किया जाए तो जुकाम से निजात मिलती है.
  • अंजीर से कब्ज, कमर दर्द, अस्थमा, सिर का दर्द भी ठीक होता है. यही नहीं अस्थमा और बवासीर के मरीजों के लिए इसका सेवन लाभदायक है.
  • तेज सिर दर्द में अंजीर के पेड़ की छाल को पानी या सिरके में लेप बनाने से सिर का दर्द ठीक हो जाता है, इसके अलावा अंजीर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है.

अंजीर की खेती

सामान्यत: अंजीर के लिए उत्तराखंड में उपोष्ण जलवायु वाले क्षेत्र, जैसे पुरोला, नौगांव, विकास नगर, डाक पत्थर, देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश, सतपुली, रामनगर, किच्छा, उधमसिंह नगर, हल्द्वानी के अलावा नदी—घाटी वाले क्षेत्र जैसे- चिन्याली सौड़, घनसाली, गौचर, कर्णप्रयाग, पीपलकोटी, मोरी, आराकोट, बागेश्वर, थल, पिथौरागढ़, लोहाघाट, चौखुटिया, गरुड़ में इसकी खेती अच्छी की जा सकती है. यानी अंजीर की खेती गर्म, सूखी, छाया रहित उपोष्ण और गर्म शीतोष्ण परिस्थितियों में इसकी बढ़त ठीक होती है. पर्णपाती पेड़ होने की वजह से इस पर पाले का कम प्रभाव पड़ता है. अधिक बारिश वाले क्षेत्रों में फलों पर ​कीड़े पड़ जाते हैं और फल सड़कर नीचे गिरने लगते हैं.

भूमि का चयन
सामान्यत: अंजीर कम उपजाऊ मिट्टी में भी उग जाता है. लेकिन बेहतर फसल के लिए दोमट, हल्की बलुई मिट्टी उपयुक्त मानी गई है.

उन्नत किस्में
वैश्विक स्तर पर चार प्रकार के अंजीर प्रजाति मानी जाती है, जिसमें—

  • कै​​प्रि फिग सबसे पुरानी अंजीर प्रजाति है. विकिपीडिया के अनुसार स्माइरना सफेद सैनपेद्रू और साधारण अंजीर प्रमुख प्रजातियां हैं, लेकिन भारत में मार्शेलीज, ब्लैक स्थि​या, पूना प्रजाति, बैंगलोर प्रजाति तथा ब्राउन टर्की नाम की किस्में प्रसिद्ध हैं.
  • कालांतर में बीएफ—1, बीएफ—2 तथा बीएफ—3 में अंजीर का वर्गीकरण किया गया है, जिसमें बीएफ—3 यानी बड़का अंजीर सर्वोत्तम मानी गई है. इसके फलों का भार 40 ग्राम के आसपास होता है.
  • यह प्रजातियां कम पानी की वजह से उपयुक्त मानी जाती है. यानी इनको सुखाने के लिए कम मेहनत करनी पड़ती है.
  • स्ट्रैन डीएफ—3 बड़का पौधा सर्वोत्तम है, जो उत्तराखंड के नीचले पहाड़ी और घाटी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्म है.

कैसे बनाएं पौधे
अंजीर के पौधे मुख्यत: दो—तीन सेंटी मीटर मोटे और 6 इंच लंबी कलमों द्वारा तैयार किए जाते हैं. सर्दियों में कटिंग काटकर जमीन में दबा दी जाती है और फरवरी—मार्च में बाहर निकालकर कटिंगों को आधा फीट की दूरी पर रोपित करने देने चाहिए और बाद में पौध रोपण करना चाहिए.

पौध रोपण
अंजीर के पौधे 8 x 8 मीटर की दूरी पर अच्छी तरह बनाए गए गड्ढों में गोबर की सड़ी हुई खाद, 25 ग्राम फास्फोरस, 20 ग्राम पोटास, 10 ग्राम नाइट्रोजन मिलाकर डालनी चाहिए, उसके बाद पौधा दिसम्बर से जनवरी में रोपित किया जा सकता है. बरसात में लगाए जाने वाले पौधे पिंडिया थैली होने चाहिए. रोपण के समय पॉलिथिन हटाकर पौधा रोपा जाना चाहिए.

कीट और रोकथाम
अंजीर में वैसे तो कोई प्रमुख बीमारी नहीं होती है लेकिन पत्तियों को खाने वाले कीड़े या फलों को सड़ाने वाले कीड़े प्रमुखत: देखे गए हैं, इसके लिए रासायनिक कीटनाशक इंडोसल्फान या क्लोरोपाइफोन का छिड़काव किया जाना चाहिए, लेकिन जैविक पद्धति में गौमूत्र, डैंकण, नीम और कुंणजा का घोल छिड़कना चाहिए.

उत्तराखंड के नदी—घाटी और कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अंजीर रोजगार का एक प्रबल संसाधन हो सकता है, इससे स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजित किया जा सकता है. यही नहीं अंजीर की खेती में लगे किसान कालांतर में उपेक्षित समझे जाने वाले बेडू और तिमले की नस्ल सुधारकर आजीविका के नए आयाम स्थापित कर पलायन को रोकने के लिए नई शुरुआत कर सकते है.

प्रूनिंग एवं पेड़ का व्यवस्थापन समय—समय पर किया जाना चाहिए. अनावश्यक ​टहनियां काट दी जानी चाहिए. फलों की तुड़ाई मई से अगस्त में की जानी चाहिए.

उत्तराखंड के नदी—घाटी और कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अंजीर रोजगार का एक प्रबल संसाधन हो सकता है, इससे स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजित किया जा सकता है. यही नहीं अंजीर की खेती में लगे किसान कालांतर में उपेक्षित समझे जाने वाले बेडू और तिमले की नस्ल सुधारकर आजीविका के नए आयाम स्थापित कर पलायन को रोकने के लिए नई शुरुआत कर सकते है.

 

(लेखक पहाड़ के सरोकारों से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार एवं पीपलकोटी में ‘आगाज’ संस्था से संबंद्ध हैं)

‘आगाज’ के बारे में जानने के लिए click करें https://www.biotourismuk.org/

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1 Comment

  • हिमांतर की टीम का बहुत बहुत धन्यवाद !
    आप हमेशा मेरे लेखों को प्राथमिकता से छाप देते हैं इसके लिए पुनः कोटिश धन्यवाद !

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