आओ! आज वेलेंटाइन-डे पर प्रकृति प्रेम का इजहार करें

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आज 14 फरवरी को मनाया जाने वाला वेलेंटाइन डे प्यार के इजहार का दिन है.

  • डॉ. मोहन चंद तिवारी

भारत में वैलेंटाइन-डे के मौके पर वसंत ऋतु का सुहाना मौसम चल रहा होता है. जिस प्रकार प्यार मोहब्बत की स्नेहधारा के साथ इस पावन ऋतु का स्वागत किया जाना चाहिए, so वह माहौल आज कहीं गायब है.संसद हो या सड़क चारों ओर घृणा विद्वेष की भावना से वातावरण विषाक्त बना हुआ है. कोरे विकासवाद और आर्थिक सुधारों ने खेत, किसान यहां तक कि हिमालय की गिरि कंदराओं को because भी रुला कर रख दिया है.चमोली में ग्लेशियर के टूटने से जो जल सैलाब उमड़ा है, उसने गम्भीर चेतावनी दे दी है कि आने वाले दिन प्राकृतिक प्रकोप से जूझने के भयंकर दिन होंगे. कैसे कहें हम प्रकृति के उपासक देश हैं.

पावन ऋतु

पर आज वेलेंटाइन डे के मौके पर हम भारतीय होने के नाते यही मंगल कामना करते हैं कि हर्ष और उल्लास से इस प्रेम दिवस का स्वागत करें, घृणा द्वेष से दूर रहें, प्रकृति से so सीख लेते हुए उसके अलौकिक सौंदर्यदृष्टि का आनन्द लें. जब इस त्योहार में because जीव जंतु,पशु पक्षी भी आनन्द मनाते हैं तो हम मनुष्यों को भी उनसे सीखना चाहिए कि यह मदनोत्सव की ऋतु मानवता को सभ्य और सुसंस्कृत बनाने की ऋतु है, क्योंकि इस ऋतु में मनुष्य को स्वस्थ और तंदुरुस्त बनाने के लिए प्रकृति का कण कण सौंदर्य और आनन्द बिखेर रहा होता है. इसीलिए इसे ऋतुराज कहते हैं- “सर्व प्रिये चारुतरं वसन्ते”.

पावन ऋतु

यह दिन विभिन्न देशों में अलग-अलग तरह से और अलग-अलग कारणों से मनाया जाता है. मूलत: वैलेंटाइन-डे का नाम रोम राज्य के ईसाई संत सेंट वैलेंटाइन के नाम पर रखा गया. so सेंट वैलेंटाइन को उन सैनिकों की शादियां करवाने के लिए जेल में बंद रखा गया जिन पर शादियां करवाने की रोक लगी हुई थी.अपनी जेल अवधि के दौरान सेंट वैलेंटाइन को जेलर की पुत्री एस्ट्रीयस के साथ प्यार हो गया था,सेंट वैलेंटाइन so को फांसी की सजा सुनाई गई लेकिन फांसी में झूलने से पहले वैलेंटाइन ने एक पत्र एस्ट्रीयस को लिखा जिसमें उन्होंने लिखा कि ‘आपका वैलेंटाइन अलविदा’. तभी से सेंट वैलेंटाइन को प्रेम के मसीहा के रूप में विश्व में याद किया जाता है.

पावन ऋतु

18वीं शताब्दी में इंगलैंड में यह प्रथा प्रेम और रोमांस के साथ जुड़ गई. प्रेमी जोड़े इस दिन अपने प्रेम का इजहार एक-दूसरे से करते हैं. वे एक-दूसरे को फूल, ग्रीटिंग कार्ड व अन्य so उपहार भेंट करते हैं. वैलेंटाइन-डे के साथ दिल के आकार को दर्शाता हुआ प्यार का एक प्रतीक चित्र प्रसिद्ध हैं. चीन में यह दिन ‘नाइट्स ऑफ सेवेन्स’ प्यार में डूबे दिलों के लिए खास होता है,जापान व कोरिया में इस दिन को so ‘वाइट डे’ के नाम से जाना जाता है. इन देशों में इस दिन से पूरे एक महीने तक लोग अपने प्यार का इजहार करते हैं और एक-दूसरे को तोहफे व फूल देकर अपनी प्रेम भावनाओं को प्रकट करते हैं.

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शरद ऋतु so की जड़ प्रकृति के बाद जैसे ही मधुमास में वासन्ती प्रकृति का लावण्य प्रकट होता है उसका सौन्दर्य देखकर स्त्री-पुरुष, कीट-पतंगे, नभचर, जलचर सभी मदमस्त हो झूमने लगते हैं. ऋतुराज वसन्त के आगमन से प्रकृति में नवयौवन का because सौन्दर्य हिलोरें लेने लगता है और प्रकृति का कण-कण चारुता से भर जाता है

पावन ऋतु

भारत में ऋतुराज वसन्त के आगमन के साथ ही कुछ दिनों के अन्तराल पर वसन्त पंचमी और वेलेंटाइन डे लगभग साथ साथ आते हैं. इस साल वेलेंटाइन डे पहले है so और दो दिन बाद16 फरवरी को वसन्त पंचमी है.वसन्त ऋतु में वेलेंटाइन डे मनाया जाना इसी तथ्य का सूचक है कि पश्चिमी जगत में वेलेंटाइन डे जैसी प्रेम सम्बन्धी मान्यताएं भारत से ही निर्यात हुई हैं. शरद ऋतु की जड़ प्रकृति के बाद जैसे ही because मधुमास में वासन्ती प्रकृति का लावण्य प्रकट होता है उसका सौन्दर्य देखकर स्त्री-पुरुष, कीट-पतंगे, नभचर, जलचर सभी मदमस्त हो झूमने लगते हैं. ऋतुराज वसन्त के आगमन से प्रकृति में नवयौवन का सौन्दर्य हिलोरें लेने लगता है और प्रकृति का कण-कण चारुता से भर जाता है-

पावन ऋतु

“द्रुमाः so सपुष्पाः सलिलं सपद्मं
स्त्रियः सकामाः so पवनः सुगन्धिः.
सुखाः प्रदोषा so दिवसाश्च रम्याः
सर्वं प्रिये so चारुतरं वसन्ते ..”
                -ऋतुसंहार,6.2

पावन ऋतु

धरा पर किंशुक पुष्प का so खिलना और कोयल की कूक वसन्तागम का सूचक है. पशु,पक्षी, मनुष्य आदि सभी प्राणी इस ऋतु में कामबाण के लक्ष्य होते हैं. प्रकृति नित्य सुन्दर है किन्तु वसन्त के आने पर इसकी चारुता में चार चांद लग जाते हैं.महाकवि कालिदास ने वसन्त के सायंकाल को सुखद और दिन को रमणीय कहा है-
“सुखा प्रदोषा: because दिवसाश्च रम्या:”

पावन ऋतु

बाजारवाद so की झोंक में पिछले कुछ वर्षो से वसन्त का स्वागत चाकलेट डे, वेलेंटाइन डे,हग डे आदि के रूप में किया जने लगा है. लगता है हमने पश्चिम के स्वच्छन्द प्रेमी युगलों के उपभोक्तावादी बाजार में हजारों वर्षों से पाले-पोसे पीत वसन्त की सौंदर्य दृष्टि को गिरवी रख कर so गुलाबी वेलेंटाइन डे खरीद लिया है जिसके अनुसार हमें व्यापारिक प्रतिष्ठानों को मुनाफा कमाने के लिए गुलाबी वस्त्र पहनना होता है, मीडिया चैनलों की टीआरपी बढ़ाने के लिए प्रेमदिवस का नाटक करना होता है

पावन ऋतु

वसन्त के आगमन पर स्वर्ग में समस्त देवगण भी सोमपान करते हुए आनन्दोत्सव मनाते हैं. वसन्तोसव पर प्रेम अथवा अनुराग के प्रतीक लाल पुष्प भेंट कर प्रणय निवेदन की so परम्परा सर्वप्रथम भारत में ही प्रचलित हुई है.परन्तु प्रकृति  प्रेमियों, साहित्यकारों और कलाकारों because को ऋतुराज वसन्त के आगमन का जिस हर्षोल्लास के साथ स्वागत करना चाहिए, वह परम्परा अब लुप्त होती जा रही है. प्रेम भावना को दैहिक धरातल पर उद्दीप्त करने वाले वेलेंटाइन डे पर प्रेमियों द्वारा एक दूसरे को रंग-बिरंगे फूलों की सौगात because दी जाती है. वसंत के अवसर पर ऐसे ही पुष्प गुच्छों से because शोभायमान नवयौवना प्रकृति देवी भी जन जन को पुष्पासव का मधुपान कराती है.इसीलिए वसन्त को मधुमास भी कहा गया है. कामोद्दीपक ऋतु होने के कारण वसन्त पंचमी के दिन रति और कामदेव की पूजा करके मदनोत्सव मनाने का महोत्सव शुरु हो जाता है और होली तक चलता रहता है-“रतिकामौ तु सम्पूज्य कर्त्तव्य: सुमहोत्सव:.”

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कालिदास के ‘मालविकाग्निमित्रम्’ so नाटक में रानी इरावती वसन्त के अवसर पर प्रेमाभिलाष प्रकट करने के लिए राजा अग्निमित्र के पास लाल कुरबक के पुष्प भिजवाती है. वसन्तोत्सव के अवसर पर स्त्रियों का अपने पति के साथ झूला झूलने की प्रथा भी प्रणय निवेदन की ही परम्परा थी. so प्राचीन भारत में वसन्तोत्सव के अन्तर्गत प्रेम नाटकों का भी सामूहिक प्रदर्शन होता था. ‘मालविकाग्निमित्रम्’, ‘रत्नावली’, ‘पारिजातमंजरी’ आदि नाट्य रचनाएं वसन्तोत्सव से जुड़ी लोकप्रिय रचनाएं हैं.’अभिज्ञानशाकुन्तलम्’ में भी वसन्तोत्सव की विशेष चर्चा आई है.

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विडम्बना यह कि पश्चिमी बाजारवाद की दौड़ में भारत देश वासंतिक प्रेमभावनाओं का निःशुल्क उपहार देने वाली अपनी उस प्रियतमा वेलेंटाइन ऋतु वसन्त को भुलाता जा रहा है. so बाजारवाद की झोंक में पिछले कुछ वर्षो से वसन्त का स्वागत so चाकलेट डे, वेलेंटाइन डे,हग डे आदि के रूप में किया जने लगा है. लगता है हमने पश्चिम because के स्वच्छन्द प्रेमी युगलों के उपभोक्तावादी बाजार में हजारों वर्षों से पाले-पोसे पीत वसन्त की सौंदर्य दृष्टि को गिरवी रख कर गुलाबी वेलेंटाइन डे खरीद लिया है जिसके अनुसार हमें व्यापारिक प्रतिष्ठानों को मुनाफा कमाने के लिए गुलाबी वस्त्र so पहनना होता है, मीडिया चैनलों की टीआरपी बढ़ाने के लिए प्रेमदिवस का नाटक करना होता है, ब्यूटी पार्लरों और होटलों में भीड़ जुटानी होती है और फिर लाल गुलाब भेंट करके प्रेम का इजहार करना होता है.

पावन ऋतु

दरअसल,यूरोप का समाज रखैलों के प्रेम में विश्वास करता है पत्नियों के प्रेम में नहीं.जिस समय वैलेंटाइन हुए, उस समय रोम के  राजा क्लौड़ीयस ने कहा कि “ये जो आदमी है-वैलेंटाइन, so ये हमारे यूरोप की परंपरा को बिगाड़ रहा है, हम बिना शादी के रहने वाले लोग हैं, मौज-मजे में डूबे रहने वाले लोग हैं,और ये शादियाँ करवाता फिर रहा है, ये तो अपसंस्कृति फैला रहा है,हमारी संस्कृति को नष्ट कर रहा है.” इसीलिए क्लौड़ीयस ने वैलेंटाइन को शादियां करवाने के जुर्म में फाँसी की सजा दे दी.

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वसन्त ऋतु पर मदनोत्सव so और मर्यादापूर्ण सौंदर्य दृष्टि की भारतीय परंपरा आज समाज से लुप्त होती जा रही है because और उसका स्थान बनावटी प्रेम के इजहार करने वाले ‘वेलेंटाइन डे’ ने ले लिया है. इन्हीं शब्दों के साथ आज वेलेंटाइन डे के अवसर पर वासन्तिक मदनोत्सव पर्व की सभी मित्रों को हार्दिक शुभकामनाएं

पावन ऋतु

आज भारत के संदर्भ में वेलेंटाइन डे के so अवसर पर उपभोक्तावादी बाजारवाद के प्रभाव के कारण पश्चिम से आयातित मॉल संस्कृति प्रेम के भौंडे और बनावटी चरित्र को ही परोसने में लगी है. वसन्त ऋतु पर मदनोत्सव और मर्यादापूर्ण सौंदर्य दृष्टि की भारतीय परंपरा so आज समाज से लुप्त होती जा रही है और उसका स्थान बनावटी प्रेम के इजहार करने वाले ‘वेलेंटाइन डे’ ने ले लिया है. इन्हीं शब्दों के साथ आज वेलेंटाइन डे के अवसर पर वासन्तिक मदनोत्सव पर्व की सभी मित्रों को हार्दिक शुभकामनाएं-
‘सर्व प्रिये चारुतरं वसन्ते’

पावन ऋतु

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज से एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हैं. एवं विभिन्न पुरस्कार व सम्मानों से सम्मानित हैं. जिनमें 1994 में संस्कृत शिक्षक पुरस्कार’, 1986 में विद्या रत्न सम्मानऔर 1989 में उपराष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा द्वारा आचार्यरत्न देशभूषण सम्मानसे अलंकृत. साथ ही विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं और देश के तमाम पत्रपत्रिकाओं में दर्जनों लेख प्रकाशित.)

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