चमोली

पर्वतारोहण और ट्रैकिंग से स्वरोजगार की पहल…

पर्वतारोहण और ट्रैकिंग से स्वरोजगार की पहल…

चमोली, पर्यटन
शशि मोहन रवांल्टा स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी श्रीराम शर्मा के गीत ‘करो राष्ट्र निर्माण बनाओ मिट्टी से सोना’ जी हां! इस गीत की पंक्तियों को चरितार्थ कर दिखाया है उत्तरकाशी जिले because के दूरस्थ गांव सौड़-सांकरी के चैन सिंह रावत ने. उन्होंने पर्वतारोहण और ट्रैकिंग के काम को पर्यटन व्यवसाय से जोड़ा है. अब उनके गांव के हर नौजवान के पास ‘होम स्टे’ के रूप में स्वरोजगार है. बसंत ऋतु उत्तरकाशी जिले के so सीमान्त विकासखण्ड मोरी के दूरस्थ गांव सांकरी में वर्ष के 10 माह तक पर्यटकों की आमद देखने को मिलती है. जनवरी और फरवरी माह में यह सम्पूर्ण घाटी बर्फ से ढक जाती है. यहां पर हरे-भरे जंगल, गोविंद पशु विहार नेशनल पार्क और सैंचुरी (Govind Pashu Vihar National Park & Sanctuary), सेब के बागान, पास में बह रही सुपीन नदी, हरकीदून बुग्याल, केदारकांठा ट्रैक, जुड़ी ताल की सैर, इसके अलावा इस घाटी में स...
ऋषिगंगा आपदा : 12 दिन में 3000 लोगों को कराया भोजन

ऋषिगंगा आपदा : 12 दिन में 3000 लोगों को कराया भोजन

चमोली
हिमांतर ब्यूरो, देहरादून 7 फरवरी 2021 को जनपद चमोली के धौली गंगा, तपोवन, ऋषिगंगा घाटी में ग्लेशियर टूटने की वजह से आयी बाढ़ के कारण भीषण तबाही हुई थी. इस आपदा में 205 से so अधिक लोगों के अकाल मृत्यु का आंकलन है. इस प्राकृतिक आपदा से पैंग, मुरूंडा, जुग्जु, जुवाग्वाड़ के अलावा चिपको की जननी गौरा देवी के गांव वल्ला रैणी और पल्ला रैणी में 5 लोगों की मृत्यु हुई, स्थानीय स्तर पर अभी तक 28 लोगों के शव बरामद हुए हैं. आपदा 15 फरवरी से 26 फरवरी तक कुल 12 दिन तक रैस्क्यू और बचाव के कार्यों में लगे एन.डी.आर.एफ., एस.डी.आर.एफ., भारत तिब्बत सीमा पुलिस but और उत्तराखण्ड पुलिस के जवानों के साथ-साथ सड़क और पुल निर्माण में लगे सीमा सड़क संगठन के कर्मचारियों और मजदूरों को नियमित रूप से दोपहर का भोजन कराते रहे. आपदा इस प्राकृतिक आपदा के तुरंत बाद प्रभावित क्षेत्र में राहत और बचाव के कार्य प्रारंभ हुए ...
जंगली कं​टीली झाड़ी से रोजगार का स्रोत बन रहा है टिमरू

जंगली कं​टीली झाड़ी से रोजगार का स्रोत बन रहा है टिमरू

चमोली
कम उपजाऊ और बेकार भूमि में आसानी से उगता है उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों में खेती को जंगली जानवरों से बचाव के लिए शानदार बाड़/बायोफेन्सिंग भी है टिमरू खेती-बाड़ी बचाएगा टिमरू तो रूकेगा जंगली जानवरों की वजह से होने वाला पलायन जे. पी. मैठाणी हिन्दू धर्म ग्रंथों में जिन भी पेड़-पौधों का रिश्ता पूजा-पाठ तंत्र-मंत्र से जोड़ा गया है. उन सभी पेड़-पौधों, वनस्पतियों में कुछ न कुछ दिव्य और आयुर्वेदिक गुण जरूर हैं. और उनका उपयोग हजारों वर्ष पूर्व से पारम्परिक चिकित्सा पद्धति, आयुर्वेद और इथ्नोबॉटनी में किया जाता रहा है. यानी पेड़—पौधों का महत्व उसके औषधीय गुणों के कारण है और उनके संरक्षण के लिए उनको धर्म ग्रंथों में विशेष स्थान दिया गया है. ऐसे ही एक बहुप्रचलित लेकिन उपेक्षित कंटीला झाड़ीनुमा औषधीय वृक्ष है टिमरू. टिमरू सिर्फ पूजा-पाठ और भूत पिशाच भगाने के लिए कंटीली डंडी नहीं है. व...