ट्यूलिप के फूल कहानी संग्रह

कॉलम: किताबें कुछ कहती हैं…

  • डॉ. विजया सती

सुपरिचित लेखिका एम.जोशी हिमानी का नवीनतम कहानी संग्रह है– ट्यूलिप के फूल जो भावना प्रकाशन दिल्ली से 2020 में प्रकाशित हुआ.

इससे पहले लेखिका एक कविता संग्रहों के अतिरिक्त उपन्यास ‘हंसा आएगी जरूर’ और कहानी संग्रह ‘पिनड्रॉप साइलैंस’ भी दे चुकी हैं.

जीवन के आरंभिक पंद्रह वर्ष पहाड़ में जीकर चालीस से भी अधिक वर्ष महानगर में बिताने वाली कथाकार के रग-रग में पहाड़ सांस लेता है. वर्तमान जीवन की हलचल, विडंबनाओं, सुख-सुविधाओं के बावजूद लेखिका का मन अतीत में लौटता रहता है.

वास्तव में इस जीवन-क्रम ने ही लेखिका को अनुभवों का अपार संसार दिया है – उनकी सभी कहानियां उनके जिए हुए जीवन से जुड़ी हैं, इसलिए उनमें अनुभव का ताप है. पहाड़-गाँव-शहर, घर-बाहर-कार्यालय, व्यक्ति-समाज-अर्थ तंत्र  …इन सबके बीच आवाजाही से बनी हैं उनकी कहानियां.

ट्यूलिप के फूल संकलन में पंद्रह कहानियां हैं, अधिकाँश आकार में छोटी – यह कुल 111 पृष्ठ की किताब है.  लेखिका का कथन है – ‘जीवन में देखे-सुने अनेक चरित्र जिन्होंने मुझे किसी न किसी रूप में प्रभावित किया, वे अक्सर मेरी रचनाओं के पात्र बन जाते हैं. ..‘पहाड़ का पहाड़-सा कठिन जीवन, वहां के दुःख-दर्द, गरीबी, जिन्दादिली, आकांक्षाएं,सपने भी अनायास मेरी रचनाओं की पात्र बन जाते हैं.’ इन कहानियों के विषय में उनका कहना है – ‘मेरा भोगा हुआ सच और कहीं मेरी कल्पनाओं की उड़ान’ दोनों हैं इनमें.

संकलन की अपेक्षाकृत लम्बी, पहली कहानी का शीर्षक है ‘अधूरी कहानी’. इसकी पृष्ठभूमि विदेश है और केंद्र में प्रेम है, प्रेम भी वह जो परिंदे की तरह आसमान में उड़ गया. जिसके विषय में कथाकार ने जैसे अनुभव से जान लिया –‘कौन कहता है कि शान्ति, संतुष्टि और आनंद के लिए अध्यात्म का सहारा लेना चाहिए, प्रेम करना भी एक प्रकार का अध्यात्म ही है यदि वह निस्वार्थ भाव से किया जाए.’

यह कहानी अंत:सूत्र के रूप में बहुत कुछ समेट कर चली है. विदेश में मिले दो एशियाई अजनबी.. भारतीय और पाकिस्तानी, उनके माध्यम से कहानी में अनुस्यूत यह बिंदु अलग छिटका हुआ-सा होकर भी सम्बद्ध है – ‘पूरी दुनिया में औरतों की स्थिति कमोबेश एक-सी ही है. जीवन की सारी विडम्बनाएं उन्हीं के हिस्से आती हैं.’

प्रेम के बहाने जमाने की पड़ताल भी यानी एक वैश्विक दृष्टि कहानी में झलकती है –‘मनुष्य दुनिया के किसी भी कोने में रहे, कोई भी धर्म अपनाए, किसी भी संस्कृति में रचा-बसा हो, अंतर्मन सबका एक-सा होता है. सबके सीने में वही नाजुक दिल होता है जो प्रेम के लिए धड़कता है न कि केवल ज़िंदा रहने के लिए.’

दूर देश में अपने देश की मानसिकता का तुलनात्मक अंकन भी बेमानी नहीं.. यूरोप जहां अजनबी को देख कर मुस्कुराता है, वहां हमारे यहां अपनों को देख कर आँखें चुराना उतना ही सत्य ! प्रेम के प्रति भारतीय दृष्टि पर प्रश्नचिन्ह लगाती यह सशक्त कहानी ‘साठ साल की उम्र में भी सोलह साल की किसी षोडसी जैसी तरंगें’ अपने भीतर अनुभव करने वाली कथावाचिका तक ही ठहर कर नहीं रह जाती बल्कि एक अन्य अविश्वसनीय प्रेम की कथा का स्पर्श भी करती है.

अम्मी की देखभाल के लिए नियुक्त रोशनी, अपने शौहर से डरने वाली रोशनी घर के चिराग साहिल के इश्क में बंध कर अनाड़ी मिडवाइफ़ से बच्चा गिरवाते हुए जान दे देती है. यद्यपि यह एक रूढ़ समाज का कम संभव सत्य लगता है. फिर भी प्रेम तो प्रेम है – और वही इस कहानी का मूल कथ्य.

जयन्ती के जीवन का पहाड़ नशे में बेसुध पति के साथ का पहाड़ है. सुनसान बियाबान में भी उनके ज़िंदा रहने का जरिया खेत जब भूस्खलन में चौपट हो जाता है तो निठल्ले पति की आस मुआवजे के स्वप्न पर जा टिकती है. इस आस में अंतहीन प्रतीक्षा, पटवारी की भूमिका और अंतत: निराशा उन्हें गठरियां तैयार कर मैदान की तरफ पलायन करने को बाध्य करती है.

मुआवजा जागरुक जयन्ती और खड़गसिंह की अंतहीन प्रतीक्षा की दुखद परिणति की कहानी है. जयन्ती के जीवन का पहाड़ नशे में बेसुध पति के साथ का पहाड़ है. सुनसान बियाबान में भी उनके ज़िंदा रहने का जरिया खेत जब भूस्खलन में चौपट हो जाता है तो निठल्ले पति की आस मुआवजे के स्वप्न पर जा टिकती है. इस आस में अंतहीन प्रतीक्षा, पटवारी की भूमिका और अंतत: निराशा उन्हें गठरियां तैयार कर मैदान की तरफ पलायन करने को बाध्य करती है.

गुणा भाग रिश्वत खोरी की अटूट श्रृंखला को व्यक्त करती कथा है तो गुफा की ओर पहाड़ में एक युवा विधवा के सास के साथ प्यार भरे रिश्ते की कहानी है, जिसके लिए पहाड़ में भी फब्ती कसते शोहदे हैं. जिस पर पहाड़ की चोटी की गुफा में रहने वाले बाबा का सम्मोहन है. कहानी कुछ अबूझ से अविश्वसनीय घटनाक्रम की ओर ले जाती है..चनी यानी कथा नायिका चंद्रा एक अनदेखी, अलौकिक दुनिया का साक्षात्कार करती है. घनघोर जंगल में शेर की दहाड़ के बीच कहानी में वह कैसे बची, किसने बचाया? क्या उसके स्वप्न, उसके आभास उसके भीतर छिपी भावनाओं का अवतरण हैं? वह वैसी मुक्त, उदार और सुन्दर दुनिया में विचरण करना चाहती है ? यह दुर्बल चनी आत्मरक्षा को सबल है … हांक देती है सबको अपनी हुंकार और दरांती की धार से.

एक कशिश ऐसी भी मीना और खुसरो के प्रेम की ऐसी कथा है जिसका आरंभिक सार यह निकलता है कि धर्म प्रेम से बहुत बड़ा होता है. वह इतना ताकतवर होता है कि प्रेम को चिंदी चिंदी कर उसका वजूद नष्ट कर सकता है. पिता की मृत्यु के बाद, पांच सालों से पिता बनकर परिवार का भरण-पोषण करने वाली मीना का दुःख यह रह गया कि उसने नष्ट होता कथित धर्म तो बचाया, क्या अपना जीवन बचा पाई ?

इस कथा के बहाने लेखिका ने उस बड़े सच पर उंगली रखी है कि बड़े दंगों की शुरुआत कितनी गलतफहमियों और झूठ से होती है.

मीना मित्र अमन के सम्मुख अपने सच का खुलासा करती है किन्तु यहाँ भी यह अविश्वसनीय लगता है कि क्या भारतभूमि में पुरुष इतने उदार होंगे कि खुसरो के लिए कशिश लिए मीनाएं जी सकें?

ठिठुरन वृद्ध-सेवानिवृत्त दंपत्ति दुर्गा-जयकिशन की कहानी है, भरपूर सर्दियों में जिनके घर में सुबह-सुबह भजन-कीर्तन की जगह महरी पुराण चल उठता. लम्बी जीवन यात्रा साथ पूरी करने वाला यह दाम्पत्य  संतोष में नहीं जिया. तंग गलियाँ छोटे मकान छोड़कर खुले में सांस लेने, जाड़े की नरम धूप का सेंकने का सपना अधूरा ही रह गया, जब उनके मकान से सटकर फ़्लैट उग आया जिसने धूप ख़त्म कर दी. अपार्टमेन्ट सभ्यता पर व्यंग्य करती कहानी बताती है कि जो दुर्गा और जयकिशन हवा में लटकी सी जिन्दगी जीना नहीं चाहते थे, पहाड़-सी खड़ी इमारत की ओट में रहना उनकी नियति बन गया.

भावना टी कॉर्नर फिर एक बार पहाड़ कथा है. श्याम खेत में नानतिन महाराज के आश्रम के निकट रहने का निर्णय लेने पर सेवानिवृत्त मां को बच्चे जीवन का गणित समझाते हैं. लेकिन फेफड़ों में भरती साफ़ हवा का मोल समझने वाली मां यहीं आ बसती है. जीवन का लक्ष्य यदि शान्ति, सुकून और आनंद पाना  है, तो सबको अपने ढंग से पाने की कोशिश करना गलत नहीं. यहीं मिल जाती है कथाकार को भग्गू यानी भागी हुई यानी भागीरथी यानी भावना – सनकी पिता की बिंदास निडर पुत्री. गरीबी, बेचारगी क्या मधुर रिश्ते भी खतम कर देती है? लेखिका ने जाना कि पहाड़ में साफ़-सुथरी हवा है पर इंसानों के दिमाग साफ़-सुथरे नहीं हैं. आशा में जीवन नष्ट करने वाला, पुश्तैनी बंजर जमीन के स्वामित्व की आस लिए जीता भग्गू का पिता, पीकर उत्पात करने को सदा तत्पर. लेकिन जब लेखिका ने भग्गू और उसकी मां की शक्ति को जगाया, आत्मविश्वास से भरी ‘भावना टी कॉर्नर’ की मालकिन चुस्त दुरुस्त भावना को देखा तो अनुभव किया कि जैसे ताज़ी हवा मिली हो ! लेखिका के मन में कोई सुधारक रहता है, स्त्री सुधार का बीड़ा उठाए !  

कौन थी वह रहस्य कथा की तरह आरंभ होती है. समाज के चरित्र को बूझने वाली हमारी कथाकार में सबकी पसंद का सम्मान करने की उदारता बरतने की चाह है. जिस पास-पडौस ने कभी हत्यारिन के रूप में रुबीना को देखा, कभी वेश्यावृत्ति के अड्डे पर जाने वाली माना, अंतत: वह बेहतरीन काम को अंजाम देती देखी गई. लेखिका अपने डर को भारत की मानसिकता से जोड़ती है जहां भीड़, शक, हत्या, आतंकवादी संगठन जैसे जुमले हैं. अंधेरे कमरे में नूर बिखेरती रुबीना धंधेवालियों के बच्चों को चित्र बनाकर दुनिया की ख़ूबसूरती दिखाती है, क्योंकि वह न बोल सकती है न सुन सकती है !

मुख्य अतिथि के आगमन की प्रतीक्षा, पंडाल, फूल, माइक आदि पर लाखों का खर्च, कुम्हलाए श्रोताओं के सम्मुख मुख्य अतिथि को गरीबों के मसीहा, वंचितों का हमदर्द, धरती का लाल जैसे  संबोधन.. इस सचाई को देख ब्लड प्रेशर बढ़ा लेते हैं मेहता, यह दिखावों से परेशान मीडिया हाउस के सच से रूबरू कराती कहानी है जहां एक का लेख दूसरे के नाम से छप जाता है.

प्रचार अधिकारी की आत्मकथा अधिकार विहीन सरकारी अधिकारी दानसिंह मेहता की व्यथा कथा होने के साथ-साथ वर्तमान की विडम्बना पर करारा तमाचा है, जहां उनकी दिहाड़ी का हर्जा करके साड़ी-कम्बल वितरण कार्यक्रम में बीपीएल कार्ड धारक जुटाए जाते हैं, मुख्य अतिथि के आगमन की प्रतीक्षा, पंडाल, फूल, माइक आदि पर लाखों का खर्च, कुम्हलाए श्रोताओं के सम्मुख मुख्य अतिथि को गरीबों के मसीहा, वंचितों का हमदर्द, धरती का लाल जैसे  संबोधन.. इस सचाई को देख ब्लड प्रेशर बढ़ा लेते हैं मेहता, यह दिखावों से परेशान मीडिया हाउस के सच से रूबरू कराती कहानी है जहां एक का लेख दूसरे के नाम से छप जाता है. इस थैंकलेस जॉब में मेहता ब्यूरोक्रेसी-नौकरशाही में घुटन महसूस करते हुए अध्यापन में मिले सम्मान को याद करते हुए, प्रचार का झंडा उठाए सेवानिवृत्ति के दिन गिनते हैं.

पलायन पंजाब के आतंकवाद प्रसंग को हलके से छू लेती है, मां मर नहीं सकती मां की विशिष्ट स्मृति को टटोलती कहानी है तो नई बयार एक नए सन्देश की. मनपसंद जीवन साथी के साथ सादगी से विवाह करने को इच्छुक बेटी माता-पिता की सहमति को व्यग्र है, अंतत: जीत उसी की होती है.

एटीएम विच्छिन्न होते पारिवारिक संबंधों पर दस्तक है. क्या पैसा इंसानी रिश्तों को छिन्न भिन्न कर देता है? मालपा की ओर कहानी भी पारिवारिक स्वार्थ को रेखांकित करती है जहां आपदा की राहत राशि को हथियाने की जुगत करने वाली पत्नी और बेटों को पिता विस्फारित नयनों से देखता है.

ट्यूलिप के फूल संग्रह की अंतिम कहानी है..प्रेम पर उस भरोसे की कहानी जिसने पहाड़ की बेटी गंगा को कुंवारी रहने को बाध्य किया और अब भी वह पुराने पैतृक घर को पुन: संजो कर उस वीराने में प्रेम की स्मृति में ट्यूलिप की खेती करना चाहती है.

कहानियों की यह पड़ताल व्यक्त करती है कि कथाकार के पास निस्संदेह कथा विषयों की विविधता है. समय और समाज की नब्ज पहचानने वाली कहानीकार ने कहीं तो चिरपरिचित से घटनाक्रम और कथासूत्र को अपनी कथन भंगिमा और दृष्टि से विशिष्ट बना दिया है. वर्तमान जीवन में संबंधों का विचलन, सपनों की टूटन के बावजूद सशक्त स्त्री पात्र, कुछ बेबाक टिप्पणियाँ, कुछ बहुत जरूरी बातें इन कहानियों में गुंथ कर आई हैं – मसलन ईश्वर की उपस्थिति, प्रकृति का वैभव, धर्म, समाज, प्रेम और सरकारी तंत्र भी.

उनके पास एक सधी हुई कथादृष्टि है –अपने जिए हुए अनुभवों, देखे हुए जीवन प्रसंगों को सहेजने की नैसर्गिक क्षमता है.

इन कहानियों में प्रेम जीवन की अनिवार्यता सरीखा व्याप्त है – चाहे वह सहपाठियों के साहचर्य से उपजा गंगा-शेखर का प्रेम हो, दूर देश में एकांत की देन हो या जीवन के अभावों को भूलने की आकांक्षा का प्रतिरूप भग्गू उर्फ़ भावना का असफल प्रेम.

कहानियों में छोटे-छोटे पहाड़ी विश्वासों की चर्चा अनायास समाहित है – ‘भोर में उत्तर दिशा में ध्रुवतारा दिखने के बाद सोते रहने से घर में दरिद्रता का वास होता है.’

सभी कहानियां प्रगाढ़ कथा तत्व को लेकर चली हैं – यानी कहानी में कहानी जरूर है. पहाड़ में अपने बचपन से कथाकार ने संभवत: दो बातें संचित की हैं -– सच का कथन और जिद्दी संघर्ष. यह दोनों तत्व इन कहानियों में व्याप्त हैं.

कथाकार के पास एक समर्थ भाषा है जिसमें सरल प्रवाह है. शब्द-संसार ऐसा व्यापक कि सब दिशाओं से बेरोकटोक प्रवेश होता है –  भाग और करम से लेकर ..उसकी पूरी शख्सियत अदब का फलसफा थी’ तक.

उन्होंने चुस्त संवाद रचे हैं, प्रेमी चंद्रशेखर प्रेमिका गंगा से कहता है – ‘गंगा ! मैं शिव हूँ. तुम मेरी जटाओं से निकली गंगा हो.’

कैसी सरल पर तीखी मार करने वाली शब्दावली है क्रुद्ध पत्नी की शराबी पति के लिए – ‘सब मरेंगे एक दिन, ज़िंदा केवल तू ही रहेगा…तू तो ठर्रा पीकर जी जाएगा’.

कैसी सरल पर तीखी मार करने वाली शब्दावली है क्रुद्ध पत्नी की शराबी पति के लिए – ‘सब मरेंगे एक दिन, ज़िंदा केवल तू ही रहेगा…तू तो ठर्रा पीकर जी जाएगा’.

पहाड़ के जीवन के अतिरिक्त अपने आसपास के संसार को खुली आंखों देखती-परखती-रचती ये कहानियां आमंत्रित करती हैं कि आप इन्हें पढ़ें!

(लेखिका दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कॉलेज की सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर (हिन्दी) हैं। साथ ही विज़िटिंग प्रोफ़ेसर हिन्दी ऐलते विश्वविद्यालय, बुदापैश्त, हंगरी में तथा प्रोफ़ेसर हिन्दी हान्कुक यूनिवर्सिटी ऑफ़ फ़ॉरन स्टडीज़, सिओल, दक्षिण कोरिया में कार्यरत रही हैं। कई पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं, पुस्तक समीक्षा, संस्मरण, आलेख निरंतर प्रकाशित होते रहे हैं।)

Share this:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *