- फकीरा सिंह चौहान ‘स्नेही’
शहरों में बस के विषय में कई बार मैंने अपने पापा से सुना था, कि बस एक घर की तरह होती है. उसमें 40- 50 लोग एक साथ मिलकर बैठते हैं. उसके अंदर खिड़कियां भी होती हैं
जिससे बाहर का नजारा आसानी से देख सकते हैं.नदी के उस पार दूर पहाड़ की धार
पर खींची गई एक पतली-सी रेखा जिसे लोग सड़क कहते थे. सड़क पर चलने वाली मोटर मकड़ी की तरह सरकती नजर आती थी .नजर
जब भी बुजुर्ग बस या मोटर की बात करते थे, मैं बड़े उत्सुकता और ध्यान से सुनता था. मुझे नजदीक से सड़क और मोटर देखने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ था. अचानक एक दिन गांव के पंच आंगन में मीटिंग का आयोजन हुआ सभी बुजुर्गों ने उस मीटिंग में भाग लिया. मैं भी चुपके से एक दीवार की ओड लेकर आंगन के पीछे ही छुप छुप कर
मीटिंग में होने वाली बातों की चर्चा को सुनने लगा. गांव वाले सड़क के विषय में बात कर रहे थे. गांव के नजदीक सड़क आने वाली है. जिसका सर्वेक्षण होने वाला है. हमें मिलजुल कर गंभीरता से विचार करना होगा. कुछ गांव वाले सड़क निर्माण के पक्ष में थे,मगर अधिकतर लोग उसका कड़ा विरोध कर रहे थे. विरोध करने वालों का तर्क था कि सड़क के कटान से वन जंगल तथा खेती-बाड़ी को बहुत बड़ा नुकसान हो जायेगा. उस का प्राकृतिक सौंदर्य एवं अस्तित्व विकृत हो जाएगा जिससे पशुओं को घास पानी भी नहीं मिल पाएगा. मलुऐ गिरने से वन क्षेत्र दब जायेगें. हमारे पशु भूखे मर जाएंगे, साथ में जमीन का भी बहुत बड़ा नुकसान हो जाएगा. कुछ लोगों का तो यहां तक सोचना था कि अगर सड़क आ गई तो गांव में चोरियां डकैतियां बढ़ जाएगी. चोर हमारे पशुओं और घर वार को लूट कर ले जाएंगे.नजर
दो चार लोग सड़क आने के फायदे बता रहे थे. अगर सड़क बनती है,तो हमारी फसल, हमारी फल सब्जियां बाजार तक आसानी ओर सुगमता से पहुंचेगी . जिसका हम सब को लाभ मिलेगा.
बहुत जद्दोजहद के बाद सड़क बनने के लिए सारे गांव वालों की सहमति बनी, मगर सड़क गांव से कितनी दूर और कितनी नजदीक बनेगी इस विषय पर सबके अपने-अपने विचार ओर मत थे. मैं तो केवल इस बात से फूले नहीं समा रहा था कि अब मैं सड़क और बस को बहुत करीब से देखूगां.नजर
दूसरे दिन रोड का सर्वेक्षण होने वाला था,
सारे गांव वाले एकत्र हो गए. सर्वे के अनुसार सड़क गांव के बीचो-बीच बननी थी, मगर कोई भी गांव वाला अपने खेत अपने पेड़ अपने खेड़े छानी का नुकसान एवं बलि देने के लिए तैयार नहीं था. अधिकतर लोगों की यही जिद्द थी कि सड़क गांव से बहुत नीचे उतार देनी चाहिए ताकि गांव की खेती बाड़ी का नुकसान ना हो. सर्वेक्षण वाले गांव वालो को समझाने की बहुत ही मशकत कर रहे थे. मगर गांव वाले अपने जिद्द पर अड़े हुए थे. गांव वालों के आपसी मतभेद होने के कारण सड़क पर विवाद उठने लगा. गांव वालों की अकर्मण्यता को देखते हुए लोक निर्माण विभाग को सड़क का सर्वेक्षण रोकना पड़ा. मेरी तमाम उम्मीदों पर पानी फिरने लगा. तकरीबन दो साल तक यह विवाद अनसुलझा ही रहा. दो साल बाद लोक निर्माण विभाग को गांव वालों की मूर्खता के कारण सड़क के सर्वे में परिवर्तन करना पड़ा तथा सड़क गांव से काफी नीचे बनाना निश्चित हुआ. खैर मुझे इससे कोई मतलब नहीं था, मुझे तो केवल सड़क और ‘बस’ को देखना था, बस इतनी सी ख्वाहिश थी.नजर
कुछ ही समय पश्चात सड़क बनने का कार्य प्रारंभ हो गया. मशीनों से पहाड़ो को काट कर समतल बनाना तथा डायनामाइट से बड़े-बड़े पत्थरों ढंगारो को उखाड़ना मुझे बड़ा ताज्जुब होता था.
सड़क का मलुआ तथा पत्थर जब ढंगारो से गिरते थे, तो ऐसा लगता था माना आकाश में बादलों की गड़गड़ाहट के साथ लोहे के ओले बरस रहे हो, तथा प्रकृति पर कोई भयावह स्थिति उत्पन्न हो गयी हो. प्रकृति के इस दोहन से जंगलो से पशु पक्षी गायब होने लगे, खुले आकाश में कोई एक भी पक्षी बिहार करता नजर नहीं आ रहा था. गांव मैं जो पालतू पशु थे, उनका घर से बाहर निकलना दुर्लभ हो गया था . एक बार तो मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि मै अपने पशु पर तरस खांऊ या सड़क बनने की खुशी मनाऊं.नजर
कुछ ही सालों में सड़क बन करके तैयार हो गई, अब हम रोज सड़क पर आ कर क्रिकेट खेलने लगे . खुली खुली सी सड़क को देख कर मैं बहुत ही प्रसन्न चित्त था. एक बार सुबह शाम सड़क पर घूम कर आना अपनी आदत सी बन गई थी. मेरे गांव के एक बुजुर्ग बाबा थे, जिनके साथ मेरा गहरा सामंजस्य था. जवानी में वह शहरों में
बहुत घुम चुके थे. मैं अधिकतर उनसे बस के बारे में पूछा करता था . कई किलोमीटर पैदल चलकर वह जवानी के उस जमाने में शहर जाते थे. शरीर बूढ़ा होने के कारण आज वह शहर जाने में असमर्थ थे. उनके शरीर में कई बीमारियां लग चुकी थी जिसका इलाज वह शहर मे करवाना चाहते थे. मगर अफसोस शहर जाने का कोई साधन नहीं था. कई बार वह गांव से नीचे उतर कर सड़क के किनारे बैठ जाया करते थे, शायद वह भी किसी मोटर के जुस्तजू मे आंखें गड़ाए बैठे थे.नजर
मेरी खुशी का कोई ठिकाना
नहीं था. कभी मैं खुद को देखता कभी मैं बस को देखता. बाबा ड्राइवर से बस लेट आने का कारण पूछ रहे थे, ड्राइवर बहुत ही दुखी था. सड़क पर अनेक प्रकार के गड्ढे तो थे ही साथ मे संकरापन भी था, जिस कारण बस को गांव पहुंचने में बहुत विलंब हो गया था.
नजर
अब यह चर्चा जोरों पर थी कि कुछ ही
महीनों बाद इस रोड़ पर बस आने वाली है. मेरा भी सपना साकार होने वाला था . मैंने भी सोच विचार रखा था कि एक बार तो बस में जरूर बैठूंगा चाहे कुछ ही दूरी पर उतर कर पैदल ही वापस घर क्यों ना आना पड़े.नजर
बुजुर्ग बाबा का कहना था, कि सड़क
का निर्माण सही ढंग से नहीं किया गया है. पूरी सड़क भ्रष्टाचार की बलि चढ़ गई है. सड़क के ठेकेदारों ने इस पर बहुत ज्यादा घोटाला किया है, मगर मेरे लिए तो मात्र एक लंबी चौड़ी सड़क ही एक सपनों की सड़क थी.नजर
गांव के प्रधान से पता चला कि कल शाम को गांव में बस आने वाली है. मैं उस दिन रात भर सो नहीं पाया मैंने मां से कहा मां मुझे नए कपड़े दे दो, मैं सुबह नहा-धो करके बिल्कुल बस देखने को तैयार हो गया. मेरे साथ बुजुर्ग बाबा भी प्रात:काल से ही सड़क के किनारे बस देखने के लिए खड़े हो गए. जिज्ञासा वशं जो भी प्रश्न मेरे मन में उठता था बाबा मेरी जिज्ञासा को शांत कर देते थे. सुबह से शाम होने वाली थी मां ने दूर से खाना खाने के लिए आवाज भी लगाई, मगर खुशी के कारण मेरी तो भूख ही मर चुकी थी. केवल सामने वाले धार पर नजर टिकी थी, कब बस की आवाज मेरे कानों में सुनाई पड़े. धीरे-धीरे अंधेरा छाने लगा,
मगर बस का तो कोई नामोनिशान ही नही था.नजर
मैं और बाबा टूटे मन से फिर घर की तरफ वापस लौटने लगे. उस दौर में फोन का भी कोई साधन नहीं था कि हम किसी से बस की सही जानकारी हासिल कर सके. दिनभर सड़क पर खड़े खड़े मैं बुरी तरह थक चुका था मन भी टूट चुका था. मेरा सपना भी जैसे बिखरा हुआ सा लग रहा था. ऊपर से मां की डांट भी खानी पड़ी. मुझे नींद की झपकी कब लग गई मुझे पता ही ना चला. सुबह जब नींद खुली तो सारा गांव सड़क पर बस देखने को निकल चुका था.
मां ने मुझे जगाया उठ जाओ बेटा बस आ चुकी है. बस रात को 12:00 बजे गांव पहुंची है. मैं बिना मुंह धोए ही सड़क की और दौड़ पड़ा. बाबा मेरे से पहले ही सड़क के पास पहुंच चुके थे. मैं बस देख कर बहुत ही अचंभित था. चारों तरफ शीशों की खिड़कियां छत के ऊपर जाने के लिए सीढ़ियां अंदर बैठने के लिए सोफे वाली कुर्सियां. बरसात का मौसम होने के कारण बस पूरी तरह मिट्टी ओर किचड़ से सन हो चुकी थी.नजर
मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था.
कभी मैं खुद को देखता कभी मैं बस को देखता. बाबा ड्राइवर से बस लेट आने का कारण पूछ रहे थे, ड्राइवर बहुत ही दुखी था. सड़क पर अनेक प्रकार के गड्ढे तो थे ही साथ मे संकरापन भी था, जिस कारण बस को गांव पहुंचने में बहुत विलंब हो गया था.नजर
डरे सहमे से गांव वाले
सारा दोषारोपण ड्राइवर के ऊपर थोप रहे थे, क्योंकि उन्हें यह मालूम ही नहीं था कि अच्छी सड़कें होती कैसी है. उनका सोचना तो केवल एक पहाड़ खोदना मात्र ही सड़क की पहचान थी. मेरा बस में बैठने का सपना पूरा तो हुआ मगर वह सपना बहुत ही डरावना और खतरनाक बन कर साकार हुआ. मेरी ख्वाहिशे चकनाचूर हो गई थी.
नजर
अब बस शहर वापस जाने
के लिए तैयार थी बच्चे जवान महिलाएं सभी लोग बस देखने के लिए सड़क पर आ चुके थे. कुछ महिलाओं को जंगल में घास काटने के लिए तथा कुछ पुरुषों को छानियो़ में काम करने के लिए जाना था, वह सब लोग भी मात्र कुछ दूरी के लिए बस की छत पर बैठ गए. कुछ महिलाएं बस के अंदर बैठ गई कुछ लोग बस के पीछे सीढ़ियों में लटक गये. मैं भी बस के छत के ऊपर बैठ गया. सभी लोग बस के सफर का आनंद लेना चाह रहे थे. ड्राइवर यह सब देख कर अचंभित था, मगर गांव वाले बस से उतरने के लिए तैयार ही नहीं थे.नजर
अब बस धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी सड़क पर गड्ढे होने के कारण बस पूरी तरह हिल डोल रही थी मगर पहाड़ी लोगों को तो उसके हिलने डोलने से कुछ फर्क पड़ने वाला नहीं था.
ऐसा लग रहा था, जैसे बस पहाड़ों को रोधंती हुई आसमान में उड़ रही होगी .पूरी बस भगवान के भरोसे चल रही थी. उबड़ खाबड़ सड़क पर बस भयंकर उछाल मार रही थी. बस के अंदर महिलाएं धड़ाधड़ उल्टियां करने लगी. अगले ही मोड़ पर बस के पीछे वाला टायर पत्थर से टकरा कर सड़क के बाहर हो गया. बस टेड़ी होकर नीचे की ओर झुक गई जहां से बहुत गहरी खाई दिखाई देने लगी. बस के अंदर हाहाकार मचने लगा छत के ऊपर बैठे हुए लोगों ने छलांग मारकर कूदना शुरू कर दिया किसी के घुटनों में चोट लगी किसी के दांत टूट गए. ड्राइवर ने किसी तरह बस को तो काबू मे कर लिया मगर वह गांव वालों के गुस्से को काबू नहीं कर पाया. भीड़ ने अपना पूरा गुस्सा ड्राइवर पर उतार दिया तथा ड्राइवर को बेरहमी से पीटा गया. गांव वालों की समझ केवल इतनी थी कि ड्राइवर को बस चलाना नहीं आता है. खुद की मूर्खता पर उन्हें कोई पछतावा नहीं था.नजर
गांव वालों को
भी मोटर और बस में बैठने का तरीका अभी तक नहीं आया है. मोटरो और बसो में ठसा ठस बैठकर के लोग अपनी मौत को सीधा न्योता देते हैं. जिससे पहाड़ों पर दुर्घटनाओं का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है. बाबा सच कहते थे कि पहाड़ों की सड़कें केवल भ्रष्टाचार की लीपापोथी से तैयार की गई है. सड़कों पर गाड़ियों की संख्या बढ़ जाने के कारण उसके ज्यमितिक रूप के महत्व को घटा कर संरचनात्मक पहलु की अवस्थाओं पर पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए था.
नजर
आज सारा गांव मौत के मुंह में जाने वाला था उसका कारण केवल सड़क पर ठेकेदार द्वारा की गई लापरवाही और भ्रष्टाचारी थी. जिसको लोक निर्माण विभाग ने अनदेखा कर दिया.
डरे सहमे से गांव वाले सारा दोषारोपण ड्राइवर के ऊपर थोप रहे थे, क्योंकि उन्हें यह मालूम ही नहीं था कि अच्छी सड़कें होती कैसी है. उनका सोचना तो केवल एक पहाड़ खोदना मात्र ही सड़क की पहचान थी. मेरा बस में बैठने का सपना पूरा तो हुआ मगर वह सपना बहुत ही डरावना और खतरनाक बन कर साकार हुआ. मेरी ख्वाहिशे चकनाचूर हो गई थी.नजर
आज पहाड़ों पर सड़कों के जाल तो बहुत बीछ गये हैं. सड़के गांव गा़व तक पहुंच भी चुकी है, मगर उनमे से आधी सड़के भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है. गांव वालों को
भी मोटर और बस में बैठने का तरीका अभी तक नहीं आया है. मोटरो और बसो में ठसा ठस बैठकर के लोग अपनी मौत को सीधा न्योता देते हैं. जिससे पहाड़ों पर दुर्घटनाओं का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है. बाबा सच कहते थे कि पहाड़ों की सड़कें केवल भ्रष्टाचार की लीपापोथी से तैयार की गई है. सड़कों पर गाड़ियों की संख्या बढ़ जाने के कारण उसके ज्यमितिक रूप के महत्व को घटा कर संरचनात्मक पहलु की अवस्थाओं पर पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए था.नजर
(लेखक उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध गायक एवं गीतकार है. वर्तमान में भारत सरकार के
रक्षा मंत्रालय विभाग एएफएमएसडी लखनऊ में कार्यरत है.)