Month: February 2019

शहीदों को समर्पित फोटोग्राफी व पेंटिंग प्रदर्शनी

शहीदों को समर्पित फोटोग्राफी व पेंटिंग प्रदर्शनी

कला-रंगमंच
— वाई एस बिष्ट इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट गैलरी, नई दिल्ली में 16 से 18 फरवरी को फोटोग्राफी और पेंटिंग प्रदर्शनी 'अनुभूति' का आयोजन किया गया. यह कार्यक्रम इनक्रेडिबल आर्ट एंड कल्चर फाउंडेशन द्वारा किया गया, इसमें कलाकारों द्वारा विभिन्न प्रकार की फोटोग्राफी लगाई गई थी, जो प्रकृति, नाइट स्काई इत्यादि थी. इसी प्रकार पेंटिंग भी ज्वलन्त मुददों पर आधारित थी. कलाकारों ने लैंडस्केप और कई रूपों में अपनी पेंटिंग को कैनवास पर उतारा है. विज्ञान और प्रोद्योगिकी मंत्री डाॅ हर्ष वर्धन ने 16 फरवरी को इस कार्यक्रम का उद्घाटन किया. इसी के साथ ही तीन दिन की फोटोग्राफी तथा पेंटिंग प्रदर्शनी की शुरूआत हुई. डाॅ हर्ष वर्धन ने सभी फोटो और पेंटिंग को देखा और जिन लोगों ने इनको बनाया उनकी खूब तारीफ की. डाॅ हर्ष वर्धन और अनूप साह की उपस्थिति में डा चिराग उप्रेती की पुस्तक ‘अमेजिंग नाइट स्काई’ का विमोचन कि...
सन् 1848 : सिक्किम की अज्ञात घाटी में

सन् 1848 : सिक्किम की अज्ञात घाटी में

इतिहास
- जोसेफ डाल्‍टन हूकर कम्‍बचैन या नांगो के विपरीत दिशा को जाने वाली घाटी की ओर उसी नाम से पर्वत के दक्षिणी द्वार के ऊपर एक हिमोढ़ (Moraine) से कुछ मील नीचे एक चीड़ के जंगल में हमने रात बिताई. यह रिज यांगमा नदी को कम्‍बचैन से अलग करती है. यांगमा आगे लिलिप स्‍थान के समाने तम्‍बूर नदी में गिरती है. यांगमा नदी लगभग 15 फीट चौड़ी है और रास्‍ता नदी के उस पार दक्षिण की खड़ी चढ़ाई से होता हुआ हिमन द्वारा लाए गए मलवे पर पहुंचता है. यहां पर घने बुरांश, चमखड़ीक (पहाड़ी ऐस), पुतली (मेपल) के पेड़ और जूनीपर की झाड़ियां आदि चारों ओर फैली हैं. जमीन पर भोजपत्र की रजत छाल व बुरांश के फूलों की मुलायम पंखुड़ियां, जो टिश्‍यू पेपर सी पाण्‍डु रंग की हैं, बिछी हुई हैं. मैंने इस प्रकार की बुरांश प्रजाति पहले कभी नहीं देखी है. इसके हरे चटकीले पत्‍ते, जो 16 इंट लंबे हैं, के सौंदर्य को देखकर मैं चकित रह गया. पेड़ों ...
पलायन की पीड़ा को प्रोडक्शन में बदलेंगे : जेपी

पलायन की पीड़ा को प्रोडक्शन में बदलेंगे : जेपी

अभिनव पहल
- प्रेम पंचोली केसर का नाम सुनते ही लगता है बात जम्मू-कश्मीर की हो रही है. अपने देश में केसर की खेती सिर्फ जम्मू-कश्मीर में होती है. लेकिन अब लोगों ने नए—नए प्रयोग (अनुसंधान) करके केसर को अपने गमलों तक ला दिया. हालांकि गमलों में यह प्रयोग सफल तो नहीं हुआ, मगर केसर की खेती का प्रचार-प्रसार जरूर बढा. देहरादून में सहस्रधारा के पास एक गांव में कैप्टन कुमार भण्डारी वैद्य केसर की खेती कर रहे है. उनका यह परीक्षण सफल रहा है. कह सकते हैं कि प्राकृतिक संसाधनो से परिपूर्ण उत्तराखण्ड राज्य में यदि केसर की खेती को राज्य सरकार बढावा दें तो यह राज्य धन-धान्य हो सकता है. खैर! केसर की खेती के नफा-नुकसान पर वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता जगतम्बा प्रसाद ने एक रिपोर्ट निकाली है. वे अपनी रिपोर्ट के मार्फत बता रहे हैं कि ‘केसर खेती’ इस राज्य का भविष्य बना सकती है. हालांकि यह काम बहुत ही मंहगा है. इतिहा...
सन् 639 : हिमालय की तलहट में ह्वेनसांग 

सन् 639 : हिमालय की तलहट में ह्वेनसांग 

इतिहास
(गुरु पद्मसंभव की तिब्‍बत यात्रा से पूर्ण मध्‍य एशियाई बौद्ध समाज में कई मत-मतांतरों का जन्‍म हो चुका था. ह्वेनसांग मूलत: चीन के तांग राजवंश का बौद्ध धर्म गुरु था. चीन में तब महायान और हीनयान दो मुख्‍य बौद्ध धाराएं थीं. जीवन शाश्‍वत है या नहीं, इस विषय पर इन दोनों में गहरा मतभेद था. पुनर्जन्‍म तथा ऐसे अनेकानेक पक्षों पर गहराते मतभेदों को स्‍पष्‍ट करने की मंशा लेकर ह्वेनसांग बौद्ध की जन्‍मस्‍थली भारत की यात्रा पर निकला. ह्वेनसांग नंगा पर्वत की कोख में बसे चित्राल-उदयन से लेकर बल्तिस्‍तान, तक्षशिला, पुंछ, राजौरी, जम्‍मू, कुल्‍लू तक और वर्तमान  उत्‍तराखंड के पाद प्रदेश से लेकर उत्‍तर पूर्व हिमालय में बसे कामरूप शासक भाष्‍करबर्मन के दरबार तक पहुंचा. उत्‍तर भारत में तब हर्षवर्धन का साम्राज्‍य था. हर्षवर्धन की राजधानी में उसे पूर्ण राजकीय सम्‍मान मिला. भारत में रहकर उसने बौद्ध धर्म कें सभी मत्‍व...