उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में फले और फैलेगी वंशबेल

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  • प्रकाश उप्रेती

उत्तराखंड राज्य ने ही 21 पूरे नहीं किए हैं बल्कि उत्तराखंड की राजनीति को भी 22वां लग गया है. इन बीते वर्षों को अगर खलिया टॉप और द्रोणागिरी से देखेंगे तो लगेगा because कि 21 वर्षों में हम उल्टे पाँव चले हैं. वहीं अगर ऋषिकेश, देहरादून, अल्मोड़ा और कोटद्वार में बचे किसी खेत के किनारे बैठकर 21 वर्षों की यात्रा को देखा जाए तो महसूस होगा कि हम सिर्फ ‘बहे’ हैं. पार लगे भी तो वहाँ जाकर जहाँ अब एम्स बन रहा है. इन परिस्थितियों की जिम्मेदार वह ठेकेदारी वाली राजनीति है जिसने पहाड़ को फोड़कर ‘मैदान’ कर दिया. हर चुनाव में पहाड़ पहले से और ज्यादा  मैदान हुए तो वहीं राजनीति सुगम.

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प्रदेश में इस बार because का चुनाव 22वे पर ही है. मतलब हर नेता जोर लगा रहा कि इस बार टिकट बेटा- बेटी या घर के किसी सदस्य को मिल जाए. यह कवायद दोनों (भक) पार्टियों में चल रही है. उत्तराखंड का यह चुनाव वंशवाद की बेल का फलने और फैलने का चुनाव है.

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वैसे तो उत्तराखंड की राजनीति में कुछ घरानों का वर्चस्व आरम्भ से ही रहा है. उनके यहाँ इसे वंशवाद के तौर पर नहीं बल्कि अंग्रेजी के शब्द Legacy के तौर पर देखा जाता है. because इन घरानों के लिए राजनीति रिले रेस का ‘बैटन’  है. इन घरानों में-

भुवन चन्द्र खंडूड़ी (उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे और 16वीं लोकसभा में बीजेपी के सांसद थे.)

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ऋतु खंडूड़ी because भूषण- बेटी (विधायक)

मनीष खंडूड़ी- because बेटा (पौड़ी से कांग्रेस के लोकसभा प्रत्याशी रहे हैं)

विजय बहुगुणा because (उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे)

साकेत बहुगुणा- because बेटा (दो बार कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं)

सौरभ बहुगुणा-because बेटा (विधायक)

हरीश रावत because(उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे)

रेणुका रावत- becauseपत्नी (लोकसभा चुनाव लड़ चुकी हैं)

आनंद रावत- becauseबेटा (उत्तराखंड, युवा कांग्रेस के अध्यक्ष)

यशपाल आर्य because(उत्तराखंड सरकार में मंत्री)

संजीव आर्य – बेटा (विधायक)

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सतपाल महाराज because(उत्तराखंड सरकार में मंत्री)

अमृता रावत- becauseपत्नी (चुनाव लड़ चुकी हैं और उत्तराखंड सरकार में मंत्री भी रह चुकी हैं)

ये चंद बड़े becauseनामदार परिवारों की सूची है. ऐसे कई और भी नेता हैं जो कतार में खड़े हैं. बस मौके का इंतजार कर रहे हैं. मौका ‘भा’ से मिले या ‘का’ से बस मिलना चाहिए.

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इस बार होने वाले विधानसभा because चुनावों के आलोक में देखें तो वंशबेल देहरादून को लपेटती नज़र आ रही है. राजनीति की वंशबेल अमरबेल की तरह होती है जो अपने इर्दगिर्द की बाकि हरी बेलों को तो पनपने ही नहीं देती है. अच्छे खासे पेड़ों को भी सुखा देती है.  इस बार दावेदारी करने वाले में-

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अनुपमा रावत- हरीश रावत की बेटी.

अमित कपूर- हरबंस कपूर के बेटे.

दीपिका चुफाल- बिशन सिंह चुफाल की बेटी.

अभिषेक सिंह- प्रीतम सिंह के बेटे

विक्रम रावत- रणजीत रावत के बेटे.

कनक धनै- दिनेश धनै के बेटे.

विकास भगत- वंशीधर भगत के बेटे.

सुमित हृदयेश- स्वर्गीय इंदिरा हृदयेश के बेटे.

त्रिलोक सिंह चीमा- हरभजन सिंह चीमा के बेटे.

अनुकृति रावत- हरक सिंह रावत की पुत्रवधू.

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जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आता because जाएगा यह लिस्ट और लंबी हो सकती है. इनके अतिरिक्त भी कई हाईकमान के चक्कर लगा रहे हैं. इतने कम समय में राजनीति का जो वंशानुक्रम प्रदेश में फैल चुका है,  वह आने वाले समय में उत्तराखंड को किस दलदल में ले जाएगा उसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है.

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वैसे उत्तराखंड की राजनीति में because भाजपा और कांग्रेस दोनों एक दूसरे के लिए हमेशा किवाड़ खुला रखते हैं . कौन नेता कब कांग्रेस में और कब भाजपा में चला जाए इसका अंदाजा तो राजनीति के चाणक्य भी नहीं लगा सकते हैं, न लगा पाए हैं. खैर,

ये पब्लिक है,  सब जानती है.

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लेकिन जाति और भावनाओं में बह जाती है.

(डॉ. प्रकाश उप्रेती दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर एवं हिमांतर पत्रिका के संपादक हैं और
पहाड़ के सवालों को लेकर हमेशा मुखर रहते हैं.)

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