Tag: चमोली

जिला प्रशासन की आम लागों से अपील शारीरिक दूरी एवं मास्क है जरूरी

जिला प्रशासन की आम लागों से अपील शारीरिक दूरी एवं मास्क है जरूरी

चमोली
हिमांतर ब्यूरो, चमोली चमोली में  शुक्रवार को कोरोना के 264 नए मामले सामने आए. शुक्रवार को कर्णप्रयाग से 48, जोशीमठ से 40, गैरसैंण से 36, गोपेश्वर से 31, थराली से 28, नारायणबगड से 24, घाट से 12, देवाल से 11, गौचर से 10, पोखरी से 8, चमोली से 7 तथा अन्य स्थानों से 9 लोगों की रिपोर्ट पाॅजिटिव मिली. स्वास्थ्य विभाग ने सभी संक्रमितों का इलाज शुरू कर दिया है. जिले में अब तक 5185 लोग कोरोना से संक्रमित हुए है. जिसमें से 1376 केस एक्टिव हैं. कोविड संक्रमण की रोकथाम को लेकर जिला प्रशासन सभी जरूरी कदम उठा रहा है. जनपद वासियों को संक्रमण से बचने के लिए शारीरिक दूरी रखने एवं मास्क पहनने के लिए लगातार जागरूक किया जा रहा है. जिला अस्पताल सहित गौचर, कर्णप्रयाग एवं जोशीमठ में भी ट्रू-नॉट मशीन से भी कोविड टेस्ट किया जा रहा है. जिलाधिकारी स्वाति एस भदौरिया के निर्देशों पर स्वास्थ्य विभाग द्वारा सभी संदिग...
चमोली के लाल सांगा साइट एवं नागनाथ इंटर कॉलेज को बनाया जाए हैरिटेज साइट

चमोली के लाल सांगा साइट एवं नागनाथ इंटर कॉलेज को बनाया जाए हैरिटेज साइट

चमोली
विश्व सांस्कृतिक विरासत दिवस वर्ल्‍ड हैरिटेज डे (18 अप्रैल) पर विशेष आगाज फेडरेशन ने बद्रीनाथ विधायक महेंद्र भट्ट को दिया ज्ञापन जे.पी. मैठाणी आज विश्व हैरिटेज दिवस है. इस दिवस को मनाये जाने की पहल 18 अप्रैल 1982 में अंतर्राष्ट्रीय स्मारक और स्थल परिषद द्वारा ऐतिहासिक महत्व के धरोहरों के संरक्षण तथा प्रोत्साहन के लिए किया गया था. इस दिवस को दुनिया भर में पुरानी सामाजिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक धरोहर जैसे- स्मारक, भवन, स्थापत्य कला, महत्वपूर्ण मानव निर्मित संरचनाओं के साथ-साथ पुराने पुरातत्विक महत्व के निर्माण कार्यों के लिए मनाया जाता है. विश्व हैरिटेज दिवस आज हम आपको उत्तराखण्ड के सीमांत जनपद चमोली के मुख्य कस्बे चमोली से गोपेश्वर जाते हुए मोटर पुल के दाईं ओर 1911 में अंग्रेजों द्वारा अलकनन्दा नदी (Alakananda River) पर बनाये गये पुराने पैदल पुल के खंडहरों और शानदार कटवा पत...
रिंगाल: उत्तराखंड की ग्रामीण अर्थव्यवस्था का हरा सोना

रिंगाल: उत्तराखंड की ग्रामीण अर्थव्यवस्था का हरा सोना

उत्तराखंड हलचल
जे. पी. मैठाणी पहाड़ की अर्थव्यवस्था के साथ रिंगाल का अटूट रिश्ता रहा है. रिंगाल बांस की तरह की ही एक झाड़ी है. इसमें छड़ी की तरह लम्बे तने पर लम्बी एवं पतली पत्तियां गुच्छी के रूप में निकलती है. यह झाड़ी पहाड़ की संस्कृति से जुड़ी एक महत्वपूर्ण वनस्पति समझी जाती है. पहाड़ के जनजीवन का पर्याय रिंगाल, पहाड़ की अर्थव्यवस्था का सुदृढ़ अंग रहा है. प्राचीन काल से ही यहाँ के बच्चों की प्राथमिक शिक्षा का श्री गणेश रिंगाल की बनी कलम से होता था. घास लाने की कण्डी से लेकर सूप, टोकरियां, चटाईयां, कण्डे, बच्चों की कलम, गौशाला, झोपडी तथा मकान तक में रिंगाल अनिवार्य रूप में लगाया जाता है. वानस्पतिक परिचय- वन विभाग के अनुसार रिंगाल एक वृक्ष है, परन्तु वन विभाग की 1926-1928 से सन् 1936-37 की कार्य योजना में रिगाल की परिभाषा- “रिंगाल एक बहुवर्षीय पेड़ों के नीचे उगने वाली झाड़ी/ घास है जो नोड्स एवं इन्टर नोड्स म...
बादल फटने की त्रासदी से कब तक संत्रस्त रहेगा उत्तराखंड?

बादल फटने की त्रासदी से कब तक संत्रस्त रहेगा उत्तराखंड?

उत्तराखंड हलचल
डॉ. मोहन चन्द तिवारी उत्तराखंड इन दिनों पिछले सालों की तरह लगातार बादल फटने और भारी बारिश की वजह से मुसीबत के दौर से गुजर रहा है.हाल ही में 20 जुलाई को पिथौरागढ़ जिले के बंगापानी सब डिवीजन में बादल फटने से 5 लोगों की मौत हो गई, कई घर जमींदोज हो गए और मलबे की चपेट में आने की वजह से 11 लोगों के बह जाने की खबर है.नदियां उफान पर हैं.इससे पहले 18 जुलाई को भी पिथौरागढ़ जिले में बादल फटने की दर्दनाक घटना हुई है.पहाड़ से अचानक आए जल सैलाब से कई घर दब गए,पांच घर बह गए और तीस घर खतरे की स्थिति में हैं.गोरी नदी में जलस्तर बढ़ने से सबसे ज्यादा नुकसान मुनस्यारी में हुआ.वहां एक पुल पानी में समा गया. आखिर ये बादल कैसे फटते हैं? ये उत्तराखंड के इलाकों में ही क्यों फटते हैं? बादल फटने का मौसम वैज्ञानिक मतलब क्या है? इन तमाम सवालों पर मैं आगे विस्तार से चर्चा करुंगा. लेकिन पहले यह बताना चाहुंगा कि उत्तर...
शिलाखर्क बुग्याल ट्रैक: रहस्य और रोमांच से भरा ट्रैकिंग स्‍पॉट

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पर्यटन
कम और ना जाने, जाने वाले ट्रैंकिंग रूट - पार्ट-2 पांडव यहॉं बना रहे थे विशाल मंदिर, लेकिन... जे. पी. मैठाणी उत्तराखण्ड के सीमान्त जनपद चमोली की एक बेहद रोमांचक घाटी है पाताल गंगा घाटी. बायोटूरिज़्म पार्क पीपलकोटी से लगभग 11 किमी. की दूरी पर पाखी गरूड़गंगा, पनाईगाड, टंगणी और बेलाकूची के बाद एक छोटा सा 10-12 दुकानों का बाजार है जिसका नाम पातालगंगा है. संभवतः यह नाम देश की आजादी के बाद जब भारत-चीन बॉर्डर पर सड़कों का विकास हो रहा था, तब पड़ा होगा. उस दौरान 70 के दशक में अलकनन्दा घाटी की सबसे बड़ी बेलाकूची बाढ़ आई थी. उसके बाद पीपलकोटी से भंडीरपाणी के बाद सड़क का अलाइनमेन्ट बदल दिया गया और अब सड़क पाखी गरूड़ गंगा, पनाईगाड़ टंगणी से अपर बेलाकूची होते हुए एक ऐसे स्थान पर पहुँचती है जहाँ पर लॉर्ड कर्जन पास के जलागम से विभाजित होकर एक बड़ी जलधारा आती है. इस स्थान पर राष्ट्रीय राजमार्ग के बनने में ए...