Tag: खेती-किसानी

ऋषि, कृषि और कुर्सी का समायोजन ही किसानी का उत्कर्ष है : संत गणि राजेन्द्र विजयजी महाराज

ऋषि, कृषि और कुर्सी का समायोजन ही किसानी का उत्कर्ष है : संत गणि राजेन्द्र विजयजी महाराज

दिल्ली-एनसीआर
हिमांतर ब्यूरो, नई दिल्ली यदि हमें कृषि यानी खेती-किसानी में बहुत उन्नति करनी है तो इसके लिए हमें ऋषि- यज्ञ, कृषि मतलब खेती और कुर्सी यानी सत्ता का संतुलित समायोजन करना होगा। ऋषि और कृषि को जीवन प्रदान करने वाले गौवंश का संरक्षण किये बिना हम भारत की ग्रामीण खेती को जिन्दा नही रख सकते। अभी भी भारत की 50 प्रतिशत से अधिक खेती ऐसे ही सीमांत किसानों के पास है। गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश में हम लोगों ने विभिन्न संगठनों के माध्यम से खेती-किसानी में गौवंश की पुनप्र्रतिष्ठा के गंभीर प्रयास किये हैं जिसके परिणामस्वरूप प्राकृतिक और जैविक खेती का रकबा तेजी से बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले एक दशक में भारतीय कृषि में कई अभिनव योजनाओं का सूत्रपात किया है जिसके परिणाम अब नजर आने लगे हैं। ये उद्गार बीते दशक में कृषि और किसानों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ...
पहाड़ की कृषि आर्थिकी को संवार सकता है मंडुआ

पहाड़ की कृषि आर्थिकी को संवार सकता है मंडुआ

खेती-बाड़ी
चन्द्रशेखर तिवारी उत्तराखण्ड में पृथक राज्य की मांग के लिए जब व्यापक जन-आंदोलन चल रहा था तब उस समय यह नारा सर्वाधिक चर्चित रहा था - ’मंडुआ बाड़ी खायंगे उत्तराखण्ड राज्य बनायेंगे'. because स्थानीय लोगों के अथक संघर्ष व शहादत से अलग पर्वतीय राज्य तो हासिल हुआ परन्तु विडम्बना यह रही कि राज्य बनने के बाद यहां के गांवों में न तो पहले की तरह मंडुआ-बाड़ी खाने वाले युवाओं की तादात बची रही और नहीं मंडुआ की बालियों से लहलहाते सीढ़ीदार खेतों के आम दृश्य. ज्योतिष राज्य बन जाने के बाद खेती-बाड़ी और पशुपालन से जुड़े ग्रामीण युवाओं के रोजगार की तलाश में मैदानी इलाकों के शहरों व महानगरों की ओर रुख करने से यहां मडुआ जैसी कई because परम्परागत फसलें हाशिये की ओर चली गयीं. मंडुआ की घटती खेती को कृषि विभाग के आंकडे़ भी तस्दीक करते हैं. उत्तराखण्ड में वर्ष 2004-2005 के दौरान 131003 हेक्टेयर में मडुआ की खेती ह...