प्रभु अवतरेहु हरनि महि भारा
राम नवमी पर विशेष
प्रो. गिरीश्वर मिश्र
हर संस्कृति अपनी जीवन-यात्रा के पाथेय के रूप में कोई न कोई छवि आधार रूप में गढ़ती है। यह छवि एक ऐसा चेतन आईना बन जाती है जिससे आदमी अपने को पहचानता है और उसी से उसे जो होना चाहता है या हो सकता है उसकी आहट भी मिलती है। इस अर्थ में अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों ही इस अकेली छवि में संपुंजित हो कर आकार पाते हैं। ऐसे ही एक अप्रतिम चरितनायक के रूप में श्रीराम युगों-युगों से भारतीय जनों के मन मस्तिष्क में बैठे हुए हैं। भारतीय मन पर उनका गहरा रंग कुछ ऐसा चढ़ा है कि और सारे रंग फीके पड़ गए। भारतीय चित्त के नवनीत सदृश श्रीराम हज़ारों वर्षों से भारत और भारतीयता के पर्याय बन चुके हैं। इसका ताज़ा उदाहरण अयोध्या है। यहाँ पर प्रभु के विग्रह को ले कर जन-जन में जो अभूतपूर्व उत्साह उमड़ रहा है वह निश्चय ही उनके प्रति लोक - प्रीति का अद्भुत प्रमाण है। वे ऐसे शिखर ...