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जागर, आस्था और सांस्कृतिक पहचान की परंपरा

जागर, आस्था और सांस्कृतिक पहचान की परंपरा

संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—18प्रकाश उप्रेतीआज बात बुबू (दादा) और हुडुक की. पहाड़ की आस्था जड़- चेतन दोनों में होती है . बुबू भी दोनों में विश्वास करते थे. बुबू 'जागेरी' (जागरी), 'मड़-मसाण', 'छाव' पूजते थे और किसान आदमी थे. उनके रहते घर में एक जोड़ी भाबेरी बल्द होते ही थे. खेती और पूजा उनकी आजीविका का साधन था. उनका व्यक्तित्व बड़ा आकर्षक था. तकरीबन 5 फुट 8 इंच का कद, ललाट पर चंदन, कानों में सोने के कुंडल, हाथ में चांदी के कड़े, सर पर सफेद टोपी जिसमें एक फूल, बदन पर कुर्ता- भोटु और धोती, हाथ में लाठी जिसमें ऊपर की तरफ एक छोटा सा घुँघरू रहता व नीचे लोहे का 'सम'(लोहे की नुकीली चीज) और आवाज इतनी कड़क की गाँव गूँजता था. इलाके भर में उनको सब जानते थे. जब भी जागेरी लगाने जाते थे तो कंधे पर एक झोला होता था जिसमें हुडुक, लाल वाला तौलिया, मुरली (बाँसुरी), 'थकुल बजेणी आंटु' (थाली बजाने वाल...