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भाषा की सामाजिक निर्मिति

भाषा की सामाजिक निर्मिति

शिक्षा, साहित्यिक-हलचल
प्रकाश चंद्र भाषा सिर्फ वही नहीं है जो लिखी व बोली जाती है बल्कि वह भी है जो आपकी सोच, व्यवहार, रुचि और मानसिकता को बनाती है। आज लिखित भाषा से ज्यादा इस मानसिक भाषा का विश्लेषण किया जाना जरूरी है। भाषा का दायरा बहुत बड़ा है इसे सिर्फ एक शब्द या फिर सैद्धांतिक व व्याकरणिक कोटि में बद्ध करके ही व्याख्यायित व विश्लेषित नहीं किया जा सकता है। भाषा की संरचना में सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, और आर्थिक पहलुओं का अहम् योगदान होता है। इसलिए अब भाषा पर चिंतन सिर्फ कुछ जुमलों को लेकर ही नहीं किया जा सकता है बल्कि उन सभी आयामों, संदर्भों पर बात करनी होगी जिनसे ‘भाषा’ का निर्माण होता है या फिर जिनसे भाषिक मानसिकता बनती है। भाषिक मानसिकता ही भाषा के निर्माण में अहम होती है। भाषा पर हिंदी में आज भी कुछ परंपरागत जुमलों के साथ ही बात होती है। जिनमें- भाषा बहता नीर है, भाषा अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम...
सुरक्षा कवच के रूप में द्वार लगाई जाती है कांटिली झांड़ी

सुरक्षा कवच के रूप में द्वार लगाई जाती है कांटिली झांड़ी

उत्तराखंड हलचल, धर्मस्थल, साहित्‍य-संस्कृति
आस्था का अनोख़ा अंदाज  - दिनेश रावत देवलोक वासिनी दैदीप्यमान शक्तियों के दैवत्व से दीप्तिमान देवभूमि उत्तराखंड आदिकाल से ही धार्मिक, आध्यात्मिक, वैदिक एवं लौकिक विशष्टताओं के चलते सुविख्यात रही है। पर्व, त्यौहार, उत्सव, अनुष्ठान, मेले, थौलों की समृद्ध परम्पराओं को संजोय इस हिमालयी क्षेत्र में होने वाले धार्मिक, अनुष्ठान एवं लौकिक आयोजनों में वैदिक एवं लौकिक संस्कृति की जो साझी तस्वीर देखने को मिलती है वह अनायास ही आस्था व आकर्षण का केन्द्र बन जाती है। संबंधित लोक का वैशिष्टय है कि इस क्षेत्र में होने वाले तमाम आयोजनों में लोकवासियों तथा लोकदेवताओं के मध्य सहज संवाद, गीत—संगीत व नृत्य के कई नयनाभिराम दृश्य सहजता से सुलभ हो जाते हैं। श्रावण मास में मानो समूचा लोक शिवमय हो जाता है। श्रावण मास में जब लोक के ये देवी-देवता कैलाश प्रस्थान को तैयार होते हैं तो क्षेत्रवासी खासे चिंतित व भयभी...