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चमोली के गैरसैंण में नई तकनीक से बनाए गए टनल और शैड में मशरूम उत्पादन के किसानों ने सीखे तौर तरीके

चमोली के गैरसैंण में नई तकनीक से बनाए गए टनल और शैड में मशरूम उत्पादन के किसानों ने सीखे तौर तरीके

चमोली
जनपद में आदिबदरी, मालसी और खेती गांव बन रहे मशरूम उत्पादन के मॉडल विलेज किसानों की आय दोगुनी करने में जिला प्रशासन की पहल हो रही सार्थक जे पी मैठाणी सीमान्त जनपद चमोली में उद्यानिकी, मशरूम उत्पादन, फल संरक्षण, सब्जी पौध उत्पादन और स्टोन फ्रूट की खेती के प्रयास रंग लाने लगे हैं. इस कड़ी में जनपद चमोली के गैरसैंण ब्लॉक के गांव- आदिबद्री, खेती, मालसी और थापली गांव मशरूम उत्पादन के लिए मॉडल विलेज बन गए है. इन मॉडल विलेज के किसानों से राज्य के अन्य जनपदों के किसान भी प्रेरित हो रहे हैं. सोमवार को नैनीताल, अल्मोड़ा और पौड़ी जिले के 25 किसानों ने चमोली के गैरसैंण ब्लाक में मशरूम उत्पादक गांवों का एक्सपोजर विजिट कर प्रशिक्षण लिया. इस दौरान किसानों ने यहां पर मशरूप उत्पादन के लिए नई तकनीक से बनाए गए टनल और शैड में मशरूम उत्पादन के तौर तरीके सीखें तथा मशरूम उत्पादन की जानकारी ली. मास्टर ट्र...
प्राकृतिक रंग आधारित आजीविका के लिए वरदान है – आसाम नील पौधे की खेती

प्राकृतिक रंग आधारित आजीविका के लिए वरदान है – आसाम नील पौधे की खेती

खेती-बाड़ी
अनीता मैठाणी हिमालय क्षेत्र में प्राकृतिक रंग देने वाले कई पेड़ पौधे और झाड़ियाँ हैं. दूसरी तरफ पूरी दुनिया में नेचुरल कलर को लेकर - प्राकृतिक रंगों की बहुत मांग बढ़ गयी है. कुछ वर्षों तक हम उत्तरखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में - सेमल के फूल, सकीना (हिमालयन इंडिगो), रुइन के फल (सिन्दूर)  काफल की छल, किल्मोड की जड़ो, बुरांस के फूलों आदि को प्राकृतिक रंग के लिए उपयोग करते थे. लेकिन 5-6 वर्ष पूर्व - पहाड़ के हश्तशिल्प प्राकृतिक रंगों पर काम कर रही - सामाजिक संस्था अवनी को नार्थ ईस्ट के एक पौधे - आसाम नील के बारे में पता चला. अवनी संस्था की निदेशक श्रीमती रश्मि जी ने बताया कि, आसाम नील पौधे जिसको अंग्रेजी में - Strobilanthes Cusia कहते हैं, आसाम में सिर्फ नील कहते हैं , इस पौधे के प्राकृतिक रंग की पूरी दुनिया में बहुत मांग है, लेकिन ये पौधा अभी उत्तराखंड में सबसे पहले अवनी संस्था ही लाई - अवनी 7-8 स...