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‘उत्तरायणी’ वैदिक आर्यों का रंग-रंगीला ऐतिहासिक लोकपर्व

‘उत्तरायणी’ वैदिक आर्यों का रंग-रंगीला ऐतिहासिक लोकपर्व

लोक पर्व-त्योहार
डॉ. मोहन चंद तिवारी हमें अपने देश के उन आंचलिक पर्वों और त्योहारों का विशेष रूप से आभारी होना चाहिए जिनके कारण भारतीय सभ्यता और संस्कृति की ऐतिहासिक पहचान आज भी सुरक्षित है. उत्तराखण्ड का 'उत्तरायणी' पर्व हो या बिहार का 'छठ पर्व' केरल का 'ओणम पर्व' because हो या फिर कर्नाटक की 'रथसप्तमी' सभी त्योहार इस तथ्य को सूचित करते हैं कि भारत मूलतः सूर्य संस्कृति के उपासकों का देश है तथा बारह महीनों के तीज त्योहार यहां सूर्य के संवत्सर चक्र के अनुसार मनाए जाते हैं. ‘पर्व’ का अर्थ है गांठ या जोड़. भारत का प्रत्येक पर्व एक ऐसी सांस्कृतिक धरोहर का गठजोड़ है because जिसके साथ पौराणिक परम्पराओं के रूप में प्राचीन कालखण्डों के इतिहास की दीर्घकालीन कड़ियां भी जुड़ी हुई हैं. पौराणिक ऐतिहासिक दृष्टि से सूर्योपासना से जुड़ा मकर संक्रान्ति या उत्तराखण्ड का 'उत्तरायणी' का पर्व भारत के आदिकालीन सूर्यवंशी भरत र...
अपना गाँव

अपना गाँव

कविताएं
अंकिता पंत गाँवों में फिर से हँसी ठिठोली है बुजुर्गों ने, फिर किस्सों की गठरी खोली है. रिश्तों में बरस रहा फिर से प्यार मन रहा संग, खुशी से हर त्यौहार. गाँवों में फिर से खुशियाँ छाई हैं परदेसियों को बरसों बाद, घर की याद आई है. महामारी एक बहाना बन कर आ गई खाली पड़े मकानों को, बरसों बाद घर बना गई. पहाड़ अब और अधिक चमकने लगे हैं अपनों से जुड़कर, ये रिश्ते और अधिक महकने लगे हैं. रिश्तों की चाहत, अपनी मिट्टी से फिर जुड़ने लगी है अब मेरे पहाड़ों को, सुकूँ भरी राहत मिलने लगी है. विजयपुर  (खन्तोली) जनपद – बागेश्वर, उत्तराखंड  ...