Tag: लोकसंस्कृति

बिखोत पर्व पर भिलंगना घाटी में नवोदित प्रतिभाओं ने बिखेरे लोकसंस्कृति के रंग

बिखोत पर्व पर भिलंगना घाटी में नवोदित प्रतिभाओं ने बिखेरे लोकसंस्कृति के रंग

टिहरी गढ़वाल
हिमांतर ब्यूरो, भिलंगना (टिहरी गढ़वाल) भगवान श्री रघुनाथ जी के प्रांगण और भृगु गंगा के सुरम्य तट पर स्वर्गीय इंद्रमणि बडोनी जी की कर्मभूमि इस बार बिखोत पर्व पर लोकसंस्कृति और नवोदित प्रतिभाओं की अभिव्यक्ति की साक्षी बनी. राजेन्द्र सिंह चौहान के निर्देशन में गढ़भूमि सांस्कृतिक एवं नाट्य कला मंच के शुभारंभ की यह बेला उपस्थित अतिथियों, भिलंगना घाटी के स्थानीय अभिभावकों और आयोजकों के लिए मानों एक अकल्पनीय उपलब्धि थी. राइजिंग सन पब्लिक स्कूल घुत्तू के नन्हे मुन्ने कलाकार यूं तो पहले ही दिल्ली में उत्तरायणी के राष्ट्रीय मंच पर राजेन्द्र सिंह चौहान के निर्देशन में माधो सिंह भंडारी की शानदार प्रस्तुति दे चुके थे, उसके बाद भिलंगना क्षेत्र विकास समिति के स्थापना दिवस पर जीतू बगडवाल नाटिका प्रस्तुत की थी, जिसकी बहुत चर्चा और तारीफ हुईं. इन उदीयमान कलाकारों अद्वितीय अभिनय से जीतू बगडवाल नाटिका को ...
पहाड़ की लोकसंस्कृति को पहचान दी लोक गायक हीरासिंह राणा ने

पहाड़ की लोकसंस्कृति को पहचान दी लोक गायक हीरासिंह राणा ने

समसामयिक
डॉ. मोहन चन्द तिवारी बहुत ही दुःख की बात है कि कोरोना काल के इस कठिन दौर में "लस्का कमर बांध, हिम्मत का साथ फिर भोल उज्याई होलि, कां ले रोलि रात"- जैसे अपने ऊर्जा भरे बोलों से जन जन को कमर कस के हिम्मत जुटाने का साहस बटोरने और रात के अंधेरे को भगाकर उजाले की ओर जाने की प्रेरणा देने वाले उत्तराखंड लोक गायिकी के पितामह, लोक-संगीत के पुरोधा तथा गढ़वाली कुमाऊंनी और जौनसारी अकादमी,दिल्ली सरकार के उपाध्यक्ष श्री हीरा सिंह राणा जी अब हमारे बीच नहीं रहे. 'हिरदा कुमाऊनी' के नाम से पुकारे जाने वाले हीरा सिंह राणा जी का जन्म 16 सितंबर 1942 को उत्तराखण्ड के कुमाऊं मंडल के ग्राम-मानिला डंढ़ोली, जिला अल्मोड़ा में हुआ.उनकी माताजी का नाम नारंगी देवी और पिताजी का नाम मोहन सिंह राणा था. लोकगायकी की पहचान बने राणा जी का अचानक चला जाना उत्तराखण्डी समाज के लिए बहुत दुःखद है और पर्वतीय लोक संगीत के ल...