Tag: पहाड़ की संस्कृति

धार, खाळ, खेत से सैंण तक

धार, खाळ, खेत से सैंण तक

साहित्‍य-संस्कृति
विजय कुमार डोभालपहाड़ी क्षेत्र में जन्मे, पले-बढ़े, शिक्षित-दीक्षित होने के बाद यहीं रोजगार (अध्यापन- कार्य) मिलने के कारण कभी भी यहां से दूर जाने का मन ही नहीं हुआ. वैसे भी हम पहाड़ी-लोगों की अपनी कर्मठता, आध्यात्मिकता तथा संघर्षशीलता अपनी अलग ही पहचान रखती है. हमारा अपना संसार पहाड़ के विभिन्न स्वरूपों धार खाळ, खेत, सैंण से शुरू होकर तराई-भाबर तक ही सीमित हैं. हमारी पढ़ाई-लिखाई, खरीददारी, व्यापार, रिश्ते-नातेदारी आदि भी यहीं तक सीमित होती है.हमारा पहाड़ पावन गंगा-यमुना के उद्गम, पवित्र चार धाम, अन्य तीर्थस्थानों, विश्व प्रसिद्ध पर्यटक-स्थलों, सांस्कृतिक धरोहरों, ब्रह्मकमल, मोनाल, कस्तूरी मृग, बुरांश आदि के कारण देशवासियों ही नहीं वरन् विदेशियों को भी अपनी ओर आकर्षित करता है.हमारा पहाड़ पावन गंगा-यमुना के उद्गम, पवित्र चार धाम, अन्य तीर्थस्थानों, विश्व प्रसिद्ध पर्यटक-स्थलों, स...
लोक संस्कृति में रंग भरने वाला पहाड़ का चितेरा  

लोक संस्कृति में रंग भरने वाला पहाड़ का चितेरा  

उत्तराखंड हलचल
ललित फुलाराभास्कर भौर्याल बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं. उम्र सिर्फ 22 साल है. पर दृष्टिकोण और विचार इतना परिपक्व कि आप उनकी चित्रकारी में समाहित लोक संस्कृति और आंचलिक परिवेश को भावविभोर होकर निहारते रह जाएंगे. उनके चटक रंग बरबस ही अपनी दुनिया में खोई हुई आपकी एकाग्रता, को अपनी तरफ खींच लेंगे. वो जो अंकित कर रहे हैं, अपनी जड़ों की तरफ ले जाने की खुशी से आपको भर देगा. भास्कर के तैलीय चित्र हृदय की गहराई में जितने उतरते हैं, उनकी कुमाऊंनी में प्रकृति के सौंदर्यबोध वाली कविताएं उजाड़ मन में पहाड़ प्रेम को उतना ही ज्यादा भर देती हैं.भास्कर अब तक 200 से ज्यादा चित्र बना चुके हैं, जिनमें ग्रामीण परिवेश की बारीकियां, पहाड़ की संस्कृति में अहम भूमिका निभाने वाले वाद्य यंत्र, उत्तराखंड की संस्कृति के प्रतीक लोकनृ­त्य झोड़ा और चांचरी, एवं कुमाऊंनी, गढ़वाली और जौनसारी वेशभूषा.... आदि के व...