Tag: जौनसार

एप्पल मिशन को रोजगार का जरिया बनाकर जगाई स्वरोजगार की अलख

एप्पल मिशन को रोजगार का जरिया बनाकर जगाई स्वरोजगार की अलख

खेती-बाड़ी
नीरज उत्तराखंडी जनजाति क्षेत्र जौनसार बावर के देवघार ख़त के मुन्धौल गांव निवासी मुकेश जोशी ने बागवानी को रोजगार का जरिया बनाकर न केवल स्वरोजगार को बढ़ावा दिया बल्कि चंद रुपए की पगार के लिए मैदानों  की खाक छानते बेरोजगार युवाओं के लिए एक प्रेरणा का संदेश भी दिया है. संभ्रांत  सम्पन्न संयुक्त परिवार में4 मई 1999 में जन्मे मुकेश जोशी के पिता दिनेश चन्द्र जोशी जल संस्थान में कार्यरत हैं जबकि रमोला जोशी कुशल गृहिणी हैं. मुकेश जोशी ने सिविल इंजिनियरिंग की पढ़ाई छोड़कर हिमाचल प्रदेश के कोटखाई निवासी अवनीश चौहान से प्रेरित होकर स्वरोजगार की ओर रुख किया और संयुक्त परिवार के बरसों पुराने बागवानी के व्यवसाय को नया रूप दिया. वर्तमान समय में मुकेश जोशी एप्पल मिशन योजना अंतर्गत 6100 - 6200 फीट यानी 1850 मीटर की ऊंचाई पर 1 हेक्टेयर क्षेत्रफल में सेब रूट स्टाक प्रजाति की सघन खेती कर रहे हैं. विगत वर्...
अबीर-गुलाल संग और निखरे लोक संस्कृति के रंग

अबीर-गुलाल संग और निखरे लोक संस्कृति के रंग

देहरादून
सीएम आवास में उत्तराखंड की सांस्कृतिक समृद्धि और एकता के हुए दर्शन. होली मिलन कार्यक्रम में जुटे प्रदेश भर के लोक कलाकार, गढ़वाल-कुमाऊं से लेकर जौनसार तक के गूंजे होली गीत एक तरफ, हारूल नृत्य करते जौनसारी कलाकार, तो दूसरी तरफ, अपनी ही धुन में मगन होली गीत गातीं नाचतीं लोहाघाट से आईं महिला कलाकार. इन सबके बीच, पौड़ी जिले के राठ क्षेत्र से आई सांस्कृतिक टोली का अपना आकर्षण था, थारू जनजाति का नृत्य तो छोलिया नृत्य करते अल्मोड़ा के कलाकारों की अपनी मस्ती. सीएम आवास पर होली मिलन कार्यक्रम की यही तस्वीर उभरी, जिसमें गढ़वाल-कुमाऊं से लेकर जौनसार तक का होली गायन था, नृत्य था. लोक संस्कृति का वह प्रभाव भी था, जो उत्तराखंड को सांस्कृतिक तौर पर विशिष्टता प्रदान करता है. सीएम आवास के खुले परिसर में गुरूवार को उत्तराखंड की लोक संस्कृति के तमाम रंग बिखरे. उत्तराखंड की सांस्कृतिक एकता और समृद्धि के दर्शन ह...
गज्जू-मलारी वीडियो एल्बम का लोकार्पण

गज्जू-मलारी वीडियो एल्बम का लोकार्पण

देहरादून
विकासनगर. जौनसार-बावर की लोक संस्कृति पर आधारित जौनसारी बोली भाषा में निर्मित गज्जू-मलारी के वीडियो एल्बम का लोकार्पण जौनसार बावर भवन में किया गया. गज्जू-मलारी वीडियो एल्बम के लोकार्पण अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित हुए कालसी के क्षेत्रीय वन अधिकारी ज्वाला प्रसाद ने कहा कि जौनसार—बावर, जौनपुर—रवांई की संस्कृति आपसी प्रेम और सौहार्द की संस्कृति है. इस क्षेत्र का खानपान, रीति रिवाज, परंपरा व रहन-सहन अद्भुत है. इसलिए यहां पर जो गीत बनाए जा रहे हैं उन्हें लोग खूब पसंद करते हैं. कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित हुए विधानसभा के पूर्व सूचना अधिकारी भारत चौहान ने कहा कि जौनसार बावर की लोक संस्कृति केवल गीत और नृत्य तक सीमित नहीं है, बल्कि यहां के लोगों के अंदर सहकारिता की भावना कूट-कूट कर भरी हुई है, आपसी सहयोग से सभी समुदाय को साथ लेकर चलना यह भी एक संस्कृति का अंग है. उ...
निर्मल की निर्मलता और कर्म सिंह की कर्मकता ने धर्मावाला को बनाया बागवानी का धाम

निर्मल की निर्मलता और कर्म सिंह की कर्मकता ने धर्मावाला को बनाया बागवानी का धाम

देहरादून
जौनसार के निर्मल तोमर के झोली में एक और राष्ट्रीय पुरस्कार भारत चौहान देहरादून से जब आप शिमला बाईपास होते हुए स्वामी विवेकानंद हेल्थ मिशन अस्पताल धर्मावाला पहुंचेंगे, तो वहां से पांवटा रोड पर 1 किलोमीटर आगे चलकर दाहिने हाथ की तरफ एक 'निर्मल नर्सरी' का बोर्ड लगा हुआ है. 50 कदम चलने के बाद लगभग 15 बीघे में विभिन्न प्रजातियों वाले पौधों की नर्सरी आपको देखने को मिलेगी. जिसकी खास बात यह है कि आम और बाँज के वृक्ष साथ-साथ दिखाई पड़ते हैं. इस लेख में कर्म सिंह और निर्मल दो नाम आए हैं. यह दोनों ही पिता- पुत्र हैं. कर्म सिंह जी उद्यान विभाग उत्तराखंड से 2003 में सेवानिवृत हो चुके हैं. सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने अपने जीवन का उद्देश्य बागवानी ही बना लिया. इसके लिए उन्होंने पहले ही धर्मावाला में 20 बीघा जमीन खरीद कर बागवानी का काम शुरू कर दिया था. बेटे निर्मल को पढ़ा- लिखा कर उन्हें भी बागवानी क...
जौनसार: अनोखी परम्परा है रहिणी जीमात   

जौनसार: अनोखी परम्परा है रहिणी जीमात   

साहित्‍य-संस्कृति
फकीरा सिंह चौहान स्नेही भारतीय संस्कृति में क्या खूब कहा गया है-  ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता:’ अर्थात जहां नारी की पूजा की जाती है, उसका सम्मान किया जाता है वहां देवताओं का वास होता है. मैं यह बात बड़े गर्व के साथ कह सकता हूं पहाड़ की संस्कृति के अंदर बहुत सारे ऐसे उदाहरण है जहां वास्तव में पुरुष प्रधान देश होने के बाद भी नारी को प्रथम स्थान तथा सम्मान दिया जाता है. जौनसार बावर के अंदर जो भी संस्कृति है वह अद्भुत और अनुकरणीय है. और सबसे बड़ी बात यह कि वह अपने आप मे अन्य संस्कृति से विशिष्ट है. इसी विशिष्टता के कारण इस क्षेत्र की कला संस्कृति और सभ्यता दुनिया को अपनी और आकर्षित करती है. जब भी हम जौनसार बावर की संस्कृति से परिचित होते हैं, हमें इंसानियत और मानवता की सर्वश्रेष्ठ  झलक यहां पर देखने को भली-भांति मिल जाती है. जौनसार  बाबर मे जब भी परिवार के जेष्ठ पुत्र का व...
जौनसार-बावर: कीमावणा….

जौनसार-बावर: कीमावणा….

लोक पर्व-त्योहार
डॉ. लीला चौहान “दस्तूर उल अमल एवं वाजिब उल अर्ज 1883 ई0” दो ऐसे पुराने शासकीय दस्तावेज थे जिनका जौनसार-बावर में भूमि सुधार और रीति-रिवाज़ के लिए प्रयोग किया जाता था. यहां के लोग अपने सेवन के लिए सुर (शराब) भी बना सकते थे यह इन्हीं दस्तावेजों का आधार था.जिसमें (लगभग दो लीटर कच्ची शराब) अपने साथ लेकर भी चल सकते थे. इसी रीति रिवाजों को मध्यनजर रखते हुए आज भी एक्साइज़ मैनुअल जौनसार-बावर के 39 खतों में से सिर्फ एक खत व्यास नहरी (कालसी का आस पास का क्षेत्र) में लागू है. व्यास नहरी में इसलिए लागू था क्योंकि यह हमेशा से बाहरी लोगों का गढ़ रहा है यहां से चीन, तिब्बत के लिए व्यापार होता रहा. जौनसार- बावर के अधिकतर क्षेत्र में 20 गत्ते भादों (सितंबर) में कीमवणा (Method of Yeast preparation used for alcohol preparation) त्योहार के रूप मनाया जाता है. मानसून के भादों महीने में जब सारी वनस्पतियाँ हरी भरी...
ढांटू: रवांई—जौनपुर एवं जौनसार-बावर में सिर ढकने की अनूठी परम्‍परा

ढांटू: रवांई—जौनपुर एवं जौनसार-बावर में सिर ढकने की अनूठी परम्‍परा

साहित्‍य-संस्कृति
निम्मी कुकरेती उत्तराखंड के रवांई—जौनपुर एवं जौनसार-बावर because क्षेत्र में सिर ढकने की एक अनूठी परम्‍परा है. यहां की महिलाएं आपको अक्‍सर सिर पर एक विशेष प्रकार का स्‍कार्फ बाधे मिलेंगी, जो बहुत आकर्षक एवं मनमोहक लगता है. स्थानीय भाषा में इसे ढांटू कहते हैं. यह एक विशेष प्रकार के कपड़े पर कढ़ाई किया हुआ या प्रिंटेट होता है, जिसमें तरह—तरह की कारीगरी आपको देखने को मिलेगी. यहां की महिलाएं इसे अक्सर किसी मेले—थौले में या ​की सामूहिक कार्यक्रम में अक्सर पहनती हैं. उत्तराखंड  ढांटू का इतिहास यहां के लोगों का मानना है कि वे because पांडवों के प्रत्यक्ष वंशज हैं. और ढांटू भी अत्यंत प्राचीन पहनावे में से एक है. इनके कपड़े व इन्हें पहनने का तरीका अन्य पहाड़ियों या यूं कहें कि पूरे भारत में एकदम अलग व बहुत सुंदर है. महिलाएं इसे अपनी संस्कृति और सभ्यता की पहचान के रूप में पहनती हैं. आज भी इ...