
स्वतंत्र भारत में स्वराज की प्रतिष्ठा
स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त, 2022) पर विशेष
प्रो. गिरीश्वर मिश्र
आज़ादी मिलने के पचहत्तर साल बाद देश स्वतंत्रता का ‘अमृत महोत्सव’ मना रहा है तो यह विचार करने की इच्छा और स्वाभाविक उत्सुकता पैदा होती है कि स्वतंत्र भारत का जो स्वप्न देखा गया था वह किस रूप में यथार्थ के धरातल पर उतरा. स्वाधीनता संग्राम का प्रयोजन यह था कि भारत को न केवल उसका अपना खोया हुआ स्वरूप वापस मिले बल्कि वह विश्व में अपनी मानवीय because भूमिका को भी समुचित ढंग से निभा सके. देश या राष्ट्र का भौगोलिक अस्तित्व तो होता है पर वह निरा भौतिक पदार्थ नहीं होता जिसमें कोई परिवर्तन न होता हो. वह एक गत्यात्मक रचना है और उसी दृष्टि से विचार किया जाना उचित होगा. बंकिम बाबू ने भारत माता की वन्दना करते हुए उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में ‘सुजलां सुफलां मलयज शीतलां शस्य श्यामलां मातरं वन्दे मातरं‘ का अमर गान रचा था. ‘सुखदां वरदां म...