देवेन मेवाड़ी जी का संस्मरण
आज 14 अक्टूबर शैलेश मटियानी जी का जन्म दिन है। कभी जब मैं भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा इंस्टिट्यूट), नई दिल्ली में शोध कार्य कर रहा था तो वे एक दिन अपना बड़ा-सा टीन का बक्सा लेकर मेरे किराए के कमरे में आकर बोले थे,”देबेन, इस बार दो-चार दिन तुम्हारे पास रुकूंगा।”(वे मुझे छोटा भाई मानते थे और देवेन नहीं देबेन कहते थे)।
दिन भर शहर की खाक छानने के बाद थके-मांदे लौटते तो फर्श पर दरी में बिस्तर बिछा कर आराम से लेट जाते और दिन भर की घटनाओं के किस्से सुनाते। उनको याद करते हुए उन्हीं में से ये दो किस्से।
एक दिन शाम को लौटे तो हाथ में खरौंच थी। पूछा तो कहने लगे, “मामूली चोट है। थोड़ा बंद चोट लग गई।”
“क्यों क्या हुआ?” मैंने पूछा।
“अरे कुछ नहीं। रिक्शा पलट गया था। लेकिन, रिक्शे वाले की कोई गलती नहीं थी। सामने से गाड़ी आ गई। अंसारी रोड वैसे ही संकरी है, ऊपर से गा...
जन्मतिथि (14 अक्टूबर) पर विशेष
डॉ. अमिता प्रकाश
“दुख ही जीवन की कथा रही
क्या कहूँ आज जो नहीं कही.”
निराला जी की ये पंक्तियाँ जितनी हिंदी काव्य के महाप्राण निराला के जीवन को उद्घाटित करती हैं उतनी ही हमारे कथा साहित्य में अप्रतिम स्थान रखने वाले so रमेश चंद्र सिंह मटियानी का, जिन्हें विश्व साहित्य शैलेश मटियानी के नाम से जानता है. जुआरी बिशन सिंह के बेटे और बूचड़ के भतीजे कि रूप में दुत्कारित यह ’मुल्या छोरा’ किस so प्रकार हिंदी साहित्याकाश का दैदिप्यमान नक्षत्र बना यह अपने आप में कम रोचक कथा नहीं है. उनका साहित्य वस्तुतः उनके जीवन का विस्तार है जो कुछ भोगा वही शब्दों में ढाला. because उनके पास लेखन के लिये इतना भी समय नहीं था कि वह अपने लेखन का सौंदर्यीकरण कर पाते, दस -बीस पृष्ठ लिखे नहीं कि दो पैसे की चाह में उन्हें छपवाने भेज दिया करते थे.
मत
लेखन उनके लिए जुनून के साथ-सा...