Tag: वसंत पंचमी

आनंद का समय 

आनंद का समय 

साहित्‍य-संस्कृति
नीलम पांडेय‘नील’ ब्रह्म ने पृथ्वी के कान में एक बीज मंत्र दे दिया है उसी क्रिया की प्रतिक्रिया में  जब बादल बरसते हैं,  तो स्नेह की वर्षा होने लगती है  और पृथ्वी निश्चल भीग उठती है. आज भी बादलों के गरजने और  धरती पर फ्यूंली के फूलने से, यूं लग रहा है  कि पृथ्वी मंत्र बुदबुदा रही है.  उत्तराखंड चीड़ के वृक्षों की झूमती कतारों से निकलने वाली सांय-सांय की आवाज दूर तक जैसे किसी की याद दिलाने लगती है. वृक्षों से निकल कर  पीला फाग उड़-उड़ कर because फैलने लगता है और पूरे वातावरण को अपनी आगोश में ले लेता है. एक लम्बी सुसुप्ति और नीरवता के बाद पेड़ पौधों पर नवांकुरो और नवपल्लवों को आते हुए देखना बहुत सुंदर लगता है ...आज सृजन के ऋतु यानी ऋतुराज वसंत के आगमन की शुरुआत है. नव पल्लव की सुगंध में रचे बसे से लोग, लोक जीवन के भाव लिए हुए नए कोंपलों के स्वागत की तैयारी में गीत गाने लगते हैं,...
बगरौ बसंत है

बगरौ बसंत है

साहित्‍य-संस्कृति
प्रो. गिरीश्वर मिश्र सृष्टि चक्र का आंतरिक विधान सतत परिवर्तन का है और भारत देश का सौभाग्य कि वह इस गहन क्रम का साक्षी बना है. तभी ऋत और सत्य के विचार यहां के चिंतन में गहरे पैठ गए हैं और नित्य-अनित्य का विवेक so करना दार्शनिकों के लिए बड़ी चुनौती बनी रही. यहां ऋतुओं का क्रम कुछ इस भांति संचालित होता है कि पृथ्वी समय बीतने के साथ रूप, रस और गंध के भिन्न-भिन्न स्वाद से अभिसिंचित होती रहती है. because वर्षा, ग्रीष्म, शरद, हेमंत, शिशिर और वसंत नामों से ख्यात ये छह ऋतुएं प्रकृति के संगीत के अलग-अलग राग, लय और सुर के साथ जीवन के सत्य को उद्भासित करती हैं. वह पशु, पक्षी और वनस्पति समेत सभी प्राणियों को यह संदेश देती रहती है कि तैयार रहो और गतिशील बने रहो जिससे जीवन का क्रम बना रहा. पढ़ें— हिमालयी सरोकारों को समर्पित त्रैमासिक पत्रिका ‘हिमांतर’ का लोकार्पण शिशिर प्रकृति की कूट (कोड) भ...