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प्रकृति का लोकपर्व फूलदेई

प्रकृति का लोकपर्व फूलदेई

लोक पर्व-त्योहार
चन्द्रशेखर तिवारी मनुष्य का जीवन प्रकृति के साथ अत्यंत निकटता से जुड़ा है। पहाड़ के उच्च शिखर, पेड़-पौंधे, फूल-पत्तियां, नदी-नाले और जंगल में रहने वाले सभी जीव-जन्तुओं के साथ because मनुष्य के सम्बन्धों की रीति उसके पैदा होने से ही चलती आयी है। समय-समय पर मानव ने प्रकृति के साथ अपने इस अप्रतिम साहचर्य को अपने गीत-संगीत और रागों में भी उजागर करने का प्रयास किया है। उत्तराखंड पीढ़ी-दर-पीढ़ी अनेक लोक so गीतों के रुप में ये गीत समाज के सामने पहुंचते रहे। उत्तराखण्ड के पर्वतीय लोकगीतों में वर्णित आख्यानों को देखने से स्पष्ट होता है कि स्थानीय लोक ने प्रकृति में विद्यमान तमाम उपादानों यथा ऋतु चक्र,पेड़-पौधों, पशु-पक्षी,लता,पुष्प तथा नदी व पर्वत शिखरों को मानवीय संवेदना से जोड़कर उसे महत्वपूर्ण स्थान दिया है। उत्तराखंड लोकगीतों वर्णित बिम्ब एक अलौकिक but और विशिष्ट सुख का आभास कराते ह...