उत्तराखंड: जीवन संघर्ष का नाम था शैलेश मटियानी
देवेन मेवाड़ी जी का संस्मरण
आज 14 अक्टूबर शैलेश मटियानी जी का जन्म दिन है। कभी जब मैं भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा इंस्टिट्यूट), नई दिल्ली में शोध कार्य कर रहा था तो वे एक दिन अपना बड़ा-सा टीन का बक्सा लेकर मेरे किराए के कमरे में आकर बोले थे,”देबेन, इस बार दो-चार दिन तुम्हारे पास रुकूंगा।”(वे मुझे छोटा भाई मानते थे और देवेन नहीं देबेन कहते थे)।
दिन भर शहर की खाक छानने के बाद थके-मांदे लौटते तो फर्श पर दरी में बिस्तर बिछा कर आराम से लेट जाते और दिन भर की घटनाओं के किस्से सुनाते। उनको याद करते हुए उन्हीं में से ये दो किस्से।
एक दिन शाम को लौटे तो हाथ में खरौंच थी। पूछा तो कहने लगे, “मामूली चोट है। थोड़ा बंद चोट लग गई।”
“क्यों क्या हुआ?” मैंने पूछा।
“अरे कुछ नहीं। रिक्शा पलट गया था। लेकिन, रिक्शे वाले की कोई गलती नहीं थी। सामने से गाड़ी आ गई। अंसारी रोड वैसे ही संकरी है, ऊपर से...