Tag: पुस्तक समीक्षा

जो मजा बनारस में, न पेरिस में, न फारस में…

जो मजा बनारस में, न पेरिस में, न फारस में…

पुस्तक-समीक्षा
कॉलम: किताबें कुछ कहती हैं... प्रकाश उप्रेती इस किताब ने 'भाषा में आदमी होने की तमीज़' के रहस्य को खोल दिया. 'काशी का अस्सी' पढ़ते हुए हाईलाइटर ने दम तोड़ दिया. लाइन- दर- लाइन लाल- पीला करते हुए because कोई पेज खाली नहीं जा रहा था. भांग का दम लगाने के बाद एक खास ज़ोन में पहुँच जाने की अनुभूति से कम इसका सुरूर नहीं है. शुरू में ही एक टोन सेट हो जाता और फिर आप उसी रहस्य, रोमांस, और औघड़पन की दुनिया में चले जाते हैं. यह उस टापू की कथा है जो सबको लौ... पर टांगे रखता है और उसी अंदाज में कहता है- "जो मजा बनारस में, न पेरिस में, न फारस में". ज्योतिष "धक्के देना और धक्के खाना, जलील करना और जलील होना, गालियां देना और गालियां पाना औघड़ संस्कृति है. अस्सी की नागरिकता के मौलिक अधिकार और कर्तव्य. because इसके जनक संत कबीर रहे हैं और संस्थापक औघड़  कीनाराम. चंदौली के गांव से नगर आए एक आप्रवासी संत....
ईमानदार समीक्षा-साहित्य का सच्चा पाठक और लेखक

ईमानदार समीक्षा-साहित्य का सच्चा पाठक और लेखक

साहित्यिक-हलचल
ललित फुलारा एक जानकार काफी दिनों से अपनी किताब की समीक्षा लिखवाना चाहते थे. अक्सर सोशल मीडिया लेटर बॉक्स पर उनका संदेश आ टपकता. 'मैं उदार और भला आदमी हूं' यह जताने के लिए उनके संदेश पर हाथ जोड़ तीन-चार दिन बाद मेरी जवाबी चिट्ठी भी पहुंच जाती. यह सिलसिला काफी लंबे वक्त का है. इतना धैर्यवान व्यक्ति मैंने अभी तक नहीं देखा था. एक ही संदेश हर दूसरे दिन ईमोजी की संख्या बढ़ाकर मुझे मिलता और हर तीसरे-चौथे दिन विनम्रतापूर्ण नमस्कार वाली इमोजी की संख्या बढ़ाकर मेरा जवाब उन तक पहुंचता. बीच-बीच में कभी-कभार वो मैसेंजर से फोन भी कर लिया करते. एक शाम फिर दूरभाष. बड़े अधिकार भाव से बोले- 'कुछ ही शब्द लिखकर पोस्ट कर दीजिए.' मैंने उनको समझाना चाहा कि मैं किताब नहीं पढ़ता. और बिना पढ़े शेयर नहीं करता. न ही आदेश पर लिखता हूं और न ही विनती पर. इस पर उनका अधिकार भाव थोड़ा लचीला हुआ और बोले. 'मुझे ल...