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सूखे नहॉ बिन जीवन सूखा

सूखे नहॉ बिन जीवन सूखा

संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—12 प्रकाश उप्रेती हम इसे 'नहॉ' बोलते हैं. गाँव में आई नई- नवेली दुल्हन को भी सबसे पहले नहॉ ही दिखाया जाता था. शादी में भी लड़की को नहॉ से पानी लाने के लिए एक गगरी जरूर मिलती थी. अपना नहॉ पत्थर और मिट्टी से बना होता था. एक तरह से जमीन के अंदर से निकलने वाले पानी के स्टोरेज का अड्डा था. इसमें अंदर-अंदर पानी आता रहता था. हम इसको 'शिर फूटना' भी कहते थे. मतलब जमीन के अंदर से पानी का बाहर निकलना. नहॉ को थोड़ा गहरा और नीचे से साफ कर दिया जाता था ताकि पानी इकट्ठा हो सके और मिट्टी भी हट जाए. कुछ गाँव में नहॉ के अंदर चारों ओर सीढ़ीनुमा आकार दे दिया जाता था. यह सब गाँव की आबादी और खपत पर निर्भर करता था. हमारा नहॉ घर से तकरीबन एक किलोमीटर नीचे 'गधेरे' में है. सुबह- शाम नहॉ से पानी लाना बच्चों का नित कर्म था. बारिश हो या तूफान नहॉ से पानी लाना ही होता था. इस...